2014 के बाद जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार चुनी गई तब देश की जनता ने यह माना कि अब तुष्टिकरण की राजनीति पर विराम लगेगा मगर हाल ही में आई अल्पसंख्यक मंत्रालय की रिपोर्ट इस मान्यता को झुठलाती है। इस रिपोर्ट में अल्पसंख्यक मंत्रालय के द्वारा सरकार को सिफारिश की गई है कि मुस्लिम इलाकों में मुस्लिम पुलिसकर्मी, मुस्लिम शिक्षक और मुस्लिम स्वास्थ्य कर्मी को तैनात किया जाए। इसके मायने ये निकाले जाने चाहिए कि अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी यह मानकर चलते हैं कि देश के मुसलमानों के इलाके में अगर उनके मजहब से अलग मजहब का आदमी तैनात हो जाए तो उसकी मुकम्मल सुरक्षा नहीं की जा सकती है। 


आमतौर पर इस तरह की सोच और इस तरह की सिफारिश किसी मुफ्ती या मौलवी के द्वारा की जानी चाहिए मगर हैरानी की बात है कि यह भारत सरकार का अल्पसंख्यक मंत्रालय है और जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। बड़ा सवाल उठता है कि देश की जनता के टैक्स के पैसे से मुस्लिम इलाकों में मुस्लिम शिक्षक, मुस्लिम स्वास्थ्य कर्मी ही क्यों तैनात किया जाए? वहां किसी अन्य मजहब के आदमी को तैनात क्यों नहीं किया जा सकता है? सरकार को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि अलग मजहब के आदमी की मुस्लिम इलाकों में तैनाती करने से भारत के संविधान की आत्मा को कैसे ठेस पहुंच सकती है।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.