हिंदुओं के मन में हीन भाव जन्म कैसे लेता है ?

वर्तमान समय में हिंदू समाज एक अनोखी समस्या का सामना कर रहा है । लोगों की तीन श्रेणियाँ उभर कर सामने आयीं हैं । एक तो वे लोग हैं जो समय के साथ साथ अपनी संस्कृति के महत्व को समझने लगे हैं और स्वतंत्र रूप से उसका वरण करते हैं, दूसरे वे लोग हैं जो समझने की प्रक्रिया में हैं किंतु स्वतंत्र रूप से उसका वरण करने में झिझकते हैं और तीसरे वे हैं जो संस्कृति को अनदेखा कर देते हैं ।
दूसरे और तीसरे प्रकार के लोग अपने ही प्रति हीन भाव से ग्रसित होते हैं । इस समस्या के कई कारण हैं –
दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान, भौतिकी, भूगोल, गणित, रसायनशास्त्र, नैतिकता आदि असंख्य सद्गुणों को अनदेखा करते हुए हिन्दू धर्म के केवल और केवल उस पक्ष पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है जो कई वर्षों पहले मुरझा चुका है |
इस विषय में सुषमा स्वराज जी ने लोकसभा में अपने एक भाषण में कहा था कि –
“ चूंकि हम अपने हिन्दू होने पर शर्म महसूस नहीं करते इसलिए हम सांप्रदायिक हैं और इस देश में जब तक आप अपने हिन्दू होने पर शर्मिंदगी महसूस नहीं करते, आपको इन तथाकथित बुद्धिजीवियों से सेक्युलर होने का सर्टिफिकेट नहीं मिल सकता ” – 11/06/1996
हिन्दू धर्म किस किस प्रकार आलोचनीय है ये लोग नए नए तरीकों से सामने आते रहते हैं, बताते रहते हैं | इनकी विचारधारा को उत्तर-आधुनिकतावाद ( पोस्ट-मॉडर्निज़्म ) कहा जा सकता है जिसमे ये हिन्दू धर्म की ओर देखते ही इसलिए हैं ताकि कमियां निकाल सकें | पहले तो इन्होने बिना मांगे ही धर्मनिरपेक्ष होने की वैधानिकता बांटनी शुरू कर दी थी, किन्तु धीरे धीरे यह अधिकार पूरी तरह उनके हाथों में खिसकता चला गया | अब वे इसका लाभ उठाते हैं एवं आलोचना करने के बहाने हिन्दू धर्म पर अपमानजनक टिप्पणी करते हैं, तंज कसते हैं और ऐसा करने को वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहते हैं, जोकि वास्तविकता में हिन्दू धर्म तक ही सीमित होती है, अन्य किसी मजहब पर ये टिप्पणी नहीं करते हैं | इससे धीरे धीरे यह प्रतीत होने लगता है कि अन्य किसी मजहब में कमियां हैं ही नहीं, सारी कमियां हम हिन्दुओं में ही हैं |
ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य हमारे मन में हमारे ही प्रति हीन भाव जगाना होता है क्योंकि जो स्वयं को हीन समझने लगेगा उसे मानसिक रूप से बंधक बनाना अत्यंत सरल हो जाता है, फिर उस व्यक्ति में सोचने समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है, उसे ये वामपंथी जो भी बता देते हैं उसे सत्य लगता है | यहीं पर वामपंथी अपने खेल में सफल हो जाते हैं | उनका उद्देश्य मन पर कब्ज़ा करना होता है ताकि वे जो भी कहें वही सत्य मन जाये और वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में वैधानिकता का प्रमाणपत्र बांटते रहें |
हर प्रकार की उपेक्षा और अपमान करके ये लोग आरोप भी उल्टा हिन्दुओं पर ही डाल देते हैं | जिन लोगों को इनके खेल समझ नहीं आते अथवा जो लोग स्वयं को आदर्श व्यक्ति बनाने की होड़ में रहते हैं, वे इनसे प्रभावित हो जाते हैं, और स्वयं को कम आंकने लगते हैं | उन्हें ऐसी प्रतीति होने लगती है कि वामपंथियों द्वारा बताई गयी कमियां हमारे धर्म का बड़ा हिस्सा हैं | ऐसे में लोग अपनी दृष्टि में हिन्दू संस्कृति के प्रति सम्मान कम कर देते हैं ( जोकि उनसे करवाया गया और उन्हें पता भी नहीं चला ) | इस हीन भाव का लाभ लेकर वामपंथी वैधानिकता बांटते हैं |
ये हीन भाव धीरे धीरे इतना गहरा जाता है कि जब तक कोई दूसरा अथवा विदेशी, हिन्दू धर्म की प्रशंसा नहीं करता, लोग भी कतराते हैं| उन्हें अपने हिन्दू होने पर शर्म आने लगती है, वे फिर हिन्दू संस्कृति से जुड़े भी नहीं रहना चाहते, वे पाश्चात्य सभ्यता की ओर उन्मुख हो जाते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा भ्रम होता है कि उसमे कोई कमी नहीं है, वह श्रेष्ठ है | वामपंथियों के शिकार लोगों को ईसाई तौर-तरीकों में स्वतंत्रता का छद्म- अनुभव होता है | अंततः उन्हें हिंदी से भी द्वेष हो जाता है |
इतना होते ही वामपंथियों की हीन भाव जगाने की रणनीति सफल हो जाती है और वे अपने नए शिकार की खोज में निकल जाते हैं |
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