27 फरवरी 2002, भारत के इतिहास में वो दिन जिसने बता दिया कि धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक भाईचारा, हिन्दू मुस्लिम एकता ये सब , सिर्फ और सिर्फ खोखले शब्द है जिनका मुख्य उद्देश्य है हिन्दू धर्म को कमजोर करना और एक विशेष धर्म मुस्लिम धर्म को ताकतवर बनाना।
इन खोखले शब्दों से ही हिन्दू समाज को सहिष्णुता का गलत पाठ सिखा सिखाकर पूरी तरह से शक्तिहीन बनाने का घटिया प्रयास किया जा रहा था और इसकी परिणीति देखने को मिली 27 फरवरी 2002 को गोधरा में।
आप सोचिए कि एक हिन्दू बहुल देश के एक हिन्दू बहुल राज्य में एक हिन्दू मुख्यमंत्री के होते हुए भी आखिर वो कौनसे कारण थे कि जिनकी वजह से 59 हिन्दूओं को मुस्लिमों द्वारा ज़िंदा जला दिया गया।
तो इसका सिर्फ एक कारण नज़र आता है वो है – हिन्दूओं को पढ़ाया गया गलत धार्मिक पाठ।
इस धार्मिक पाठ में पढ़ाया जाता कि हिन्दू मुस्लिम तो हिन्दुस्तान की दो सुंदर आँखें है, हिन्दू मुस्लिम भाई भाई, हिन्दू मुस्लिम गंगा जमुना संस्कृति वगैरह वगैरह।
इस फालतू ज्ञान से हिन्दूओं के मन में ये बात बैठ गयी कि मुस्लिम कभी भी हिंदूओ का बुरा नही कर सकते, वो तो हमारे जैसे ही इंसान है, इस्लाम एक शान्तिप्रिय धर्म है।
लेकिन ये सारी बातें एक झटके में ही खोखली साबित हो गयी जब 27 फरवरी 2002 को बिना किसी कारण के 59 हिन्दूओं को उन्हीं के तथाकथित शांतिप्रिय मुस्लिम भाइयों ने ज़िंदा जलाकर मार डाला।
कश्मीर हिन्दू पलायन जैसी हिन्दू नरसंहार घटना के बाद इन शांतिदूतों के हौसले बढ़ गए थे कि हिन्दू इस बार भी कुछ नही करेंगे, बस थोड़ा बहुत विरोध करके चुप हो जाएंगे और हिन्दू नेता भी अपने मुस्लिम वोट बैंक के कारण कुछ भी कार्यवाही नही करेंगे लेकिन इस बार ये शांतिदूत पूरी तरह गलत साबित हुए।
यहाँ आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि कश्मीर पलायन के समय कश्मीर में फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी लेकिन गोधरा कांड के समय गुजरात की सत्ता उस हिन्दू मुख्यमंत्री के हाथों में थी जिसे अपनी राजनीति से ज्यादा अपने हिन्दू भाई बहिनों की चिंता थी और जितना गुस्सा एक आम हिन्दू के मन में था उससे कही ज्यादा उस समय के हिन्दू मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के मन में था।
इस घटना का कठोर प्रतिकार किया जाना जरूरी था अन्यथा अपराधियों के हौसले और बढ़ जाते। इस बार हिन्दूओं ने भी ठान रखा था कि इस बार सबक सिखाना ही है और अपने हिन्दू भाई बहिनों की मौत का बदला लेना ही है, बहुत दिन हो गए सहिष्णुता का पाठ पढ़ते पढ़ते।
इसके बाद जो हुआ उसके बारे में आपको पता है, पहली बार मुस्लिम समुदाय ने हिन्दूओं का इतना रौद्र रूप देखा और वो समझ चुके थे कि उन्होंने 27 फरवरी 2002 को कितनी बड़ी गलती कर दी थी।
वो 27 फरवरी 2002 का दिन था और आज 27 फरवरी 2021 का, इन 19 वर्षों में किसी भी शांतिदूत की हिम्मत नही हुई कि वो हिन्दूओं के साथ कुछ भी गलत कर सके और ये सब सम्भव हुआ है हिन्दू की एकता और मजबूती से, लेकिन ये एकता एक बड़ी कीमत (59 हिन्दू भाई बहिनों की हत्या) चुकाने के बाद ही देखने को मिली, अगर ये एकता पहले से होती तो किसी भी व्यक्ति में इस प्रकार की वीभत्स घटना करने की तो दूर की बात, सोचने की भी हिम्मत नही होती।
27 फरवरी 2002 का दिन ना तो कोई हिन्दू भूला है और ना ही किसी मुस्लिम को भूलने देंगे। ये दिन हमेशा इस बात को याद दिलाता रहेगा कि…
● कैसे उस दिन हिन्दूओं की धार्मिक सहिष्णुता का गलत फायदा उठाया गया।
● कैसे उस दिन बिना किसी कारण के हमारे 59 हिन्दू भाई बहिनों को जलाकर मार दिया गया।
● कैसे उस दिन हिन्दू मुस्लिम भाईचारा खोखला साबित हो रहा था।
● कैसे मुस्लिम समुदाय अपनी धार्मिक कट्टरता को खुले तौर पर प्रदर्शित कर रहा था।
● और कैसे हिन्दूओं के साथ इतने दिनों से धार्मिक छल किया जा रहा था।
सब कुछ याद है और याद रखा जाना जरूरी है ताकि जब भी आपको कोई सेक्युलर हिन्दू ज्ञान बाँटने आए तो उसको ये घटना बताकर पूछा जाना चाहिए कि आखिर 27 फरवरी 2002 के दिन कहाँ चली गई थी तुम्हारी सेक्युलरता और हिन्दू मुस्लिम एकता ??
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