क्या आज इतिहास खुद को दोहरा रहा हैं?
जब जब आतंकियों के सामने मुलायम पड़ी केंद्र सरकार, देश को भयानक कीमत चुकानी पड़ी हैं
कांधार विमान अपहरण – जब केंद्र सरकार ने आतंकवादियो के आगे घुटने टेक दिए थे। जब विपक्ष ने आतंकवादियों की मदद के लिए सड़कों पर भीड़ उतार दी थी। जब देश ने आतंकियों को मारने की जगह उनसे बातचीत की और जिसकी कीमत देश आजतक चुका रहा हैं।
उस वक्त सरकार पर दबाव डालने का काम सिर्फ जनता और मीडिया ने ही नहीं किया था, बल्कि उस वक्त की विपक्षी राजनीतिक पार्टियां भी लगातार सरकार पर दबाव बना रही थी. ऊपरी तौर पर तो कांग्रेस और दूसरे विरोध दल कह रहे थे कि वह सरकार के साथ हैं, लेकिन असल में ऐसा नहीं था. कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) की बड़ी नेता बृंदा करात उस वक्त अक्सर बंधकों के परिवार वालों से मिलने सात रेस कोर्स जाया करती थी.
सात रेस कोर्स पर देश के प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास है. तब बंधकों के परिवार प्रधानमंत्री के आवास के अंदर ही कैंपेन कर रहे थे. पत्रकार कंचन गुप्ता के मुताबिक बृंदा करात अक्सर बंधकों के रिश्तेदारों से मिलने जाया करती थीं. धीरे-धीरे वहां ऐसा माहौल बनने लगा कि सरकार को किसी भी कीमत पर बंधकों को रिहा कराना चाहिए.
अफसोस की बात ये है, कि उस वक्त देश के लोगों की भावनाओं को भड़काने वालों में अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल थे. उस वक्त कांग्रेस के नेता अक्सर ये दावा करते थे कि वो सरकार के हर फैसले के साथ हैं, लेकिन बंधकों की रिहाई के कुछ वक्त बाद ही. कांग्रेस ने इस पर राजनीतिक बयानबाजी करनी शुरू कर दी थी. 20 साल पहले इस मामले पर कांग्रेस पार्टी का रुख क्या था? इतना नहीं वर्ष 2000 में CPI के ही एक और बड़े नेता हर किशन सिंह सुरजीत ने भी सरकार पर सच छिपाने का आरोप लगाया था.
पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने भी अटल बिहारी वाजपेयी की तत्कालीन सरकार पर ये आरोप लगाया था कि सरकार ने उन्हें ये तो बता दिया कि जसवंत सिंह कांधार जा रहे हैं, लेकिन आतंकवादियों के साथ हुई डील के बारे में नहीं बताया गया था.
भारत के कब्जे से छूटने के बाद मसूद अजहर ने पाकिस्तान में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया और इसका सरगना बन गया. मसूद अजहर ने उसके बाद भारत पर सबसे ज्यादा आतंकी हमलों को अंजाम दिया जिसमें भारतीय संसद पर हमला, मुंबई हमला, पठानकोट एयरबेस हमला और पुलवामा हमला शामिल है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित वैश्विक आतंकवादी मसूद अजहर को पुलवामा आतंकी हमले के मामले में फरार घोषित किया गया है.
उमर शेख ने 2002 में वॉल स्ट्रीट जर्नल के पत्रकार डेनियल पर्ल की भी हत्या कर दी थी. इस मामले में उसे और उसके साथियों को फांसी की सजा भी सुनाई गई थी लेकिन पाकिस्तान की सिंध हाईकोर्ट ने इसी साल सभी को बरी कर दिया था. हालांकि इनको बरी किए जाने के खिलाफ पर्ल के परिवार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है, जिस पर सुनवाई चल रही है.
मुश्ताक अहमद जरगर ने छोड़े जाने के बाद कश्मीर में कई ग्रेनेड हमले करवाए हैं. पिछले साल फरवरी में सीआरपीएफ के जवानों पर हुए आतंकी हमलों के पीछे उसका भी हाथ था. मुश्ताक मूल रूप से कश्मीर का ही रहने वाला है. मसूद अजहर का करीबी माना जाने वाले मुश्ताक पर दर्जनों लोगों के कत्ल का इल्जाम है.
आज भी आतंकियों ने खुलेआम दिल्ली पर हमला किया और विपक्ष ने उनको बचाने के लिए सड़कों पर भीड़ उतार दी हैं।
सवाल ये है कि क्या केंद्र सरकार फिर कमजोर पड़कर आतंकियों से समझौता करेगी या इस बार कुछ अलग होगा ?
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