26 अक्‍टूबर भारतीय इतिहास की वो तारीख है, इतिहास में इस तारिख का अलग ही महत्व है क्योंकि जिसे कोई चाहकर भी भूल नहीं सकता है क्योंकि आज के ही दिन धरती के स्वर्ग यानी कश्मीर भारत को नसीब हुआ था।26 अक्‍टूबर 1947 को ही कश्मीर का भारत में विलय हुआ था। जम्मू-कश्मीर का विलय भारत की राजनीति और इतिहास की सबसे अहम घटनाओं में से एक रही। आजादी के तुरंत बाद पाकिस्तान की तरफ से मिल रही चुनौती के बीच जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय कराने में मिली सफलता ने उस समय इतिहास रच दिया था। आज ही के दिन जम्‍मू कश्‍मीर के महाराजा हरिसिंह ने राज्‍य के भारत में विलय के लिए एक कानूनी दस्‍तावेज को साइन किया था। इस दस्‍तावेज को ‘इंस्‍ट्रूमेंट ऑफ एक्‍सेशन’ कहा गया, जिस पर हस्ताक्षर करते ही कश्मीर अधिकारिक तौर पर भारत का हिस्सा बन गया, हरि सिंह ने ये सब अपनी सहमति से किया था क्योंकि वो भारत के प्रभुत्‍व वाला राज्‍य मानने पर सहमत हो गए थे। इस विलय के साथ ही भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर का मोर्चा संभाल लिया था। इतिहास में वर्णित है कि महाराजा हरि सिंह 25 अक्‍टूबर की रात दो बजे श्रीनगर से जम्‍मू के लिए रवाना हुए थे। 26 अक्‍टूबर को एक कैबिनेट मीटिंग हुई! 27 अक्‍टूबर को महाराजा हरि सिंह को एक चिट्ठी भेजी गई। इस चिट्ठी में उस समय के गर्वनर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने जम्‍मू-कश्‍मीर के भारत में विलय को स्‍वीकार कर लिया था।

   ( फोटो :- vskgujarat)

क्यों हुआ था ऐसा क्या था कारण –

बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान में किस नए राज्य में शामिल हुआ जाए, इसे लेकर जम्मू-कश्मीर रियासत के तत्कालीन राजा हरि सिंह काफी पशोपेश में थे। एक तरफ पाकिस्तान से कबालियों का हमला हो रहा था और दूसरी तरफ वह आजाद भी रहना चाहते थे।महाराजा हरि सिंह हिंदू थे। बंटवारे और आज़ादी के बाद सांप्रदायिक तनाव की वजह से उनके लिए अपने राज्य को स्पष्ट रूप से मुस्लिम राज्य का हिस्सा बनाना मुश्किल था।, इसलिए वो नहीं चाहते थे कि उनकी रियासत किसी मुस्लिम देश का हिस्सा बने, दूसरी ओर पाकिस्तान से आने वाले क़बायली लड़ाकों के आक्रमण से वो परेशान हो गए थे , पाकिस्तान की नई सरकार ने क़बायली लड़ाकों का समर्थन किया था और उन्हें हथियार मुहैया कराए थे जो कश्मीर में खून की होली खेल रहे थे, ग़ैर मुस्लिमों की हत्या और उनके साथ लूट पाट की ख़बरें लगातार आ रही थीं, आजादी से पहले से ही पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की कश्मीर पर नजर थी। कश्मीर में मुस्लिमों की बड़ी आबादी होने के कारण वह सोचते थे कि कश्मीर उनके देश का हिस्सा बन जाएगा। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के कई हफ्तों बाद हरि सिंह ने अपनी रियासत को पाकिस्तान या भारत के साथ विलय की इच्छा नहीं जताई। फिर पाकिस्तान ने ताकत के बल पर जम्मू-कश्मीर को हड़पने की योजना बनाई। पाकिस्तान ने महाराजा हरि सिंह से जम्मू-कश्मीर को छीनने के लिए कबायलियों की एक फौज भेजने का फैसला किया। 24 अक्टूबर 1947 को तड़के हजारों कबायली पठानों ने कश्मीर में घुसपैठ को अंजाम दिया था।तब हरि सिंह 25 अक्टूबर को जम्मू पहुंचे और ऐलान किया हम कश्मीर हार गए और उसके बाद उन्होंने अगले दिन उस काग़ज़ पर दस्तख़ कर दिया, जिसने उनकी रियासत को भारत का हिस्सा बना दिया, यह कहा जाता है कि भारत के गृह मंत्रालय के उस समय के सचिव वीपी मेनन 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू गए और विलय के कागजात पर महाराजा से दस्तख़त करवाया था।


श्रीनगर की रक्षा को पहुंची भारतीय सेना –

27 अक्टूबर को पहली सिख बटालियन श्रीनगर पहुंची। तुरंत ही श्रीनगर को पाकिस्तानी हमलावरों के कब्जे से आजाद करा लिया गया। जब जिन्ना को पता चला कि भारतीय सेना कश्मीर में पहुंच चुकी है तो उसने कथित रूप से अपने कार्यवाहक ब्रिटिश कमांडर इन चीफ जनरल सर डगलस ग्रेसी को कश्मीर में दो ब्रिग्रेड्स भेजने का आदेश दिया। एक ब्रिगेड को सियालकोट से भेजना था जो जम्मू जाती और हरि सिंह को गिरफ्तार करती। दूसरी ब्रिगेड रावलपिंडी से जाती जो श्रीनगर पर कब्जा करती लेकिन ग्रेसी ने जिन्ना की बात मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि फील्ड मार्शल सर क्लॉड ऑकिनलेक की मंजूरी के बगैर ऐसा नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वह कोई ऐसा आदेश नहीं मानेंगे जिससे भारत और पाकिस्तान में युद्ध छिड़ जाए

नेहरू की गलती क्या थी:-  

लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा था कि हमलावरों को खदेड़ने के बाद, जनता की राय पर राज्य के विलय के मुद्दे से निपटा जाना चाहिए। तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र या अंतर्राष्ट्रीय पक्ष की उपस्थिति में जनमत संग्रह के बारे में बात की। ये एक बड़ी भूल साबित हुई. बहुत से भारतीय नेता इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि ब्रिटेन पाकिस्तान का साथ देगा. यही हुआ भी.कहते हैं कि भारत विभाजन के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ढुलमुल नीति और अदूरदर्शिता के कारण कश्मीर का मामला अनसुलझा रह गया। यदि पूरा कश्मीर भारत में होता तो शायद परिस्थितियां कुछ और होतीं। लेकिन ऐसा हो नहीं सका, क्योंकि कश्मीर पर राजा हरिसिंह का राज था और उन्होंने बहुत देर के बाद निर्णय लिया कि कश्मीर का भारत में विलय किया जाए। देर से किए गए इस निर्णय के चलते पाकिस्तान ने गिलगित और बाल्टिस्तान में कबायली भेजकर लगभग आधे कश्मीर पर कब्जा कर लिया।भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाते हुए, उनके द्वारा कब्जा किए गए कश्मीरी क्षेत्र को पुनः प्राप्त करते हुए तेजी से आगे बढ़ रही थी कि बीच मेंनेहरूजी के यूएनओ में चले जाने के कारण युद्धविराम हो गया और भारतीय सेना के हाथ बंध गए जिससे पाकिस्तान द्वारा कब्जा किए गए शेष क्षेत्र को भारतीय सेना प्राप्त करने में फिर कभी सफल न हो सकी। आज कश्मीर में आधे क्षेत्र में नियंत्रण रेखा है तो कुछ क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा। अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगातार फायरिंग और घुसपैठ होती रहती है।


श्री गुरुजी और राजा हरिसिंह की ऐतिहासिक भेंट / 17 अक्तूबर, 1947 :-

( फोटो :- vskgujarat)

 15 अगस्त 1947 का दिन स्वतन्त्रता के साथ अनेक समस्याएँ थी सबसे बड़ी समस्या थी रियासतो का विलय ।अंग्रेजों ने जाते हुए एक भारी षड्यन्त्र किया। वे सभी रियासतों को यह अधिकार दे गये कि वे अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में मिल सकते हैं या स्वतन्त्र भी रह सकते हैं। ऐसी सब रियासतों को सरदार पटेल ने साम, दाम, दण्ड और भेद का सहारा लेकर भारत में विलीन कर लिया; पर जम्मू-कश्मीर के विलीनीकरण का प्रश्न प्रधानमन्त्री नेहरू जी ने अपने हाथ में ले लिया; क्योंकि वे मूलतः कश्मीर के ही निवासी थे। इसके साथ ही उनके वहाँ के एक पाकिस्तान प्रेमी मुस्लिम नेता शेख अब्दुल्ला से कुछ अत्यन्त निजी व गहरे सम्बन्ध भी थे। वे उसे भी उपकृत करना चाहते थे।जम्मू-कश्मीर रियासत के राजा हरिसिंह अनिर्णय की स्थिति में थे। वे जानते थे कि पाकिस्तान में मिलने का अर्थ है अपने राज्य के हिन्दुओं की जान और माल की भारी हानि; पर नेहरू जी से कटु सम्बन्धों के कारण वे भारत के साथ आने में भी हिचकिचा रहे थे। स्वतन्त्र रहना भी एक विकल्प था; लेकिन ऐसा होने पर यह निश्चित था कि धूर्त पाकिस्तान हमलाकर उसे हड़प लेगा। जिन्ना और शेख अब्दुल्ला इस षड्यन्त्र का तानाबाना बुन रहे थे।इधर सरदार पटेल बहुत चिन्तित थे। कश्मीर के विलय का काम नेहरू जी के जिम्मे था, इसलिए वे सीधे रूप से कुछ कर नहीं सकते थे। अन्ततः उन्होंने संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी से आग्रह किया कि वे कश्मीर जाकर राजा हरिसिंह से बात करें और उन्हें विलय के लिए तैयार करें। 17 अक्तूबर, 1947 को श्री गुरुजी श्रीनगर पहुँचे और महाराजा हरिसिंह से मिले। इस भेंट में राजा ने भारत में विलय के लिए अपनी स्वीकृति दे दी।श्री गुरुजी दो दिन श्रीनगर में रुक कर 19 अक्तूबर को दिल्ली आ गये। यद्यपि इसके बाद भी कई बाधाएँ आयीं; पर अंततः 26 अक्तूबर, 1947 को महाराजा हरिसिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर जम्मू-कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय स्वीकार कर लिया।
राजनेताओं की ढिलाई और कुछ तुष्टीकरण राजनीति के कारण कश्मीर समस्या आज भी नासूर बनी है; किन्तु वर्तमान में मोदी सरकार ने धारा 370 के ऊपर कदम उठा कर कुछ जरूर प्रयास किया है 

– पवन सारस्वत मुकलावा 

कृषि लेखक , स्वंतत्र लेखक 

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.