जन्म जयंती विशेष : 23 जनवरी
हिन्दुस्तान की आज़ादी में यूं तो हज़ारों, लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी आहुति दी भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से आजाद करवाने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया किंतु एक महान सपूत जिसने देश को गुलामी की जिंदगी से मुक्त कराने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया और सारे देश को एकजुट कर दिया ,राष्ट्र की आजादी के लिए कुछ भी कर गुजरने के ऐसे उदाहरण इतिहास में शायद ही मिलें, ऐसा नाम जो आज के युवाओं को हमेशा प्रेरणा देता है और ज़ेहन में देश के लिए कुछ कर गुज़रने का जज़्बा पैदा करता है, उस नाम को हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से जानते हैं।
आज की युवा पीढ़ी भले ही आजादी के महत्व से अनभिज्ञ हो, परंतु जिन महान सपूतों ने भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है, उन्हें यह अच्छे से पता था कि स्वराज क्या होता है और देश की आजादी का क्या मतलब होता है ,भारतवर्ष के स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानियों में से एक सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे उनकी 23 जनवरी को 125 वीं जयंती है ,23 जनवरी 1897 को ब्रिटिश भारत के तत्कालीन बंगाल प्रांत के कटक (वर्तमान में ओडिशा में) में हिन्दू कायस्थ परिवार में जन्म हुआ था उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था ,अपनी शुरुआती स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता में प्रवेश लिया परंतु उनकी उग्र राष्ट्रयुक्त गतिविधियों के कारण उन्हें वहां से निष्कासित कर दिया गया कॉलेज से निष्कासित होने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये अपने पिता की आज्ञा अनुसार कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, लंदन में रहते हुए अपने पिता की आज्ञा की पालना करते हुए वर्ष 1919 में भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की ओर वहाँ उनका चयन भी हुआ हालांकि बोस ने सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया क्योंकि उनका मानना था कि वह अंग्रेजों के साथ कार्य नहीं कर सकते , नेताजी के मन में अंग्रेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया, अब नेताजी अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले,चल पड़े थे राष्ट्रकर्म की राह पर, उनकी उद्दंड देशभक्ति ने उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक बना दिया था वह क्रांतिकारी नेता थे और वो किसी भी कीमत पर अंग्रेजों से किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं करना चाहते थे। उनका एक मात्र लक्ष्य था कि भारत को आजाद कराया जाए। स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे, उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे,जबकि चित्तरंजन दास उनके राजनीतिक गुरु थे वर्ष 1921 में बोस ने चित्तरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र ‘फॉरवर्ड’ के संपादन का कार्यभार भी संभाला था।
हमारे देश के इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ जो एक साथ महान सेनापति, वीर सैनिक,राजनीति का अद्भुत योद्धा और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरुषों, नेताओं के समकक्ष बैठकर कूटनीतिज्ञ तथा चर्चा करने वाला हो, बंगाल के बाघ कहे जाने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ‘अग्रणी’ स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे ,उनके नारे ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ से युवा वर्ग में एक नये उत्साह का प्रवाह हुआ था, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ यह केवल एक नारा नहीं था। इस नारे ने भारत में राष्ट्रभक्ति का ज्वार पैदा किया,जो भारत की स्वतंत्रता का बहुत बड़ा आधार भी बना। इस नारे को भारत में ही नहीं बल्कि समस्त भू मंडल पर प्रवाहित करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस वह नाम है जो शहीद देशभक्तों के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा है। सुभाष चंद्र बोस की वीरता की गाथा भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी सुनाई देती है ,नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथनी और करनी में गजब की समानता थी। वे जो कहते थे, उसे करके भी दिखाते थे। इसी कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कथनों से विश्व के बड़े दिग्गज भी घबराते थे ,उनके व्यक्तित्व एवं वाणी में एक ओज एवं आकर्षण था ,नेताजी भारत के ऐसे सपूत थे जिन्होंने भारतवासियों को सिखाया कि झुकना नहीं बल्कि शेर की तरह दहाडऩा चाहिए, नेताजी ने जो आह्वान किया वह सिर्फ आजादी प्राप्त तक ही सीमित नहीं था बल्कि भारतीय जन-जन को युग-युग तक के लिए वीर बनाना था।
नेताजी ने आत्मविश्वास, भाव-प्रवणता, कल्पनाशीलता और नवजागरण के बल पर युवाओं में राष्ट्र के प्रति मुक्ति व इतिहास की रचना का मंगल शंखनाद किया। किसी राष्ट्र के लिए स्वाधीनता सर्वोपरि है इस महान मूलमंत्र को शैशव और नवयुवाओं की नसों में प्रवाहित करने, तरुणों की सोई आत्मा को जगाकर देशव्यापी आंदोलन देने और युवा वर्ग की शौर्य शक्ति उद्भासित कर राष्ट्र के युवकों के लिए आजादी को आत्मप्रतिष्ठा का प्रश्न बना देने वाले नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने स्वाधीनता महासंग्राम के महायज्ञ में प्रमुख पुरोहित की भूमिका निभाई।
नेताजी के लिए स्वाधीनता ‘जीवन-मरण’ का प्रश्न बन गया था। नेताजी ने पूर्ण स्वाधीनता को राष्ट्र के युवाओं के सामने एक ‘मिशन’ के रूप में प्रस्तुत किया। बोस जी ने देखा कि शक्तिशाली संगठन के बिना स्वाधीनता मिलना मुश्किल है। वे सन 1942 में जर्मनी से टोकियो गए और वहां पर उन्होंने आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की। उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का नेतृत्व किया था। कम पैसों और सीमित संख्या में सैनिक होने पर भी नेताजी ने जो किया, वह प्रशंसनीय है। नेताजी भारत को एक महान विश्व शक्ति बनाना चाहते थे। उनकी नजर में भारत भूमि वीर सपूतों की भूमि थी, इसी भाव को वह हर हृदय में फिर से स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने अंडमान निकोबार को भारत से पहले ही स्वतंत्र करा दिया। उस समय उनके द्वारा दिया गया जय हिंद का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है।
स्वाधीनता संग्राम के अन्तिम पच्चीस वर्षों के दौरान उनकी भूमिका एक सामाजिक क्रांतिकारी की रही और वे एक अद्वितीय राजनीतिक योद्धा के रूप में उभर के सामने आए. कहा जाता है कि वीर पुरुष एक ही बार मृत्यु का वरण करते हैं, लेकिन वे अमर हो जाते हैं। उनके यश और नाम को मृत्यु मिटा नहीं पाती है। ऐसे स्वाधीनता महासंग्राम के महायज्ञ में प्रमुख पुरोहित की भूमिका निभाने वाले नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 एक विमान दुर्घटना में जापान या ताइवान में बताई जाती है किंतु नेताजी की मृत्यु अब भी विवादों ओर रहस्य में है, क्योंकि मृत्यु का असली कारण पता नही लग सका है नेताजी के शरीर का कोई चिन्ह न मिलने की वजह से बहुत से लोगों को नेताजी की मौत पर संदेह भी रहा है ।
केंद्र सरकार ने पूरे देश में नेताजी के जन्मदिवस को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला भी लिया इसी दिन नेताजी के शब्दों को हमें पुनः दोहराना और स्वीकारना होगा ओर ‘स्मरण’ रखना होगा कि अपनी समवेत चेष्टा द्वारा हमें भारत में नए शक्ति-संपन्न राष्ट्र का निर्माण करना है।
– पवन सारस्वत मुकलावा
कृषि एंव स्वंतत्र लेखक
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