वोट बैंक की राजनीति के कारण भारतीय संविधान अभी तक लगभग 75% ही लागू किया गया। अनुच्छेद-44 (समान नागरिक संहिता), अनुच्छेद-48 (गौ हत्या प्रतिबंध), अनुच्छेद-312 (भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा), अनुच्छेद-351 (हिंदी और संस्कृत का प्रचार) जैसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद अभी तक पेंडिंग हैं। अनुच्छेद-51A (मौलिक कर्तव्य) को लोगों की इच्छा पर छोड़ दिया गया है। इसके लिए बनी जस्टिस वर्मा समिति के सुझाव अभीतक लागू नहीं किये गये।
बाबा साहब अम्बेडकर, सरदार पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, राजेंद्र प्रसाद, पंडित नेहरू, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, आचार्य कृपलानी, मौलाना कलाम, रफी अहमद किदवई एवं संविधान सभा के अन्य सभी सदस्यों ने समान शिक्षा, समान चिकित्सा, समान नागरिक संहिता, समान न्याय और सबके लिए समान अवसर का सपना देखा था, लेकिन उनका यह सपना आज तक पूरा नहीं हुआ। यह दुर्भाग्य है कि बाबा साहब की मुर्तियां तो खूब लगाई जा रही हैं, लेकिन उनके द्वारा बनाए गए संविधान को आजतक 100% लागू नहीं किया गया।
100% संविधान को लागू करना जरूरी
देश की एकता-अखंडता को मजबूत करने के लिए बचे हुए 25% संविधान को तत्काल लागू करना अति-आवश्यक है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि बाबा साहब के नाम पर वोट मांगने वाले नेता भी संविधान को 100% लागू करने की मांग नहीं कर रहे हैं। समता मूलक समाज की स्थापना के लिए शिक्षा के अधिकार को 14 वर्ष तक के बच्चों का मौलिक अधिकार बनाया गया, लेकिन इसे आजतक ठीक से लागू नहीं किया गया।
क्या वर्तमान शिक्षा पद्धति सामाजिक समरसता, आपसी भाईचारा, देशप्रेम की भावना को बढ़ाने और भ्रष्टाचार, अपराध, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, धर्म परिवर्तन जैसी बुराइयों को समाप्त करने में सक्षम है? यदि देश के सभी केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय का स्लेबस एक समान हो सकता है, तो 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों (गरीब-अमीर-हिंदू-मुसलमान-सिख-ईसाई) का स्लेबस एक समान क्यों नहीं हो सकता है?
भारत में नहीं होगा अनुच्छेद-351 तो कहां होगा?
गांधीजी ने हिंदी और संस्कृत को देश की एकता के लिए अतिआवश्यक बताया था, लेकिन गांधीजी के नाम पर राजनीति करने वालों ने आजतक इसके लिए गम्भीर प्रयास नहीं लिया। यदि हिन्दुस्तान के स्कूलों में हिंदी और संस्कृति अनिवार्य नहीं होगी तो क्या पाकिस्तान और बंगलादेश में होगी? भारत की एकता-अखंडता को मजबूत करने और भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए हिंदी और संस्कृत विषय अनिवार्य करना आवश्यक है।
स्वास्थ्य का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार स्वास्थ्य का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पस्ट किया है। जिस प्रकार 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार (राइट टू एजुकेशन) कानून लागू है उसी प्रकार उनके लिए स्वास्थ्य का अधिकार (राइट टू हेल्थ) कानून भी जरुरी है।
देश का एक मैरेज ऐक्ट क्यों नहीं?
भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। धर्म के आधार पर हिंदू मैरिज एक्ट, मुस्लिम मैरिज एक्ट और क्रिस्चियन मैरिज एक्ट क्यों? सबके लिए इंडियन मैरिज एक्ट क्यों नहीं? यदि गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो सकती है, तो पूरे देश में समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू हो सकती है? यह दुर्भाग्य है कि आजादी के सातवें दशक में अभी तक यूनिफार्म सिविल कोड का ड्राफ्ट भी तैयार नहीं किया गया। शाह बानों केस के बाद समान नागरिक संहिता का विषय कई बार सुप्रीमकोर्ट गया। कुछ दिन पहले मैंने भी इसके लिए जनहित याचिका दाखिल किया था, लेकिन माननीय सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि यह सरकार के कार्य क्षेत्र में आता है।
भारत में समान नागरिक संहिता
सरकार को समान नागरिक संहिता का एक ड्राफ्ट जनता के सामने रखना चाहिए जिससे इस पर खुली चर्चा हो सके। समान न्याय के लिए अनुच्छेद-44 को लागू करना अति-आवश्यक है। महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय, राम मनोहर लोहिया और देश के शहीदों ने भ्रष्टाचार-मुक्त भारत का सपना देखा था जो आजतक पूरा नहीं हुआ। पिछले सात दशक में कई लाख करोड़ रूपये की लूट हो चुकी है लेकिन एक भी भ्रष्टाचारी को न तो आजीवन कारावास हुआ और न ही फांसी, क्योंकि हमारे यहाँ ऐसा कोई कानून ही नहीं है।
रुक नहीं रहा भ्रष्टाचार
यदि लाखों करोड़ लूटने के बाद भी अधिकतम 7 वर्ष की सजा होगी तो जिसको भी मौका मिलेगा वह लूटेगा। ईमानदार देशों में भारत अभी 76वें स्थान पर है। यदि हम 2016 में चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार, प्रशासनिक सुधार, पुलिस सुधार, शिक्षा सुधार और आर्थिक सुधार द्वारा काली अर्थव्यवस्था को समाप्त कर दें तो 2020 तक हम दुनिया के टॉप 10 ईमानदार देशों में शामिल हो सकते हैं। यह दुर्भाग्य है कि आजतक किसी भी सरकार ने टॉप 10 ईमानदार देशों में शामिल होने का टारगेट ही नहीं लिया।
नहीं हुई लोकपाल की नियुक्ति
संसद में सर्वसम्मति से “सेंस ऑफ हाउस रेजोलुशन-2011” पास किया गया था, जिसके अंतर्गत केंद्र में एक स्वतंत्र-प्रभावी लोकपाल तथा सभी राज्यों में स्वतंत्र-प्रभावी लोकायुक्त नियुक्ति होना था। केंद्र सरकार को एक मॉडल लोकायुक्त बिल और एक सिटीजन चार्टर बिल पास करना था। दुर्भाग्यवश आजतक न तो सिटीजन चार्टर बिल पास किया गया और न ही मॉडल लोकायुक्त बिल। लोकपाल बिल पास हो गया लेकिन लोकपाल की नियुक्ति अभी तक नहीं हुयी। वैसे भी बिना सिटीजन चार्टर के लोकपाल और लोकायुक्त अधूरा है। क्या हम एक और आंदोलन की प्रतीक्षा कर रहे हैं? अन्ना आंदोलन के बाद बना उत्तराखंड लोकायुक्त बिल-2011 एक स्वतंत्र प्रभावी और देश का सबसे मजबूत लोकायुक्त बिल है। भारत सरकार को इसे मॉडल लोकायुक्त बिल के रूप में पास करना चाहिए और इसे लागू करने के लिए राज्य सरकारों को एक वर्ष का समय देना चाहिए। इसके साथ ही सिटीजन चार्टर बिल को भी तत्काल लागू करना चाहिये। भ्रष्टाचार दूर करने में यह कानून मील का पत्थर साबित होगा।
एक और आंदोलन की जरूरत
दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार ने जनलोकपाल बिल और स्वराज बिल को लागू करने का वादा किया था, लेकिन ऐतिहासिक बहुमत मिलने के बाद इसे भूल गए। जन लोकपाल बिल के नाम पर एक लूला-लंगड़ा कमजोर लोकायुक्त बिल पास कर दिया और स्वराज बिल का तो नाम लेना भी छोड़ दिया। आप नेताओं की टोपी पर लिखा होता था “मुझे चाहिये जनलोकपाल” और “मुझे चाहिये स्वराज” लेकिन ऐतिहासिक बहुमत मिलते ही आप नेताओं ने टोपी पहनना ही छोड़ दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने मन का लोकायुक्त चाहते थे, लेकिन सुप्रीमकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उनके मन की मुराद अधूरी रह गयी।
कोई भी बना सकता है पार्टी
वर्तमान चुनाव कानून के अनुसार मधुकोड़ा, सुरेश कलमाड़ी, लालू यादव, ए राजा, विजय माल्या, गोपाल कांडा, मदेरणा, यासीन मलिक, जैसे लोगों से लेकर शाहबाद के रहने वाले लल्लन सिंह भी राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं, पार्टी पदाधिकारी बन सकते हैं और विधायक-सांसद का चुनाव भी लड़ सकते हैं। मैं माननीय सांसदों से पूंछता हूँ कि सजायाफ्ता अपराधियों, भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों, हत्यारों, देशद्रोहियों के चुनाव लड़ने, पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध क्यों नहीं होना चाहिये? चुनाव आयोग, विधि आयोग और जस्टिस वेंकटचलैया आयोग ने लोकतंत्र के मंदिर को साफ़ करने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। चुनाव सुधार की मेरी जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई होनी है लेकिन कायदे से यह कार्य संसद का है।
टॉप 10 ईमानदार देशों में क्यों नहीं
भारत समय आ गया है कि स्वच्छ भारत अभियान के साथ-साथ स्वच्छ संसद और स्वच्छ विधानसभा अभियान भी शुरू किया जाये। भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के लिए संसद और विधानसभा को स्वच्छ करना नितांत आवश्यक है। चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार, प्रशासनिक सुधार, पुलिस सुधार, शिक्षा सुधार और आर्थिक सुधार द्वारा काली अर्थव्यवस्था को समाप्त करने के लिए बहुत से सुझाव पेंडिंग पड़े हैं। आशा करता हूँ कि आगामी संसद शत्र में संविधान को 100 % लागू करने और चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार, प्रशासनिक सुधार, पुलिस सुधार, शिक्षा सुधार और आर्थिक सुधार द्वारा काली अर्थव्यवस्था की समाप्ति पर जरूर चर्चा होगी। अच्छी नियति और सही नीति के द्वारा हम भी 2020 तक दुनिया के टॉप 10 ईमानदार देशों में शामिल हो सकते हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और शहीदों को यह सबसे अच्छी श्रद्धांजली होगी।
जातिगत आरक्षण था महज 10 साल के लिए
संविधान को पारित करते समय बाबा साहब अम्बेडकर ने संसद से साफ साफ कहा था कि अगर 10 वर्ष के बाद भी जातिगत आरक्षण लागू रहा तो ये देश को अपंग बना देगा और उसे पारित करने वाले संविधान को मैं खुद जला दूंगा क्योंकि ये सरासर लोकतंत्र की हत्या होगी बावजूद उसके आज देश को आजाद हुए 75 वर्ष होने को आए पर आज भी लोकतांत्रिक दल जातिगत आरक्षण के नाम पर ही वोट मांगते है ये दुखद है कि जिस देश में विकास और योग्यता के नाम पर चुनाव होने की बजाय गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी के नाम पर वोट मांगे जाते है संविधान कही इसकी इजाजत नहीं देता पर संविधान को चलाने वाले ही इसका सबके ज्यादा दुरुपयोग करते है
शब्द साभार – अश्विनी उपाध्याय, सम्पत सारस्वत
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