3 जून 2020 ,को दिल्ली के एक व्यवसायी ने सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा दायर करके यह माँग उठाई कि ,इंडिया नाम से गुलामी मानसिकता झलकती है तथा विश्व के अन्य देशों की तरह हमारे देश का भी सिर्फ एक ही नाम होना चाहिए और वो सिर्फ और सिर्फ भारत ही हो सकता है | अदालत ने ये मांग ख़ारिज करते हुए ये स्पष्ट कह दिया कि ,चूँकि संविधान में भारत नाम का उल्लेख पहले से है इसलिए अब ये सरकार को तय करना है कि उसे किस नाम का उपयोग सरकारी और सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन और अभिलेख के लिए करना है और सरकार इस विषय पर निर्णय लेने को स्वतन्त्र है |
सूत्रों की मानें , इस दिशा में काम शुरू किया जा चुका है और बहुत जल्द हम सब न सिर्फ “भारत माता की जय ” के नारे को विश्व व्यापी जयघोष से बुलंद करेंगे बल्कि गर्व से कह सकेंगे ,हाँ हम “भारत वासी हैं ” |
इण्डिया बनाम भारत की लड़ाई भी एक दो दिनों की नहीं है बल्कि इसके बीज जो अंग्रेज बो कर गए थे उसे भारत की संविधान समिति के बहुत से विमर्शों (जिन्हें कभी लोगों के सामने नहीं लाया गया ) ने एक ऐसे वृक्ष का रूप दे दिया कि जिसकी जड़ें आजादी के बाद से तीसरी और चौथी पीढ़ी तक हस्तांतरित की जा रही है | इसलिए आज और अभी सबसे उपयुक्त अवसर है जब इस देश का एकमात्र सर्वग्राह्य नाम भारत के रूप में अधिष्ठित कर दिया जाए |
भारतीय संविधान में वर्णित “इण्डिया जो कि भारत है “ सिर्फ इस पांच शब्द पर बहस और विमर्श के लिए 17 सितम्बर 1949 का दिन तय किया गया और चूँकि संविधान निर्माण का काम बहुत ही वृहत था इसलिए संविधान समिति के अध्यक्ष डा आंबेडकर चाहते थे कि आधे घंटे की बैठक में इस पर फैसला हो जाए | किन्तु बहस की शुरुआत होते ही ये लग गया कि ये विषय ऐसा नहीं है जो तुरंत और लघु विमर्श से निर्णीत हो जाएगा | इसलिए अगले पूरे दिन इसी विषय पर विमर्श हुआ |
इस बहस में प्रमुख रूप से , सेठ गोविन्द दास ,कमलापति त्रिपाठी , तथा दो कांग्रेसी प्रतिनिधियों श्रीराम सहाय और हरगोविंद पंत और ऑल इण्डिया फॉरवर्ड ब्लॉक के हरि विष्णु कामथ ने हिस्सा लिया |सबसे पहले कामथ जी ने प्रस्ताव दिए कि इसे लिखे जाए -भारत ,जिसे अंग्रेजी भाषा में इंडिया कहा जाएगा ” |
सेठ गोविन्द दास जी ने कहा – भारत जो विदेशों में इंडिया के नाम से जाना जाएगा” लिखा जाए | कमलपति त्रिपाठी जी ने कहा ” इंडिया जो की भारत है के बदले भारत जो कि इंडिया है -लिखा जाए | जबकि हरगोविंद पंत जी ने स्पष्ट कहा कि सिर्फ और सिर्फ “भारतवर्ष” कहा जाए | अंत में इस विवाद को बढ़ता देख राम सहाय जी ने घोषणा की ,कि ये निर्विवाद रूप से सत्य है कि इस देश का नाम भारत से बेहतर और इसके अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकता | गौर करने वाली बात यही है कि किसी ने भी भारत से पहले इंडिया नहीं लगाया न ही कहा ”
इसके बावजूद , इंडिया को भारत से पहले तरजीह देकर ,… हिंदी ,हिन्दू, हिन्दुस्तान की परिकल्पना को हमेशा के लिए दबा देने के यत्न किये गए और डॉ अंबडेकर और नेहरू जी ने “इण्डिया जो भारत है ” को ही अंतिम रूप से चुन लिया |
अब समय आ गया है कि इस देश के अपनी संस्कृति ,अपने इतिहास और संप्रभु के प्रतीक के रूप में सिर्फ और सिर्फ भारत के नाम से जाना और पुकारा जाए | सरकार आने वाले दिनों में इसके लिए सभी वैधानिक उपायों पर विचार विमर्श शुरू करने जा रही है | आइये हम सब भारत वासी अपने भीतर के भारत को अब दुनिया के सामने लेकर आएं | जय भारत ,जय हिन्द
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