संयुक्त राष्ट्र के विशेष सत्र में अपनी बात रखते हुए 10 अप्रैल 1974 को आधुनिक चीन के वास्तुकार डेंग जिओ पेंग ने कहा था:

“चीन एक समाजवादी देश है, और विकासशील भी। चीन तीसरी दुनिया का देश है। अध्यक्ष माओ की दी सीख पर लगातार चलते हुए, चीनी सरकार और लोग दृढ़ता से सभी उत्पीड़ित लोगों और दमित राष्ट्रों के जीतने या राष्ट्रीय स्वतंत्रता की रक्षा के उनके संघर्ष में उनके साथ हैं और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था विकसित कर उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और आधिपत्यवाद का विरोध करते हैं। यह हमारा अपरिहार्य अंतरराष्ट्रीय कर्तव्य है। चीन कोई महाशक्ति नहीं है, न ही वह कभी ऐसा होना चाहेगा। महाशक्ति क्या होती है? महाशक्ति वह साम्राज्यवादी देश होता है जो हर तरह से अन्य देशों पर अपनी आक्रामकता, हस्तक्षेप, नियंत्रण, तोड़फोड़ या लूट से विश्व आधिपत्य का प्रयास करता है। यदि पूंजीवाद को किसी बड़े समाजवादी देश में बहाल किया जाता है, तो वह देश अनिवार्य रूप से महाशक्ति बन जाएगा। महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति, जो हाल के वर्षों में चीन में हुई और लिन पियाओ और कन्फ्यूशियस की आलोचना का अभियान, जो अब पूरे चीन में चल रहा है, दोनों का उद्देश्य पूंजीवादी बहाली को रोकना है और यह सुनिश्चित करते रहना है कि समाजवादी चीन अपना रंग कभी नहीं बदलेगा और हमेशा पीड़ित लोगों और उत्पीड़ित राष्ट्रों के साथ खड़ा होगा। अगर किसी दिन चीन को अपना रंग बदलना पड़ा और उसने खुद को महाशक्ति में बदलना चाहा, अगर उसे भी दुनिया में अत्याचारी की तरह खेलना पड़ा और हर तरह से दूसरों को वह आक्रामकता और शोषण से डराने-धमकाने लगा, तो दुनिया के लोगों को उसकी पहचान सामाजिक-साम्राज्यवाद के रूप में करना चाहिए, तब  उसे उजागर कर उसका विरोध करो और चीनी लोगों के साथ मिलकर उसे उखाड़ फेंकने का काम करो।”

(https://www.marxists.org/reference/archive/deng-xiaoping/1974/04/10.htm)

आज विश्व में चीन की स्थिति को देखते हुए यह महत्वपूर्ण विचारणीय कथन है। राष्ट्रपति शी जिन पिंग, जिन्होंने खुद को चेयरमैन माओ और देंग जिओ के समान समझ लिया है, उन्हें अब चिंतित नेता के रूप में गंभीर दबाव में होना चाहिए।

उनकी पारंपरिक योजनाबद्ध रणनीति काम नहीं कर रही है। विश्व के नेता उनके दबाव की रणनीति के आगे झुक नहीं रहे हैं। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ लेकिन अब विश्व के नागरिक पूरी तरह से चीनी उत्पादों को दूर खदेड़ने के लिए तैयार हैं। वहाँ के लोगों और मशीनों की सावधानी से बनाई गई छवि तेजी से धूमिल होने लगी है। चीन अपने सदाबहार सहयोगी पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के साथ रह गया है, जो दोनों अपने मास्टर के निर्देश के अनुरूप करेंगे।

पिछले एक साल में, चीनी अर्थव्यवस्था को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

  1. वुहान वायरस (राष्ट्रपति ट्रम्प के अनुसार कुंग फ्लू), जिसने दुनिया में तबाही मचा दी है। चीन में कितने लोग मारे गए हैं, यह कोई नहीं जानता।
  2. चीनी अर्थव्यवस्था कुछ तो बंद के कारण और कुछ दुनिया भर के खरीदारों के बीच बढ़ती चीन विरोधी भावना से परेशानी में है।
  3. सीसीपी की भीतरी चुनौतियाँ, विशेष रूप से शी के “आजीवन राष्ट्रपति” के उनके द्वारा किए गए “संविधान” संशोधन के बाद।

समीकरण का दूसरा महत्वपूर्ण हिस्सा है शी का ड्रीम प्रोजेक्ट- एक पट्टी,एक मार्ग पहल (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव-बीआरआई), जो उनकी प्रमुख उपकरण के रूप में ऋण का उपयोग करके आर्थिक उपनिवेश की नीति की आधारशिला है। बीआरआई के लिए चीन के साथ हस्ताक्षर करने वाले लगभग हर देश को अब पता चल चुका है कि इसमें उनके लिए कुछ भी नहीं है। चीन की चेकबुक कूटनीति को गंभीर प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।

बीआरआई का एक बड़ा भाग बलूचिस्तान (चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे- सीपीईसी) से होकर जाता है, जो पाक अधिकृत कश्मीर में है। ऐसे में बलूचिस्तान के विद्रोही और भारत यह सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास करेंगे कि इस सीपीईसी परियोजना को पूरा नहीं होने दिया जाए। इससे चीन और पाकिस्तान दोनों आहत होंगे।

अनंतकाल से ध्यान आकर्षित करने का सबसे अच्छा स्वीकृत रूप है कि आंतरिक समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए पड़ोसियों के साथ युद्ध/ परेशानी शुरू कर दी जाए, इस आशा में कि राष्ट्रवादी भावनाएँ नागरिकों का ध्यान आकर्षित करेंगी। यह हम उन सभी 14 देशों के साथ देख रहे हैं जिनकी सीमाएँ चीन से लगी हैं या जो चीन के साथ अंतर्राष्ट्रीय जल साझा करते हैं। भूटान (पशु आरक्षित क्षेत्र के लिए) से लेकर रूस (पूरे व्लादिवोस्तोक क्षेत्र के लिए) से मंगोलिया,जापान, ऑस्ट्रेलिया से म्यांमार तक, चीन ने हर जगह पुराने मुद्दों को फिर हवा दी है।

चीन से प्रभावित सभी देश अब बोलने लगे हैं। दक्षिण पूर्वी एशियाई देश भी, जो परंपरागत रूप से चुप देखे गए हैं, अब दक्षिण चीन समुद्र के बारे में चीन के खिलाफ बात कर रहे हैं।

भारत का लंबे समय से हमारी 3488 किलोमीटर लंबी सीमा पर चीन के साथ विवाद रहा है। अंग्रेजों ने वर्ष 1914 में भारत और तिब्बत के बीच की सीमा को “मैकमोहन रेखा” कहा था, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) कहा जाता है। तिब्बत पर कब्जा करने के बाद, चीन ने इस समझौते को मान्यता देने से इनकार कर दिया। इस तरह चीन पूरे उत्तर पूर्व (भारत के 7 राज्यों) सहित भारत के विभिन्न हिस्सों पर अपना दावा करता आ रहा है।

अतीत में, भारतीय राजनेताओं का विभिन्न कारणों से उनके सक्षम नौकरशाहों ने समर्थन कर चीन को चुनौती नहीं दी, बल्कि इस उम्मीद में “किसी भी तरह से झूठ बने रहने दो” को प्राथमिकता दी कि कभी तो अच्छी भावना प्रबल होगी। वे जानते थे कि चीन अडिग है, लेकिन असुविधाजनक स्थितियों को हमेशा कालीन के नीचे सरकाना आसान होता है। इसके चलते भारत के बड़े भू-भाग चीन के कब्जे में आ गए और जहाँ अब उसने अपना दावा कर लिया है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में हांगकांग और ताइवान का समर्थन किया है और वायरस के कारण की जाँच की माँग कर रहा है। यह भारत के तिब्बत की स्वायत्तता के मामले को उठाने से ठीक पहले की बात होनी चाहिए।

हाल ही में गालवान घाटी में 15 जून 2020 को हुई झड़प में चीनियों ने सोचा था कि वे भारत की ओर “रेंगते” रहेंगे, जैसा कि उन्होंने अतीत में किया था। श्री मोदी के नेतृत्व में इसे न केवल रोक दिया गया, बल्कि साथ ही साथ इसका दो टूक जवाब भी दिया गया। जबकि 20 भारतीय सैनिक मारे गए, मैंने वरिष्ठ अधिकारियों से सुना कि अपने कमांडिंग ऑफिसर को मरते देखने के बाद प्रतिशोध में क्रुद्ध भारतीय सेना द्वारा 75 से अधिक चीनी सैनिक मार दिए गए थे। एक सिख सैनिक के शहीद होने से पहले अपने “कृपाण” से 12 लोगों को मारने की कहानियाँ घूम कर रही हैं। इस तरह मिथकों का जन्म होता है, जो सही भी है।

चीनियों को पीछे खदेड़े जाने की आदत नहीं है।

वे दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली सेना होने के अपने स्व-निर्मित मिथक के साथ जी रहे हैं। क्या कोई सेना, जो अमूमन बंदूक और कम्युनिस्ट विचारधारा की शक्ति से चल रही है, विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षित भारतीय सेना के खिलाफ लड़ सकती है, जो अपनी धरती को अपनी माता मानते हैं और इसकी रक्षा के लिए अपने जीवन का खुशी-खुशी बलिदान करने को तैयार हैं?

अतीत में हमारे राजनेताओं ने भारतीय सेना के हाथ उनकी पीठ से पीछे बाँध दिए थे। प्रधानमंत्री मोदी ने यह जानते हुए कि वे योग्य हैं, सेना को जवाब देने की स्वतंत्रता दी है। श्री मोदी ने लद्दाख में टिप्पणी की, कि भारत जानता है कि कैसे भगवान कृष्ण की बांसुरी बजाना और कैसे अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग करना है, यह स्पष्ट रूप से भारत की विदेश नीति के चीन के साथ पूर्ण परिवर्तन का संकेत देती है। न केवल हम अपनी धुन में आक्रामक नृत्य करना जानते हैं, बल्कि हम यह भी जानते हैं कि खुद को बचाने के लिए सबसे घातक हथियारों का उपयोग कैसे करना है।

यह देखना दिलचस्प है कि कैसे अधिकांश देश भारत के समर्थन में आए हैं। फ्रांस ने भी भारत के समर्थन में अपने जमीनी सैनिकों को भेजने की पेशकश की है! रूस 21 मिग 29 और 12 सुखोई विमानों के साथ दुनिया के सबसे उन्नत सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली एस-400 को भेजने की तेजी दिखा रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत के आसपास से जापान तक पानी में 3 विमान वाहक तैनात किए हैं और प्राथमिकता पर हेलीकॉप्टरों को भेजने में तेजी ला रहा है।

एक ही समय में इतनी सारे दिशाएँ खोलना या तो राष्ट्रपति शी की अच्छी तरह से तैयार की गई कोई रणनीति है या यह चीन के भीतर क्षेत्रीय क्षत्रप हो सकते हैं, जो अपने बल का स्वतंत्र प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर क्षत्रपों की बात है, तो दुनिया को चिंता करने की जरूरत है। क्या किसी को लगता है कि यह चीन के बालकनिकीकरण की ओर जाता है, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के समान है?

क्या राष्ट्रपति शी के दिन भर गए हैं? क्या उन्हें चेहरा छिपाकर भागने का मौका दिया जाएगा? क्या पार्टी के भीतर महत्वाकांक्षी और आक्रामक युवा नेताओं का एक और समूह है, जो देश को अलग दिशा देने के लिए “ड्रैगन सिंहासन” का दावा करने की साजिश कर रहे हैं?

क्या यह चीन के नेतृत्व के लिए डेंग जिओ पेंग के भविष्यसूचक शब्दों की ओर वापस जाने और दुनिया को नियंत्रित करने की कोशिश करने उसके बजाय के साथ रहना सीखने का समय है?

यह तो समय ही बताएगा।

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लेखक कार्यकारी कोच, कथा वाचक (स्टोरी टेलर) और एंजेल निवेशक हैं। वे अत्यधिक सफल पॉडकास्ट के मेजबान हैं जिसका शीर्षक है द ब्रांड कॉल्ड यू- The Brand Called You, राजनीतिक समीक्षक और टीकाकार के साथ वे गार्डियन फार्मेसीज के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। वे 6 बेस्ट सेलर पुस्तकों के लेखक हैं और कई ऑनलाइन समाचार पत्रों के लिए लिखते हैं।

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  • अनुवादक- स्वरांगी साने – अनुवादक होने के साथ कवि, पत्रकार, कथक नृत्यांगना, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षक, भारतीय भाषाओं के काव्य के ऑनलाइन विश्वकोष-कविता कोश में रचनाएँ शामिल। दो काव्य संग्रह- काव्य संग्रह “शहरकीछोटी-सीछतपर” मध्यप्रदेश साहित्य परिषद, भोपाल द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित और काव्य संग्रह “वह हँसती बहुत है” महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा द्वारा स्वीकृत अनुदान से प्रकाशित।

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