कविता: मैं दिल्ली हूँ

मैं ज़िंदा लाश बन ,कहीं लावारिस पड़ी हूं।कहीं आख़िरी है साँस बची ,कहीं मौत की गोद में पड़ी हूं।मैं दिल्ली हूं। मालिक मेरे छोड़...

मैं दिल्ली हुँ