एक कसाई अपनी दुकान पर था, रात काफी हो गई थी और अब वह दुकान बंद करने ही वाला था कि अचानक एक ग्राहक आया और बोला “मुझे दो किलो मांस चाहिए!”
कसाई का स्टॉक समाप्त हो चुका था किन्तु वह आए हुए ग्राहक को भी खाली जाने नहीं देना चाहता था। उसके मन में लालच जागा।
उसने पास में बंधे बकरे की ओर देखा।
लगभग 25-30 किलो होगा, यदि इसे अभी काट दिया तो सुबह तक शेष मांस खराब हो जाएगा।
अचानक उसके मन में एक विचार आया। उसने ग्राहक से कहा “मांस तो समाप्त हो गया किन्तु एक तरीका है, मैं बकरे का एक पिछला पैर काट देता हूँ, तुम्हारा काम हो जायेगा और यह सुबह तक जीवित भी रहेगा!” और वह छुरा लेकर बकरे की तरफ बढ़ा।
उसे यूँ आता देख बकरा मानव की तरह जोर जोर से हँसा!
ग्राहक और कसाई दोनों चौंक गए!!
“अरे तुम इस स्थिति में भी हँस रहे हो? क्या बात है?” कसाई के पूछने पर बकरे ने निर्विकार भाव से कहा “भाई, यह हँसी तेरे लिए नहीं है, तू अपना काम कर!”
लेकिन इस आश्चर्यजनक घटना पर ग्राहक स्वयं को नहीं रोक सका।
उसने बार बार बकरे से आग्रह किया कि वह अपनी इस हँसी का रहस्य समझाए!
बकरे ने कहा “देखिए! इससे पहले कई जन्मों से यह क्रम चला आ रहा है कि एक बार मैं बकरा बनता हूँ और यह कसाई और उससे अगले जन्म में यह बकरा बनता है और मैं कसाई। यह क्रम निरन्तर चल रहा है! इस प्रकार हम ईश्वरीय कर्म विधान में यह हिसाब किताब करते आ रहे हैं!”
“लेकिन आज जो होने जा रहा है, वह एक नई परम्परा का आरम्भ है। मुझे हँसी इसलिए आ रही है कि भगवान इस एक टांग वाले कर्म का न्याय कैसे करेगा? हिसाब कैसे होगा? उलझन तो उसे भी होगी!”
खैर… कहानी तो यही है कि उन्हें बोध हो गया और वे सब गर्हित कर्म छोड़ राम भजन करने लगे।
लेकिन महाराष्ट्र सरकार, जो नई परम्परा शुरू कर रही है, एक बन्द फाइल को फिर से खुलवाकर अर्नब को सता रही है, इसका भावी परिणाम क्या होगा?
विगत 70 वर्षों की अनेक फाइलें फिर से खुलेंगी, फिर से गिरफ्तारी और फिर से जाँच….!!
और जब एक तरफ, न्यायालयों के पास इतना कार्य है कि आज जो मुकदमे फाइल हैं उन्हीं को तरीके से पूरे होने में 400 वर्ष लग सकते हैं, तब ये नई परम्परा……!!
ईश्वर सद्बुद्धि दे!!
मनुमहाराज
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