कहते हैं कि , किसी की भी शराफत का ,किसी के धैर्य का इतना इम्तेहान भी नहीं लेना चाहिए कि फिर विवश होकर उसे प्रतिक्रिया में अपना शक्तिमान रूप और अधिकार का प्रदर्शन करना ही पड़े। क्या लगता है -किसान आंदोलन के नाम पर ये जो तमाशा फूं फ़ाँ , लफंगो के गुट की तरह , सड़कों पर टैंट तम्बू गाड़ के तरह तरह के मेले मजमे लगाए जा रहे थे उसे सरकार , पुलिस फ़ौज हटा नहीं सकते या खाली नहीं करवा सकते।

जरूर ऐसा ही लगा होगा और हो भी क्यों नहीं जब लगभग 400 वर्दी पहने देश के बहादुर बेटों ने गणतंत्र पर देश को गनतंत्र न बनने देने के लिए खुद के हाथ पैर तुड़वा लिए , आपने ट्रैक्टर के आगे रौंदे जाने से बचने के लिए वो खाईयों में कूदते जवानों का वीडियो देखा है या नहीं , आपको जालियांवाला बाग़ में कूदते निर्दोष भारतीयों के चेहरे नहीं दिखाई दिए और कौन कर रहे थे ये सब -दिन रात सीमा पर शराब , मसाज जिम का स्टंट करते मुस्टंडे जो खुद को अलग अलग तरह से किसान कह रहे थे।

कैप्टन अमरेंद्र सिंह , अरविन्द केजरीवाल ,ममता बनर्जी ,शरद पवार और राहुल प्रियंका का तो कहना ही क्या ?? क्या इनमे से किसी ने भी एक शब्द इन जाँबाज सिपाहियों के लिए कहा। यूँ भी जब ये हमेशा ही कानून के विरोध करने वालों , नियमों को ताक पर रखने वालों और सड़क पर उतर कर अराजकता को ही पहला और आखिरी हथियार बनाए माने रखने वालों के साथ खुद ही सबसे पहले खड़े हो जाते हैं।

अरविंद केजरीवाल जो खुद एक ऐसे ही अराजक आंदोलन जो “जनलोकपाल कानून ” के नाम से मीडिया के पीपली लाइव संरक्षण में ही सफल हुआ था उसी की परिणति हैं तो स्वाभाविक रूप से सड़क पर झंडा उठाए हर व्यक्ति के साथ खड़े हो जाते हैं इससे जो बचा खुचा समय होता वो रेडियो टीवी अखबार टेलीविजन के लिए मुँह फाड़ कर हर बात का श्रेय लेने निकल जाते हैं।

राहुल गाँधी , ये खुद अपनी पार्टी पर ऐसे राहु केतु बन कर बैठ कर गए जो दिन रात पार्टी का सत्यानाश करने में लगे हैं। आजकल इनकी पूरी ब्रिगेड सोशल नेट्वर्किंग साइट्स से लेकर समाचार तंत्र के हर तमाशे में अपनी कुंठा भड़ास ,घटिया भाषा आदि तमाम अवगुणों का भरपूर प्रदर्शन कर रहे हैं। खुद राहुल गाँधी अपने हर वक्तवय से जनता के लिए शम्भू बॉर्डर जैसा मजा दे रहे हैं। जनता इन्हें कितनी गंभीरता से लेती है इस बात का अंदाज़ा इसी से लग जाता है जब एक ट्वीट के समर्थन के कई गुना इनकी लानत मलामत वाले उत्तर इन्हें लोगबाग वहीँ दे देते हैं।

जिस तरह से बार बार ये लोग अलग अलग तरह के खतरनाक षड्यंत्र से समाज के दो वर्गों को आपस में लड़वा कर स्थति को अस्थिर और अशांत करने का प्रयास कर रहे हैं वो तो अब बहु संख्यक जनता राजनैतिक परिपक्वता के मामले में बहुत अधिक सचेत हो गई इसलिए सारी कलई खुल जाती है और लोग इन साजिशों का हिस्सा बनने से खुद को बचा लेते हैं। सारा जिम्मा इसके कारण हमारी पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के हमारे सपूतों के ऊपर आ जाता है।

किसी भी आंदोलन ,प्रदर्शन ,विरोध की एक आखरी सीमारेखा यही तय रहती है कि किसी भी स्थिति में राष्ट्र और फ़ौज पुलिस के विरूद्ध कुछ भी कहा किया गया अपराध माना जाएगा और माना जाता ही है। पुलिस और फ़ौज के ऊपर खुद अपने देश के मवाली गुंडे लोफरों के झुंड द्वारा जानलेवा हमला ये बहुत गंभीर अपराध है जिसका प्रतिकार और उत्तर दिया जाना बहुत जरूरी है।

एजेंसियों ने काम शुरू कर दिया है और यकीन मानिये जब आप पुलिस को जबरन मार पीट कर अपमानित करके डराने धमकाने की कोशिश करेंगे , चाहे फिर वो किसी भी आंदोलन के नाम पर ही क्यों न हो तो कानून भी उन्हें ऐसे समय और ऐसे अपराधियों से निपटने के लिए विशेष अधिकार और शक्तियाँ देता है। लालिकले पर सेल्फी लेकर फेसबुक ट्विट्टर पर लालकिला फतह लहराने वालों को अब जेल के अंदर जाने के बारे में भी दुनिया को बताने का समय शुरू हो गया है।

अब सबके बदले हुए सुर को देखिये

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