आप जहां तक सोच भी नहीं सकते एजेण्डावादी वहां तक भी अपने मंसूबे लिए घुसे हुए हैं। इनका बस नहीं चलता वरना अब तक तो पेड़ ,पौधे , पत्थर सबको ही तलवार के दम पर गाज़ी बना चुके होते। मौका मिला नहीं कि एजेंडा शुरू।

अब कौन सोच सकता है कि जिस दुकान या रेस्त्रां से आप कोई खरीददारी कर रहे हैं और उस सामान की खरीद की रसीद जो दी जा रही है उस पर लिखा/ छापा हुआ है -इस्लाम ही एकमात्र विकल्प है। मामला कानपुर का बताया जा रहा है और अभी जाँच के अधीन है।

चलो मान लिया कि तुम्हारे लिए ये एकमात्र विकल्प होगा , तो होता रहे भाई जान , चिचा जान। अब इस बात को क्या जमीन आसमान में सबके माथे पर कपडे लत्ते दाल चावल पर छाप दोगे तब तसल्ली मिल जाएगी।

ग्रामीण क्षेत्र में बसों की सीट पर गमछा /तौलिया /रुमाल रखकर वो सीट छापी/घेरी जाती है और ठीक वैसे ही कुछ लोग टोपी पहना कर , चावल की बोरी देकर तो कभी रसीद पर रसूल छाप कर अपना ईमान पक्का कर रहे हैं। धत्त

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