लव जिहाद पर ‘संविधान पढ़ो’… लेकिन 3-तलाक पर ‘कानून से सामाजिक बुराई खत्म नहीं’ – ओवैसी का डबल स्टैंडर्ड
असदुद्दीन ओवैसी – भारत में इन दिनों ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून बनाने की चर्चा काफी हो रही है। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने अगले सत्र में कानून को लेकर बिल लाने की बात भी कही। वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार भी इसके खिलाफ सख्त कदम उठाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। इस बीच ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवौसी ने इसे संविधान की भावना के खिलाफ बताया है।
ओवैसी ने कहा, “इस तरह का कानून संविधान की धारा 14 और 21 के खिलाफ है। स्पेशल मैरिज एक्ट को तब खत्म कर दें। कानून की बात करने से पहले उन्हें संविधान को पढ़ना चाहिए।” साथ ही उन्होंने कहा कि बीजेपी युवाओं का ध्यान बेरोजगारी से हटाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रही है।
‘लव जिहाद’ को संविधान की भावना के खिलाफ बताने वाले ओवैसी लेकिन खुद तीन तलाक पर संविधान संशोधन क्यों नहीं पढ़ते? कानूनों को लेकर समाज में बेचैनी का या तो इन्हें अंदाजा नहीं है या जानबूझकर अपनी आँखें बंद किए हुए हैं। अपने वादे के मुताबिक मोदी सरकार ने मुस्लिम समाज में सैकड़ों साल से चली आ रही ट्रिपल तलाक जैसी गलत प्रथा को रोकने के लिए एक सख्त कानून का विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित करा दिया, लेकिन इसका विरोध करने वालों ने इसे मुसलमानों को परेशान करने वाला कानून बताया।
ट्रिपल तलाक का दंश झेल चुकी महिलाएँ इस कानून को लेकर बेहद खुश हुईं। उनकी खुशी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि राज्यसभा में विधेयक पारित होने के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के घर जाकर उन्हें बधाई दी। मुस्लिम समाज में महिलाओं का एक बड़ा तबका कानूनों में सुधार चाहता था, लेकिन मज़हबी रहनुमा और मुस्लिम नेता इसके हक़ में नहीं थे।
30 जुलाई 2019 का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। तीन तलाक विधेयक को राज्य सभा ने अपनी मंजूरी दे दी। लोक सभा से इस बिल को पहले ही मंजूरी मिल गई थी। लगभग 34 साल के अंतराल के बाद मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिला दिया। सचमुच, यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया एक अभूतपूर्व कदम था। तुष्टीकरण के चलते जो न्याय पिछली सरकारें शाहबानो जैसी महिलाओं को नहीं दे पाईं थीं, वह चिर प्रतीक्षित न्याय वर्तमान सरकार ने शाहबानो के हवाले से मुस्लिम महिलाओं को दिलाया।
विधेयक पेश किए जाने का तब विरोध करते हुए एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया था कि यह विधेयक संविधान की अवहेलना करता है और कानूनी रूपरेखा में उचित नहीं बैठता। उन्होंने कहा था कि मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय के मामलों से निपटने के लिए घरेलू हिंसा कानून और आईपीसी के तहत अन्य पर्याप्त प्रावधान हैं और इस तरह के नए कानून की जरूरत नहीं है। ओवैसी ने कहा कि यह विधेयक पारित होने और कानून बनने के बाद मुस्लिम महिलाओं को छोड़ने की घटनाएँ और अधिक बढ़ जाएँगी।
ओवैसी साहब जो राजनीति कर रहे हैं, उससे अब तक भारतीय मुसलमानों को कितना लाभ पहुँचा? इस प्रश्न का उत्तर जरा हैदराबाद के मुस्लिम समाज से माँगिए। लगभग तीन दशकों से अधिक समय से एआईएमआईएम पार्टी हैदराबाद में म्युनिसिपल एवं राज्य स्तर पर सत्ता में है। शैक्षणिक और वित्तीय स्तर पर वहाँ के मुसलमानों का कितना भला हुआ, आज तक ऐसा कोई डेटा आया नहीं।
हाँ, यह जरूर सुनते हैं कि ओवैसी खानदान के वक्फ फल-फूल रहे हैं। पुराना हैदराबाद एआईएमआईएम की म्युनिसिपल सत्ता के बावजूद वैसे ही गंदा रहता है, जैसे दूसरे शहरों की मुस्लिम बस्तियाँ गंदी रहती हैं। फिर, ओवैसी जिस डंके की चोट पर ‘मुस्लिम हित’ की बात करते हैं, हम ‘मुस्लिम नेतृत्व’ पर पिछले तीन दशकों के अधिक समय से उसी ऊँचे स्वर में मुस्लिम मुद्दों की बात सुनते आए हैं।
असदुद्दीन ओवैसी जिस ‘सीधे मुस्लिम हित की बात’ की जज्बाती रणनीति पर चल रहे हैं, वह मुस्लिम नेतृत्व की दशकों पुरानी रणनीति है। हाँ, इस जज्बाती सीधी बात की रणनीति से कुछ मुल्ला-मौलवियों और कुछ मुसलमान नेताओं के हित तो जरूर चमके लेकिन मुस्लिम समाज भारत में दूसरे दर्जे की नागरिकता के कगार पर पहुँच गया।
मुस्लिम समाज को जज्बाती ‘सीधी बात’ की राजनीति से सावधान रहने और सद्बुद्धि से अपनी क्षति नहीं बल्कि अपने हित की राजनीति का रास्ता ढूँढना चाहिए।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.
क्योंकि ये संविधान को नहीं शरिया को मानते हैं। संविधान केवल बातें बनाने का एक उपकरण है इनके लिए।