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आप में से ज्यादातर लोगों की तरह मुझे भी बचपन से ही पढ़ने का काफी शौक है। जब से मुझमें समाज, इतिहास, और राजनीति जैसे विषयों की थोड़ी बहुत समझ आना शुरू हुई, मैंने अख़बारों के संपादकीय पेज पर प्रकाशित होने वाले लेखों की पेपर कट्टिंग्स निकाल के रखना शुरू कर दिया था और ये मैंने सालों तक किया। तब स्मार्टफोन्स आज की तरह हर व्यक्ति के पास नहीं पहुंचे थे तो अख़बार ही खबर का मुख्य जरिया हुआ करता था। 

इन लेखों से जिन लेखकों के आर्टिकल्स में निकाल के रखता था उनमें शेखर गुप्ता (The Print वाले ), राजदीप सरदेसाई (बेइजत्ती के बिना तिलक के राजा), और चेतन भगत मुख्य थे। मैं समझता था की ये लेख मुझे देश और समाज के वर्तमान हालातों की सच्चाई से रूबरू करते थे और जब भी कभी कॉलेज या किसी जगह राजनीतिक या सामाजिक मुद्दों पर कोई चर्चा होती थी तो इस आधे-अधूरे ज्ञान को, जिसे में परम सत्य मान के अक्सर अपने दोस्तों से साझा कर खुद को शिक्षित साबित करने की कोशिश करता था। 

अपने जीवन के १० महत्वपूर्ण साल मैंने इन वामपंथियों, कम्युनिस्टों, और छद्म लिबरलों के एक तरफा नैरेटिव को सुनते हुए निकाल दिए जिसके कारण मेरे निजी और सामाजिक जीवन में भारतीय सभ्यता, परंपराओं, और सदियों पुराने सांस्कृतिक विरासत की ओर मैंने बहुत कम ध्यान दिया। अधिकतर समय मैंने पाश्चात्य विचारकों, कहानीकारों, दार्शनिकों को ही पढ़ा और जाना। अनेक भारतीयों की तरह ही मेरे मन में भी पाश्चात्य सभ्यता के लिए श्रेष्टता का भाव था और अपनी हज़ारों साल पुरानी वैदिक सभ्यता को कभी मैंने जानने और खोजने का प्रयास नहीं किया। 

जो इतिहास हमने अपने स्कूलों में पढ़ा, उससे हमारे मन में देश के इतिहास के प्रति गर्व कम और कुंठा ज्यादा उत्पन्न हुई। जो वैकल्पिक साहित्य भारतीय इतिहास के ऊपर उपलब्ध था, उसकी कभी चर्चा हमने होती नहीं देखी। सबसे आश्चर्य की बात तो यह रही की हमें कभी पता ही नहीं चला कि इन वामपंथी लेखकों और पत्रकारों का अपना एक एजेंडा था, वो हमें पूरी बात कभी बताते ही नहीं थे। हम इस बात से अनभिज्ञ थे कि हमारे ही देश में हमें हमारी सभ्यता और राष्ट्र से लगातार विमुख किया जा रहा था और हमारी सोच में समाज की समस्याओं के प्रति उदासीनता भरी जा रही थी। आज के समय में राष्ट्र सेवा में लगे लोगों की संख्या न के बराबर होने के पीछे इन वामपंथियों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। 

OpIndia, UPWORD, #Swarajya, The Jaipur Dialogues का उदय 

सोशल मीडिया के लोकप्रिय होने के बाद जब हमने अजीत भारती, संजय दीक्षित, आशीष धर और अन्य राष्ट्रवादी आवाजों को जब सुनना शुरू किया, तब हमें अहसास हुआ की वर्षों से हम कितनी बड़ी गलती करते आ रहे थे। हमने जाना कि ख़बरों को किस तरह एक विशेष समुदाय या राजनितिक पार्टी के लाभ के लिए तोडा और मरोड़ा जाता रहा है। निरंतर इन राष्ट्रवादी लेखकों और पत्रकारों को सुनने के बाद, समय के साथ हमें यह ज्ञान हुआ कि भारत देश को तोड़ने, इसकी सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुँचाने के लिए वामपंथी, इस्लामिक कट्टरपंथी, और कम्युनिस्ट मिलकर कितनी साजिशें हर रोज़ कर रहे हैं। 

इस लेख को पढने वाले अपने हर भाई और बहिन से मैं एक अनुरोध करूँगा कि जितना ज्यादा हो सके आर्थिक रूप से इन राष्ट्रवादी संगठनों, मंचों, लेखकों और पत्रकारों को सहयोग करें, इनके विचारों को घर-घर पहुंचाएं, राष्ट्र निर्माण के इस कार्य में योगदान देने के लिए खुद को तैयार करें। 

जय हिन्द, जय भारत। 

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