पिछले साल जनवरी का पहला सप्ताह जेएनयू के लिए बहुत दुखद रहा। 5 जनवरी को कैम्पस में लाल आतंक की जो दहशत फैलाई गयी, उसकी यादें आज भी जेएनयू समुदाय के जेहन में ताज़ा हैं। लेकिन 5 जनवरी की घटना अचानक से घटित हुई घटना नहीं थी। आज जो नए विद्यार्थी आए हैं, या भविष्य में जो नयी पीढ़ियाँ आएँगी उन्हें भी इस बात का अंदाज़ा रहे की कैसे दंगों और नरसंहार का खेल खेलने वाले लाल गिरोह के लोग एक पैटर्न को फॉलो करते हैं। अराजकता की स्थिति को पसंद करने वाले लोग, राज्य, राष्ट्र और समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए बनाई गयी किसी भी व्यवस्था से घृणा करने वाले मार्क्सवादी, और खुद को साम्यवादी कहने वाले लोगो के लिए 5 जनवरी एक मौका था, जेएनयू को बर्बाद करने का! लेकिन जेएनयू 5 जनवरी के पहले भी गर्व से खड़ा था और 5 जनवरी के बाद भी, कोरोना के दौरान भी शान से खड़ा रहा है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि जेएनयू के इतिहास में 5 जनवरी एक ऐसी तारीख के रूप में दर्ज़ हो गया है, कि जिस दिन को एक ‘लाल आतंक’ के पर्याय के रूप में याद रखा जाएगा।
पिछले वर्ष जेएनयू प्रशासन द्वारा मनमाने ढंग से फीस कई गुना बढ़ायी गयी। जिसके खिलाफ आंदोलन हुए। जेएनयू का हर विद्यार्थी इन आंदोलनों में शामिल हुआ। परिषद ने सविनय अवज्ञा से लेकर भूख हड़ताल तक आंदोलन के हर लोकतान्त्रिक तरीके को अपनाते हुए इस लड़ाई को न सिर्फ लड़ा बल्कि जीता भी! परिषद के आंदोलन का ही परिणाम था कि यूजीसी को जेएनयू के लिए कोरोड़ों रुपये की राशि रिलीज करने को मानना पड़ा। लेकिन जेएनयू के भीतर बैठे लाल गिरोह को ये समाधान स्वीकार नहीं था। उन्हें कैम्पस में अराजकता बरकरार रखनी थी। इसीलिए 3 जनवरी की सुबह जब जेएनयू विद्यार्थियों ने रजिस्ट्रेशन करवाना शुरू किया तो इन वामपंथियों ने जेएनयू का वह सर्वर रूम ही तोड़ दिया जहां से जेएनयू का वाईफाई सिस्टम चलता है। सर्वर रूम को तोड़ने का एक विडियो भी सामने आया जिसमे पूरे देश ने देखा की कैसे पूर्व जेएनयूएसयू अध्यक्ष गीता कुमारी की अगुवाई में सर्वर रूम को तोड़ा जा रहा है।
अगले दिन दुबारा किसी तरह सर्वर रूम को ठीक करके रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को शुरू किया गया। लेकिन 3 तारीख से 4 तारीख आते आते कैम्पस का माहौल भयाक्रांत हो चुका था। सर्वर रूम की एक एक करके कई विडियो सामने आयीं, जिसमे मुंह पर कपड़ा बांधकर मारपीट करते हुए वामपंथी दिखाई दे रहे थे। उस दिन छात्रावासों में घूम घूम कर ये बात फैलाई गयी की रजिस्ट्रेशन न करना है, न करने देना है। ये कोई आम कन्विंसिंग की प्रक्रिया नहीं थी। खुले आम धमकी दी जा रही थी, कि रजिस्ट्रेशन करना खतरे को दावत देने जैसा है।
4 तारीख को फिर से जेएनयू के आम छात्र रजिस्ट्रेशन के लिए आगे बढ़े। सर्वर रूम को ठीक किया गया, और वहाँ सुरक्षा बढ़ा दी गयी। लेकिन वामपंथियों पर उस दिन खून सवर था। वे दुबारा सर्वर रूम पहुंचे, और इस बार सर्वर रूम को न सिर्फ तोड़ा गया, बल्कि पूरे इंटरनेट कंट्रोल सिस्टम को ध्वस्त कर दिया गया। मुंह पर नकाब पहने हुए लोग इस बार अपने मंसूबे में कामयाब हो गए थे। सर्वर रूम की हालत अब ये हो चुकी थी कि अगले कई दिनों तक इंटरनेट सिस्टम को दुबारा शुरू करना मुश्किल था। इतने के बाद भी वामपंथी गिरोह शांत नहीं हुआ। इस बार ये लोग पूरी योजना बना चुके थे, कि कैम्पस में जो भी इनकी बात के खिलाफ जाएगा उसे छोड़ा नहीं जाएगा। इनकी इस भूख और मानसिकता का शिकार हुए ढेर सारे आम विद्यार्थी जो अपना रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए अपने स्कूल और केन्द्रों के बाहर खड़े थे। एसआईएस और एसएल के बाहर खड़े हुए छात्रों को पीटा गया। और न सिर्फ छात्रों, बल्कि शिक्षकों के साथ भी दुर्व्यवहार हुआ। जगह जगह पर वामपंथी गुट बनाकर खड़े थे, और छत्रों को धमका रहे थे, भगा रहे थे।
3 और 4 जनवरी की घटनाओं ने जेएनयू के माहौल में भय का भाव भर दिया था। किसी को नहीं मालूम था कि अगले दिन क्या होगा। इन दो दिनों में परिषद ने अनगिनत बार पुलिस को कॉल किया, प्रशासन को लिखा और शिकायत की, कि जेएनयू में सुरक्षा बढ़ायी जाए। पर किसी ने इन शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया। अगले दिन 5 तारीख को लोग फिर से अपने अपने स्कूल की ओर बढ्ने लगे, की कुछ पता चले कि आगे रजिस्ट्रेशन कैसे करना है? लेकिन 5 तारीख को वामपंथियों ने पहले से तय कर रखा था कि आज अराजकता को जेएनयू में थोप देना है। SSS के बाहर पत्थरों का ढेर जमा किया गया था। उस दिन कैम्पस में वामपंथी डंडे लेकर, मुंह पर नकाब बांधकर, गुट बनाकर टहल रहे थे। SSS के पास परिषद के कुछ कार्यकर्ताओं ने देखा कि वामपंथी किसी आम छात्र को स्कूल के भीतर जाने से रोक रहे थे। कार्यकर्ता वहाँ गए और बातचीत से मामले को सुलझाने कि कोशिश की। लेकिन न उन्हें समझना था, न वे समझे। परिषद के 4 कार्यकर्ताओं को पकड़कर वामपंथी भीड़ ने एक कमरे में बंद कर दिया। उनके फोन छीन लिए गए। कई घंटों तक उन्हें कमरे में बंद रखने के बाद, उनके फोन से सारी फोटो और विडियो डिलीट करने के बाद, जब बंधक बनाए जाने की बात पूरे कैम्पस में फैल गयी तब उन्हें छोड़ा गया।
सहमे हुए कार्यकर्ता लौटकर अपने हॉस्टल आए। अभी कुछ ही समय हुआ था की खबर मिली, अड्मिन बिल्डिंग के पास विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं को दौड़ा दौड़ाकर पीटा जा रहा है। आज भी चीखते चिल्लाते, भागते हुए कार्यकर्ताओं की तब की विडियो देखकर शरीर में एक सिहरन दौड़ जाती है। अभी ये खबर फैली ही थी, कि लोगो ने देखा सुबह से SSS के आसपास इकट्ठा हुए लोग, और कैम्पस भर में लठियाँ लेकर घूम रहे लोग इकट्ठा होकर पेरियार हॉस्टल कि ओर हमला करने के लिए दौड़ने लगे। करीब 500-600 लोग पेरीयार हॉस्टल पर टूट पड़े। ऐसा लग रहा था कि किसी ने इन्हें पहले से बता रखा है कि किन कमरों को टार्गेट करना है। क्यूंकी ये लोग चुन-चुनकर परिषद के कार्यकर्ताओं के कमरों पर हमला कर रहे थे। गोदावरी ढाबे पर बैठे हुए, या आसपास पाये गए किसी भी परिषद के कार्यकर्ता को छोड़ा नहीं गया। इससे पहले कि कार्यकर्ता कुछ समझ पाते, एक साथ इकट्ठा हो पाते उन्हें उनके कमरों में घुस घुसकर उन्हें मारा गया। माहौल इतना खराब हो चुका था कि कैम्पस में हर तरफ चीख पुकार ही सुनाई दे रही थी। पेरियार के भीतर से परिषद के कार्यकर्ता भाग भागकर बचने कि कोशिश करते रहे। तभी सबने देखा, वर्तमान जेएनयूएसयू अध्यक्ष आइशे घोष कुछ गुंडों को लेकर पेरियार हॉस्टल में घुसी और उन गुंडों को हाथ के इशारे से दिखकर दिखाकर बताने लगी कि किन कमरों पर हमला करना है। घोष कि हरकतें किसी ने अगर विडियो बनाकर रेकॉर्ड न कर ली होती तो शायद इस बात पर किसी को यकीन नहीं होता।
पेरियार पर ये हमला करीब एक घंटे तक चला। किसी तरह घायल कार्यकर्ताओं को हॉस्पिटल पहुंचाया गया (हॉस्पिटल में जो हुआ, वो एक अलग किस्सा है)। कैम्पस में अभी लोग सांस भी न ले पाये थे कि गुंडो ने साबरमती हॉस्टल पर भी हमला कर दिया। यहाँ भी वही योजनाबद्ध तरीके से चुन-चुनकर कमरों के दरवाजे तोड़े गए, कार्यकर्ताओं को पीटा गया, और भय और अराजकता का जहर हवा में घोल दिया गया। साबरमती हॉस्टल में बर्बरता इस हद् तक हुई कि लड़कियों के विंग में घुसकर मारपीट कि गयी। ज़मीन पर बिखरे हुए काँच बड़े बड़े पत्थर और टूटे हुए लाठी डंडे यहाँ हुई हिंसा की गवाही देते हैं।
सवाल आज भी अनुत्तरित है, कि परिषद के कार्यकर्ताओं का दोष क्या था? क्या ये, कि उन्होने एक आंदोलन को समाधान तक पहुंचाया? या ये कि उन्होने कैम्पस में पढ़ाई लिखाई के माहौल को दुबारा स्थापित करने कि कोशिश कि? या फिर ये आम छात्र के रजिस्ट्रेशन के लिए परिषद के कार्यकर्ता खड़े हुए? या फिर ये कि परिषद ने वामपंथ के काले मंसूबों पर पानी फेर दिया?
इससे पहले कि इन कारणों पर आप विचार करें… 5 जनवरी एक लंबा दिन था, जो अभी खत्म नहीं हुआ था। दिनभर के तमाम खून खराबे और दंगे फसाद के बाद शाम को जेएनयूएसयू और जेएनयूटीए ने मिलकर एक पीस मार्च निकाला। पीस का मतलब होता है शांति! ये मार्च मौत के बाद वाली शांति का मार्च था!! जेएनयू समुदाय के विश्वास की मौत का… जेएनयूएसयू और जेएनयूटीए की मिलीभगत से जेएनयू के सौहर्द्र्पूर्ण माहौल की हत्या के बाद की शांति का मार्च था ये!!!
ABVP JNU
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