भारत में आश्विन मास की नवमी अर्थात नवरात्रि समाप्त होने के बाद विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। दरअसल यह पर्व भगवान श्री राम की लंकापित रावण पर जीत का उत्सव है तो दूसरी ओर यह हमारी एतिहासिक परंपराओं के निर्वहन का त्यौहार भी है।हर साल विजयादशमी का पर्व बड़ी धूमधाम से बनाया जाता है इस दिन शस्त्र पूजन का विधान है ये प्रथा कोई आज की नहीं है बल्कि सनातन धर्म से ही इस परंपरा का पालन किया जाता है. इस दिन शस्त्रों के पूजन का खास विधान है. ऐसा माना जाता है कि क्षत्रिय इस दिन शस्त्र पूजन करते हैं जबकि ब्राह्मण इस दिन खासतौर से शास्त्रों का पूजन करते हैं.विजयादशमी पर्व यानि बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार, अधर्म पर धर्म की जीत का त्यौहार. इस बार ये पर्व 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इस त्यौहार पर शस्त्र पूजा का खास विधान है यहां तक कि हमारी सेना में विजयादशमी के पर्व पर शस्त्र पूजन किया जाता है.विजयादशमी के दिन जो भी कार्य शुरु किया जाए उसमें सफलता निश्चित रूप से मिलती है. आज भी शस्त्र पूजन की ये परंपरा प्राचीन काल से जारी है उस वक्त भी योद्धा युद्ध पर जाने के लिए दशहरे के दिन का चयन करते थे. इस दिन पूजन कार्य करते है 9 दिनों की शक्ति उपासना के बाद 10 वें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन किया जाता है विजयादशमी के शुभ अवसर पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पुलिस विभाग द्वारा भी अपने शस्त्रों का पूजन किया जाता है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी शस्त्र पूजन करता है ।हमारे देश में विजयादशमी के शुभ अवसर पर देवी पूजा के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा भी कायम हैं। यह शस्त्र पूजा दशहरा के दिन ही क्यों की जाती है, इस संबंध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने हेतु नवरात्र व्रत किया था, ताकि उनमें शक्ति की देवी दुर्गा जैसी शक्ति आ जाए अथवा दुर्गा उनकी विजय में सहायक बनें। चूँकि दुर्गा शक्ति की देवी हैं और शक्ति प्राप्त करने हेतु शस्त्र भी आवश्यक है, अतऱ राम ने दुर्गा सहित शस्त्र पूजा कर शक्ति संपन्न होकर दशहरे के दिन ही रावण पर विजय प्राप्त की थी। तभी से नवरात्र में शक्ति एवं शस्त्र पूजा की परंपरा कायम हो गई।  ऐसी मान्यता है कि इंद्र भगवान ने दशहरे के दिन ही असुरों पर विजय प्राप्त की थी। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन प्रारंभ हुआ था तथा पांडव अपने अज्ञातवास के पश्चात इसी दिन पांचाल आए थे, वहाँ पर अर्जुन ने धनुर्विद्या की निपुणता के आधार पर, द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था। ये सभी घटनाएँ शस्त्र पूजा की परंपरा से जुड़ी हैं।राजा विक्रमादित्य ने दशहरा के दिन ही देवी हरसिद्धि की आराधना, पूजा की थी। छत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन देवी दुर्गा को प्रसन्न करके तलवार प्राप्त की थी, ऐसी मान्यता है। तभी से मराठा अपने शत्रु पर आमण की शुरुआत दशहरे से ही करते थे।महाराष्ट में शस्त्र पूजा आज भी अत्यंत धूमधाम से होती हैं।

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विजयादशमी पर ‘शस्त्र पूजन’ क्यों करता है आरएसएस


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 1925 में विजयादशमी यानी दशहरा के दिन हुई थी संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 में डॉ. केशव हेडगेवार जी द्वारा की गयी थी. हेडगेवार जी ने अपने घर पर ही कुछ लोगों के साथ गोष्ठी में संघ के गठन की योजना बनाई थी। दशमी पर शस्त्र पूजन का विधान है. इस दौरान संघ के सदस्य हवन में आहुति देकर विधि-विधान से शस्त्रों का पूजन करते हैं. संघ के स्थापना दिवस कार्यक्रम में हर साल ‘शस्त्र पूजन’ खास रहता है.संघ की तरफ ‘शस्त्र पूजन’ हर साल पूरे विधि विधान से किया जाता है. इस दौरान शस्त्र धारण करना क्यों जरूरी है, की महत्ता से रूबरू कराते हैं. बताते हैं, राक्षसी प्रवृति के लोगों के नाश के लिए शस्त्र धारण जरूरी है. सनातन धर्म के देवी-देवताओं की तरफ से धारण किए गए शस्त्रों का जिक्र करते हुए एकता के साथ ही अस्त्र-शस्त्र धारण करने की हिदायत दी जाती है. ‘शस्त्र पूजन’ में भगवान के चित्रों से सामने ‘शस्त्र’ रखते हैं. दर्शन करने वाले बारी-बारी भगवान के आगे फूल चढ़ाने के साथ ‘शस्त्रों’ पर भी फूल चढ़ाते हैं.इस दौरान शस्त्रों पर जल छिड़क पवित्र किया जाता है. महाकाली स्तोत्र का पाठ कर शस्त्रों पर कुंकुम, हल्दी का तिलक लगाते हैं. फूल चढ़ाकर धूप-दीप और मीठे का भोग लगाया जाता है. विजयादशमी का पर्व जगजननी माता भवानी का की दो सखियों के नाम जया-विजया पर मनाया जाता है. यह त्यौहार देश, कानून या अन्य किसी काम में शस्त्रों का इस्तेमाल करने वालों के लिए खास है. शस्त्रों का पूजन इस विश्वास के साथ किया जाता है कि शस्त्र प्राणों की रक्षा करते है. विश्वास है कि शस्त्रों में विजया देवी का वास है।इसलिए विजयादशमी के दिन पूजन का महत्व बढ़ जाता।

– पवन सारस्वत मुकलावा 

कृषि लेखक , 

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