‘बेटी का दुख मुझसे देखा नहीं जाता था, मैंने जानबूझकर और पूरे होश में गोली मारी है. जिसे गोली मारी है उसने मेरी बेटी के साथ रेप किया था. मैं देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर सैनिक रहा, देश की सेवा की और मुझे मिला क्या ? मेरी बेटी किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रही. इसे गिरफ्तार तो किया गया था लेकिन फिर जमानत मिल गई. मुझसे इसका बाहर आना बर्दाश्त नहीं हुआ और मार दी गोली’. ये एक-एक शब्द एक पिता की पीड़ा, उसके दर्द को बयां कर रही है. गोरखपुर के भागवत निषाद ने अपनी बेटी से रेप करने वाले आरोपी दिलशाद को कोर्ट के सामने गोली मारने के बाद ये कहा .

जिस पिता की बेटी के साथ ऐसी घिनौनी घटना होती है वही इस तकलीफ को समझ सकता है. दरअसल आज रेप की घटनाएं इतनी आम हो गई हैं कि कोई सोच ही नहीं सकता था कि कोई पिता इस तरह अपनी बेटी के दुष्कर्म का बदला ले सकता है. इसलिए हर कोई इस बात से हैरान है. आरोपी रेप करते हैं और बदनामी होती है लड़की की और उसके घरवालों की. बाद में आरोपी को बड़ी ही आसानी से जमानत मिल जाती है और फिर वह खुलेआम बड़े शान से आजाद घूमता है.

वहीं दूसरी तरफ  पीड़िता समाज और रिश्तेदारों की वजह से घर में कैद होकर अंदर ही अंदर घुटती रहती है. उसकी हर सिसकी के साथ उसके माता-पिता भी अंदर ही अंदर खोखले होते चले जाते हैं . मां तो फिर भी आंसू बहा लेती है लेकिन पिता अपने आंखों से आंसू भी नहीं बहा सकता, बस अंदर ही अंदर वह खुद को कोसता रहता है कि मैं समाज में घूमते इन हैवानों से अपनी बेटी को बचा नहीं पाया

यही कारण है कि एक सीधा-साधा इंसान जो देश की सेवा करने वाला सैनिक था वो अपराधी बन जाता है. सोचिए वो पिता किस उधेड़बुन की स्थिति में रहा होगा , उसके दिमाग पर कितना गहरा सदमा लगा होगा. उसके मन में कितनी उथल-पुथल मची होगी. उसे पता होगा कि किसी को जान से मारने के बाद उसे भी सजा मिलेगी फिर वह ऐसी हिम्मत कर गया? जाहिर है कोई भी कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता लेकिन सवाल यही कि आखिर ऐसे हालात बने ही क्यों कि किसी पिता को अपराधी बनना पड़े?

यह अपने आप में बहस और चर्चा का विषय है। आखिर क्यों एक बाप को इतना मजबूर होना पड़ा? आखिर क्यों दिलशाद जैसे शोहदों की इतनी हिम्मत हो जाती है. इधर सोशल मीडिया पर लगातार घटना के बाद भागवत निषाद के समर्थन में लोग आते जा रहे हैं, लोगों का कहना है कि एक मजबूर और बेबस पिता और क्या करेगा, जब तारीख-पर-तारीख मिलती रहेगी और एक आम इंसान क्या करेगा ?

लोगों का कहना है कि उन्होंने जो किया वो सही किया। कुछ लोगों ने न्याय-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि पिता ने सोचा होगा कि उसे क्या सजा होगी, तो उसने खुद ही सजा दे डाली।

इस तरह की घटनाएं नहीं रुकी तो वो दिन दूर नहीं जब देश के हर पिता को भागवत निषाद बनकर खुद ही न्याय की लड़ाई लड़नी पड़ेगी । भागवत निषाद के समर्थन में सोशल मीडिया में लोग यहां तक लिख रहे हैं कि ये पिता ‘सम्मान का हकदार है, सजा का नहीं’ ।

 

 

 

 

 

 

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