निर्भया नाम शायद ही देश का कोई व्यक्ति ना जानता हो। 2012 दिल्ली में अमानवीय घटना घटित हुई और एक बेटी कुछ दरिंदो का शिकार हुई। देश गुस्से में था। केंद्र में कांग्रेस और दिल्ली में भी कांग्रेस की सरकार थी। उस वक्त केंद्र की कांग्रेस सरकार घोटालों का कीर्तिमान स्थापित कर रही थी पूरा देश त्राहिमाम कर रहा था। निर्भया घटना के बाद एक देशव्यापी आंदोलन हुआ जिसमे अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और कुछ समाज सेवक आंदोलन में सक्रिय हुए पर उस आंदोलन को अरविंद केजरीवाल द्वारा एक राजनीतिक अखाड़ा बनाया गया। जिस निर्भया की लाश पर राजनीति की बाद में उसी निर्भया के सबसे बड़े दोषी को सीलाई मशीन और पैसे दिए सिर्फ वोट बैंक के लिए। धन्य है जनता जो निर्भया को बेटी बता कर कैंडल मार्च निकाल रहे थे और अपराधी को सीलाई मशीन और पैसे देने वाले नेता को फिर से सत्ता में बैठने के वोट किया।
अब मौजूदा हालात पर बात करते हैं तो कुछ दिनों से कोरोना पर जो राजनीति हो रही है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। Health राज्य का विषय है पर नकारे मुख्यमंत्री इसे केंद्र को जिम्मेदार बता रहे हैं। उन्होंने अपने राज्य में क्या व्यवस्था की इसका जवाब नहीं इनके पास। विज्ञापन में कई करोड़ खर्च किए गए मगर ऑक्सीजन के लिए कोई योजना नहीं बनाई। मुश्किल घड़ी में जिस सिंगापुर से मदद आती है उसके साथ देश के रिश्ते खराब करने के लिए सजीशन सिंगापोर वेरिएंट बता कर भारत सिंगापोर के रिश्ते खराब करने का माहौल बनाया गया।
आबादी के हिसाब से दिल्ली में उत्तर प्रदेश से 8 गुना ज्यादा मामले आए हैं पर भारत की राजधानी होने के बाद भी दिल्ली की हालत चिंताजनक रही। एक छोटे से राज्य का नेतृत्व सही ढंग से ना कर पाना अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।
अरविंद केजरीवाल जी खुद को दिल्ली के मालिक कहते है और हर बात पर केंद्र को जिम्मेदार बता कर अपना पल्ला झाड़ लेते है। केजरीवाल जी दिल्ली ने आप को चुना था और जब सब कुछ केंद्र ही करता तो आपको मुख्यमंत्री क्यूं बनाता। आप दिल्ली के मालिक हैं तो दिल्ली के लिए कुछ करते क्यूं नहीं। 2.5 करोड़ की आबादी वाले राज्य में 4 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन का ऐलान।
सच तो ये है आप जनता को गुमराह करते हैं। दिल्ली के मालिक हो तो दिल्ली के लिए कुछ कर ना।
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