वर्ष 1940 को जब पूज्य हेडगेवार जी का स्वास्थ्य खराब होने लगा था तो उन्होंने मात्र 15 वर्ष पुराने संगठन की जिम्मेदारी उन हाथों में सौंप दी जो अभी स्वयं उस संगठन को समझने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पूज्य डॉक्टर साहब भविष्य के गर्भ में छुपी हुई उस महान योग्यता को देख पा रहे थे जो शायद औरों को अभी दिखाई नही दे रही थी।
21 जून 1940 को पूज्य डॉक्टर साहब की मृत्य हो गयी और अब 15 वर्ष पुराने संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जिम्मेदारी थी बनारस हिन्दू विश्विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी उपाख्य श्री गुरुजी पर।
जब पूज्य गुरुजी ने संघ प्रमुख का दायित्व संभाला तब उनकी आयु 34 वर्ष थी, लेकिन उस आयु में भी पूज्य गुरुजी ने जिस प्रकार से इस संगठन का 33 वर्षों (1940 – 1973) तक कुशल नेतृत्व किया उसी का परिणाम है कि आज 95 वर्षों पश्चात भी, तीन प्रतिबंधों को झेलते हुए भी, गांधी हत्या का झूठा आरोप लगने के बाद भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरी मजबूती और विश्वास के साथ राष्ट्रसेवा के लिए खड़ा हुआ है। ये सब पूज्य गुरुजी की दूरदर्शिता, कुशल नेतृत्व एवं अथक परिश्रम का परिणाम ही है कि आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा राष्ट्रवादी संगठन है।
30 जनवरी 1948 को जब गांधी हत्या हुई तब उस समय की तत्कालीन केंद्र सरकार ने बिना संघ का पक्ष जाने उस पर प्रतिबंध लगा दिया और गांधी हत्या के लिए संघ को ही दोषी माना गया।
हालांकि इस सम्बन्ध में संघ द्वारा बता दिया गया था कि नाथूराम गोडसे जी संघ से जुड़े हुए जरूर थे लेकिन गांधी हत्या से पूर्व उन्होंने संघ को छोड़ दिया था और संघ के किसी भी स्वयंसेवक को उनकी योजना के बारे में जानकारी नही थी।
चूंकि उस समय देश में गांधी के नाम पर भावनाएं चरम पर थी और इस सम्बन्ध में केंद्र सरकार को जनता की भावनाओं को देखते हुए कुछ निर्णय तो लेना ही था, इसलिए आप चाहे इसे ईर्ष्यावश कहे या मजबूरीवश केंद्र सरकार ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया।
संघ पर प्रतिबंध लगने के साथ ही पूज्य गुरुजी को भी 01 फरवरी 1948 को गिरफ्तार कर लिया गया। पूज्य गुरुजी के साथ साथ देश भर से हज़ारों स्वयंसेवकों ने स्वैच्छिक गिरफ्तारी दी।
ऐसे समय मे पूज्य गुरुजी ने सभी स्वयंसेवकों को शांत रहने की अपील की और संदेश दिया कि किसी भी स्थिति में आप उग्र ना हो।
पूज्य गुरुजी ने अपने समर्थकों से कहा था, “संदेह के बादल जल्द ही छंट जाएंगे और हम बिना किसी दाग के बाहर आएंगे” उनके सहयोगी भय्याजी दानी ने संघ की सभी शाखाओं को तार भेजा, ‘गुरुजी गिरफ्तार, हर कीमत पर शांत रहे’
आह्वान किया गया कि, ” या तो संघ पर आरोप सिद्ध करो या प्रतिबंध मुक्त करो”
09 दिसंबर 1948 को पूज्य गुरुजी ने संघ पर प्रतिबंध के विरोधस्वरूप एक सत्याग्रह की शुरुआत की। प्रारम्भ में अनेक विरोधी तत्वों ने इसे बच्चों का आंदोलन मानकर मजाक उड़ाया लेकिन जैसे जैसे आंदोलन अपने चरम पर पहुँचा तो देशभर से लगभग 77000 से भी ज्यादा स्वयंसेवकों ने देश की विभिन्न जेलों को भर दिया, ये आज़ादी के लिए कांग्रेस द्वारा किए गए किसी भी आंदोलन से सबसे बड़ा आंदोलन साबित हुआ।
अंततः केंद्र सरकार को झुकना पड़ा और संघ को लिखित संविधान बनाने का आदेश देकर प्रतिबन्ध हटा लिया गया।
जब संघ से प्रतिबंध हटा और पूज्य गुरुजी जेल से बाहर आए तो ऐसा बताते है कि पूरे देश में उनका भव्य स्वागत किया गया। ऐसा स्वागत तो कभी नेहरू का भी नही हुआ था जितना पूज्य गुरुजी का हुआ।
संघ और पूज्य गुरुजी के लिए सम्मान बढ़ता ही जा रहा था और जब 1962 में चीन के साथ युद्ध में संघ ने जिस प्रकार राष्ट्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया उससे नेहरू को भी प्रभावित होना ही पड़ा।
यही कारण था कि वर्ष 1963 के गणतंत्र दिवस पर राजपथ की परेड में संघ को बाकायदा पूरी गणवेश और संघ घोष के साथ आमंत्रित किया गया था।
पूज्य गुरुजी के चमत्कारी नेतृत्व में संघ की शक्ति प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। पूज्य गुरुजी के निर्देशन में संघ के अनेक अनुगामी संगठनों का निर्माण हो रहा था।
जैसे कि :-
भारतीय जनसंघ
विश्व हिन्दू परिषद
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
भारतीय मजदूर संघ
दीनदयाल शोध संस्थान
विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी
अखिल भारतीय साहित्य परिषद
वनवासी कल्याण आश्रम
भारत विकास परिषद
गीता विद्यालय, सरस्वती शिशु मंदिर
पांचजन्य, ऑर्गनाइजर, स्वदेश पत्रिकाएं।
पूज्य गुरुजी 1970 में कैंसर से पीड़ित हो गए थे, सर्जरी से भी ज्यादा लाभ नही हुआ था फिर भी वो संघ के कार्य से पूरे देश के प्रवास पर रहते थे और अंततः 05 जून 1973 को इस महान पुण्यात्मा राष्ट्रऋषि ने अपना भौतिक शरीर छोड़ दिया।
आप पूज्य गुरुजी की ये संघ के प्रति निष्ठा ही कहेंगे कि पूज्य गुरुजी कुल 33 वर्षों तक संघ प्रमुख रहे और इन 33 वर्षों में उन्होंने कुल 66 बार सम्पूर्ण देश का भ्रमण किया था ताकि देश के हर एक कोने में संघ के विचारों को पहुँचाया जा सके, संघ और राष्ट्र के लिए समर्पित स्वयंसेवक तैयार किए जा सके।
पूज्य डॉक्टर साहब ने जो संघ रूपी बीज बोया था उसको एक वटवृक्ष का रूप पूज्य गुरुजी ने ही प्रदान किया है। आज संघ जिस स्थिति में है वो पूज्य गुरुजी की ही देन है। संघ रूपी वटवृक्ष की छांव में आज करोड़ो स्वयंसेवक अपनी मातृभूमि के लिए सब कुछ समर्पित करने को हमेशा तैयार रहते है तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है पूज्य गुरुजी द्वारा संघ को दिया गया अनुशासन का मंत्र और राष्ट्रवाद की शिक्षा।
आज उन महान पुण्यात्मा, राष्ट्रऋषि, भारत माँ के सच्चे सपूत पूज्य गुरुजी की जन्म जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन, जिन्होंने अपना जीवन इस मातृभूमि की सेवा में समर्पित कर दिया और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में एक महान संगठन देशसेवा के लिए तैयार कर दिया।
“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे”
“संघे शक्ति युगे युगे”
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