जो पंजाब का किसान हरियाणा और उसके किसानों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद SYL के पानी की एक बूंद तक देने को राजी नहीं, खुदी खुदाई नहरें भर देते है, चाहे दक्षिण हरियाणा उसकी वजह से सूखे की मार झेलता रहा, आज वो किस मुंह से हरियाणा और उसके किसानो से भाईचारे की बात टोह रहे है। तब तो आप पाकिस्तान में पानी भेजकर अपना भाईचारा निभा लेते हो, और अब भी डायरेक्ट-इनडाइरेक्ट उनके ही रहमों करम पर ये तथाकथित किसान आंदोलन चल रहा है।

अमरेंद्र सिंह ने खुद कबूला था कि ISI किसान बिल के ज़रिए दोबारा खालिस्तान आंदोलन को हवा दे सकती है। यही सब पिछले दिनों पराली जलाने के दौरान हुआ था, जब हरियाणा और उत्तर प्रदेश इसपर लगाम लगा सकते हैं, तो पंजाब क्यों नहीं, क्योंकि वहां पंथक राजनीति को इस आंदोलन के बहाने दोबारा जगाने की कोशिश है। सही अर्थों में इस आंदोलन को पकड़ेंगे तो पाएंगे कि पंजाब की कांग्रेस सरकार खालिस्तान आंदोलन को भड़काकर इस किसान आंदोलन को मजबूती दे रही है क्योंकि कांग्रेस के लिए मोदी विरोध किसी भी कीमत पर जायज है भले ही वो खालिस्तान का नाम भड़काकर किया जाए।

इस आंदोलन का किसानो से कोई वास्ता नहीं है, ऐसा होता तो देश के सब राज्यों में खेती होती है, वहां भी यही सब हो रहा होता, पंजाब का किसान पंथक राजनीति के भंवर में फंसकर इस आंदोलन को हवा दे रहा है तो हरियाणे में जाति विशेष की वजह से इस आंदोलन को थोड़ी बहुत हवा मिल रही है, कल हुड्डा को मुख्यमंत्री बना दो, हरियाणा में ये आंदोलन बिल्कुल बैठ जाएगा।

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