अमरावती: फॉरेस्ट रेंज अफसर दीपाली चव्हाण ने एससी एसटी एक्ट के मामले में खुद को फसाये जाने पर गोली मारकर आत्महत्या कर ली है।

सीनियर अफसर विनोद शिवकुमार एससी एसटी एक्ट में फ़साने के लिए धमकाया था । हरिजन एक्ट लगाने की बाते कह कर धमका रहा था

यह मामला कोई नया नहीं है पिछले 3 वर्षों में हिंदुस्तान के अधिकृत कानून के इतिहास में हजारों की संख्या में योग्यताओं ने इस कानून एससी एसटी एक्ट के तहत अपनी बलि दी है और यह बड़े शर्म का विषय है कि जब पढ़ा लिखा होनहार व्यक्ति ऐसे कानून की भेंट चढ़कर जान की बाजी लगा देता है काफी ऐसे मामले विश्वविद्यालयों से आए जिसमें पढ़ लिख कर अपनी योग्यता के आधार पर अपने कैरियर को बनाने में मेहनत कर रहे योग्यताओं की बलि इसी कानून के तहत चढ़ी है

दीपाली ने अपने पति को पत्र लिखकर इस दुनिया से जाने का दुख जताया तथा खुद का भाव प्रकट करते हुए अपने सीनियर अफसर द्वारा ज्यादती होने तथा एससी एसटी एक्ट के तहत फंसा कर कानूनी कार्यवाही करवाने के तहत इस घटना को अंजाम दिया गया

आप कल्पना करिए की सरकारी और दे पर बैठकर पढ़ी-लिखी दीपाली अगर इस कानून से त्रस्त होकर अपनी जान की बाजी लगा सकती है तो हिंदुस्तान में एक आम व्यक्ति एक सामान्य व्यक्ति पर क्या गुजरती होगी जब इस तरह का वाकिया उनके सामने आता होगा कहने को महेश जी एक कानून है सही सही मायने में यह कैसा कानून है जिसे आदिवासी भी ना मानता हो इस अंधे कानून को देश की एक प्रतिशत जनता के ऊपर थोपना कहीं ना कहीं मानवाधिकारों का हनन सीधे-सीधे कानून के तहत न्यायपालिका कर रही है

कभी-कभी सोचते हैं तो मन में विचार आता है किस देश के अंदर मानव के अधिकारों को लेकर कानून बने हुए हैं आयोग बने हुए हैं और ना जाने कितने संगठन और संस्थाएं मानवाधिकारों के हक और अधिकार पर कार्य कर रही है परंतु दुख होता है कि जब भी किसी प्रकार की घटना कानून के दायरे में रहकर न्यायपालिका के तहत हिंदुस्तान की धरती पर घटती है तब मानवाधिकार के नाम पर चल रही है आयोग संस्थाएं चुप्पी साध लेती है यह दुख का विषय है इसके ऊपर आज सरकारों ने अपने कान नहीं खोलें तो कहीं ना कहीं ऐसे कानून और इस तरह की जाती देश के एक बड़े तबके को गृह युद्ध की तरफ संकेत दे रही है और कहीं ना कहीं हीन भावना से ग्रसित होकर आगे जाकर ज्यादा समस्याएं ना हो इसलिए सरकार को ऐसे कानूनों पर लगाम लगानी चाहिए

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