पुलिस पर हमलें के बाद पूरे यूपी का भविष्य इसी बात पर टिका था कि विकास दुबे बचेगा या मारा जाएगा
योगिराज में पुलिस को मारोगे तो महाकाल भी नहीं बचाएंगे।
योगी जी के पास केवल दो ऑप्शन थे – या तो पुलिस का मनोबल टूट जाएं और यूपी में दुबारा अपराधियों का नंगा नाच शुरू हो जाये, या फिर अपराधियों का मनोबल चकनाचूर हो जाएं और कानून का राज और पुलिस का खौफ स्थापित हो।
पुलिस के आठ अधिकारियों की हत्या के बाद पूरे यूपी का भविष्य इसी बात पर आकर टिक गया था कि अब योगी क्या ऑप्शन चुनेंगे।
सवाल था क्या यूपी दुबारा समाजवादियों के उस दौर में चला जायेगा जहां पुलिस के बड़े बड़े अधिकारी अपराधियों की सेवा करते थे ? क्या यूपी कांग्रेस मायावती के उस दौर में चला जायेगा जहां डॉन मंत्रिमंडल में बैठते थे?
ये एनकाउंटर उसी दिन हो जाना चाहिए था, जब 17 साल पहले विकास दुबे ने थाने में घुसकर मंत्री की हत्या की थी। लेकिन तब का यूपी कुछ और ही था।
विपक्ष बेशर्मी पर उतर आया हैं – विकास दुबे जेल जाए तो चिल्लाते कि जेल से बादशाहत चलाएगा, मारा जाए तो राज छिपाने के लिए मार दिया।
योगी जी विपक्ष की नहीं सोच रहे थे। यूपी की सोच रहे थे। पुलिस के मनोबल की सोच रहे थे। और फिर वहां हुआ जो होना ही था।
यूपी पुलिस इस समय देश की सबसे शानदार पुलिस बन रही हैं। CAA विरोधी दंगे हो या कोरोना , यूपी पुलिस ने पूरे देश मे सबसे बेहतर काम किया हैं।
विकास दुबे ने गलत समय में यूपी पुलिस पर हाथ उठाया। उसने अपनी मौत उसी दिन लिख ली थी जब पुलिस वालों की हत्या का निर्णय लिया था।
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