यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

यूँ तो मनुष्य की भगवान से कोई तुलना नहीं की जा सकती, पर भगवान के दिखाए मार्ग पर चलकर उसके आशीर्वाद से उसकी तरह किसी कार्य को संपन्न करना एक समानता का भाव दिखता है। श्री कृष्णा के द्वापर युग के सारथी अवतार से सब लोग भली भाँति परिचित है, किस तरह उन्होंने अर्जुन के सारथी बनकर महाभारत के धर्मयुद्ध में पांडवो की जीत सुनिश्चित की थी।

ऐसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी “श्री राम मंदिर” की नीव रखकर एक धर्मयुद्ध में भारतीय हिन्दुओं की जीत को सुनिचित किया है।

मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत युद्ध प्रारम्भ हुआ था, जो लगातार 18 दिनों तक चला था। पर श्री मंदिर निर्माण का यह धर्मयुद्ध तो पूरे 500 वर्ष चला। जिस तरह भगवान् श्री कृष्णा महाभारत के धर्मयुद्ध में अर्जुन के सारथी बने थे, ठीक उसी तरह जब लालकृष्ण आडवाणी जी ने राम मंदिर निर्माण के लिए समर्थन जुटाने के लिए 25 सितंबर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ से रथयात्रा शुरू की थी, तब उन्होंने सारथी की रूप में तत्कालीन बीजेपी राष्ट्रीय चुनाव समिति के सदस्य “नरेंद्र मोदी जी” को चुना। मगर, यह रथयात्रा अयोध्या तक नहीं पहुंच पाई। अयोध्या पहुंचने से पहले ही बिहार में लालकृष्ण आडवाणी जी को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर 23 अक्टूबर को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया।

1991 में एक बार फिर जब मुरली मनोहर जोशी जी ने श्री राम मंदिर को लेकर कन्याकुमारी से जम्मू कश्मीर तक की यात्रा की, तब भी उनके साथ नरेंद्र मोदी जी थे। तब एक पत्रकार ने अप्रैल 1991 में अयोध्या में नरेंद्र मोदी जी से एक प्रश्न किया की अब आप अयोध्या फिर कब आएंगे, तो तुरंत नरेंद्र मोदी ने जवाब दिया, ‘अब अयोध्या तब आऊंगा जब राम मंदिर का निर्माण शुरू होगा।’, लेकिन यह किसको पता था कि नरेंद्र मोदी ने जो उस वक्त कहा था, वह 29 साल बाद सच साबित होगा। इतना ही नहीं, राम मंदिर का भूमि पूजन भी नरेंद्र मोदी के हाथों ही होगा।

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