भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति से हम सभी भली भांति परिचित हैं। जिस भारतीय समाज में “नारी तू नारायणी” और “यत्र नारी पूज्यन्ते” जैसी ऋचाएं गाई जाती थीं उसी भारतीय समाज में उन्हें कमजोर और अबला का तमगा भी पहनाया गया। नतीजतन हम सबने देखा कि उस समय के भारत ने विश्व को ज्ञान और वैराग्य के साथ साथ आध्यात्मिक संतुष्टि दी, वहीं गणित, विज्ञान और अनेकानेक विषयों का सार समझाया। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे जीवन के लक्ष्य दिए। आज उसी समाज का हाल किसी से छिपा नहीं है।
ऐसी दयनीय परिस्थिति में यदि कोई महिला अपने कठिन परिश्रम से कोई ऊँचा मुकाम हासिल करे तो उसे बहुत सम्मानित नजरों से भी देखा जाता है। वहीं दूसरी ओर तमाम महिलाओं को, नन्हे बच्चों को, वृद्ध माताओं को यही समाज बहिष्कृत भी कर देता है, जिसके अनेक उदाहरण नारी निकेतन, वृद्धाश्रम और अनाथालय के रूप में मुँह बाये खड़े हमारी सभ्यता और संस्कृति को चिढ़ाते भी दिखते हैं।
ऐसे में वृन्दावन के वात्सल्यग्राम में एक अनूठा प्रयोग किया गया है जो अपने आप में विशिष्ट है, जिसमें वृद्ध माताओं को उन समाज से बहिष्कृत बच्चों और निराश्रित महिलाओं के साथ एक परिवार के रुप में रखा जाता है। यूँ इन्हें अलग अलग आश्रमों में भी रखा जा सकता था लेकिन इन सबको एक दूसरे के साथ एक दादी/नानी/माँ/मौसी बनाकर बच्चों को उनके साथ रिश्तों की ऐसी डोर में बांध दिया जाता है जहाँ रक्त-सम्बन्ध न होते हुए भी परिवार का प्रेम, माँ का वात्सल्य और नानी का स्नेह प्राप्त होता है।
इस प्रकार एक दूसरे के साथ कोई सम्बन्ध न रखते हुए भी ये सभी लोग एक साथ एक आत्मीय सम्बन्ध रखते हैं। एक अपार्टमेंट में रहते हैं, साथ खाते खेलते हैं और वही सब जो एक साधारण परिवार में होता है, करते हैं। इस प्रकार जहाँ समाज में सगे सम्बन्धी एक दूसरे से मुँह फेर लेते हैं, वात्सल्यग्राम में उनमें प्रेम की वात्सल्य की वही डोर बांध देती है जिससे वो जीवन पर्यन्त मुक्त नहीं हो सकते।
एक वात्सल्य परिवार की शुरुआत होती है पालना गृह से जहाँ लोग अपने कुछ दिन से लेकर कुछ महीने तक के बच्चों को पालने में डाल जाते हैं, जिससे साइरन बजने पर उन्हें उठा लिया जाता है और मेडिकल चेक अप के बाद किसी माँ को सौंप दिया जाता है।
चूँकि ये बच्चे अपने पोषण के लिए दूध पर आश्रित रहते हैं तो माँ के अभाव में इन्हें गौमाता के दूध से पोषित किया जाता है, इस कामधेनु गौशाला में अभी 175 स्वदेशी नस्ल की गोमाताए हैं।
सभी प्रकार के स्वास्थ सेवाओं के लिए इस वात्सल्य के गाँव में तीन चिकित्सालय भी हैं, जिनमें सभी प्रकार की आधुनिकतम चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं। जिसमें नेत्र चिकित्सालय में तीन महीने के अंतराल ओर मुफ्त ऑपरेशन भी होते हैं। ये तीनों अस्पताल मुफ्त हैं और गरीबों को समर्पित हैं।
इसी प्रकल्प में एक विद्यालय गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले बच्चों के लिए है जिसमें उन्हें मुफ्त भोजन, कपडे, शिक्षा और स्टेशनरी भी दी जाती है। लड़कियों को समाज की प्रगति में एक सुनिश्चित सफलता दिलाने के लिए संविद गुरुकुलम नामक विद्यालय भी चलाया जाता है जिसमे कुछ अंतर्राष्ट्रीय बच्चे भी अध्ययनरत हैं, इस विद्यालय की खासियत है, उच्च स्तरीय आधुनिक शिक्षा के साथ वैदिक शिक्षा का ज्ञान जिसमें वेदों के ऊपर भी कक्षाएं आयोजित की जाती हैं। आधुनिक विकास के साथ सांस्कृतिक और नैतिक विकास का ऐसा संगम आपको किसी दूसरे विद्यालय में नहीं मिलेगा जहाँ संस्कृत और अंग्रेजी एक दूसरे की प्रतिस्पर्धी नहीं साथी हैं, जहाँ समस्या समाधान के लिए एक काउंसलर भी है तो खेलकूद के लिए अलग कोच और नृत्य और संगीत अकादमी भी जहाँ बच्चे सिर्फ विज्ञान और वेद ही नहीं, कला और संस्कृति भी सीखते हैं और उसके माध्यम से व्यावहारिक और वाणिज्यिक समझ भी विकसित करते हैं।
एक स्कूल ऐसा भी है जहाँ विशिष्ट बच्चों का इलाज और शिक्षा होती है जिसमें स्पीच थेरेपी और फिजियोथेरेपी के साथ अन्य कई प्रकार की चिकित्सकीय पद्धतियों का उपयोग कर बच्चों के डाउन्स सिंड्रोम, आटिज्म आदि तमाम उपचार कर उन्हें उद्यमिता प्रशिक्षण के माध्यम से समाज की मुख्या धरा में लेन का महान कार्य किया जाता है। इन बच्चों के बनाये उत्पाद प्रदर्शित कर इन्हें प्रेरित किया जाता है और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेने भेजा जाता है।
ऐसे तमाम उपक्रम वात्सल्यग्राम में चलाये जाते हैं, आप भी चाहें तो समाज कल्याण के महान कार्य में सहयोग कर सकते हैं जिसका बीड़ा महा तपस्विनी पूज्यनीय दीदी माँ ऋतम्भरा जी ने उठाया है। दीदी माँ राम मंदिर आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा रही हैं और समाज सुधारक के साथ साथ एक कुशल नेतृत्वकर्ता भी हैं। आइये हम सब मिलकर इस परोपकारी कार्य में सहयोग करें और पुण्य लाभ कमाएं।
जय माँ सर्वमंगला
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