पिछले 100 दिनों से सड़कों शहर , लालकिले पर तरह तरह के करतब स्टंट और मीडियाबाजी से दुनिया भर में भारत का नाम बदनाम करने की कोशिश करने वाले और किसानों के नाम पर अपना चेहरा और राजनीति चमकाने वाले लखपति करोड़पति बिचौलियों की काठ की हांडी अब धधक धधक कर फुंकने को तैयार है .

तमाम हथकंडे , उपद्रव , हिंसा , स्टंट , अपराध ट्विट्टर ट्रेंड अपनाए जा चुके हैं . राजधानी दिल्ली की सीमा पर कैम्पिंग और पिकनिक का मज़ा लेने वालों में से कुछ जिन्होंने 26 जनवरी को अपना मुँह काला करवाया था उनमें से कई फिलहाल तिहाड़ में हैं . दिल्ली पुलिस ने अपनी तरफ से धनिया बोने में कोई कोर कसर नहीं रखी होगी .ऐसा विश्वास करके चलना चाहिए

किंतु इन सारे घटनाक्रमों के बीच जो बात अखर रही है वो है दलजीत दोसांझ , योगराज सिंह , स्वरा भास्कर ,नावजोड सिंह सिद्धू जैसे विकट आनोदलनजीवी किसानों का इस सारे तमाशा से ठीक उसी तरह गायब हो जाना जैसे गधे के सर से सींग .

यह बात इसलिए भी गंभीर है क्योंकि एक समय पर कृषि कानूनों में संशोधन को बिना जाने समझे करोड़ों रुपये की सहायता फंडिंग जिन तथाकथित किसानों के फुट मसाज और पिज़्ज़ा के आंदोलन के लिए दिए जा रहे थे , आपत्ति जनक भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा था . इसका परिणाम क्या हुआ यह 26 जनवरी को लालकिले और राजधानी दिल्ली में मचाए गए उत्पात और उपद्रव और हिंसा को देश और पूरी दुनिया ने देखा .

समाज के बीच से ही उठकर नाम और सम्मान कमाने वाले ये सभी किसी विशेष प्रोपेगेंडा के तहत इस तरह से समाज , कानून व राष्ट्र विरोधी बयानों ,कृत्यों से आखिर क्या संदेश देना चाहते थे ?? क्या हासिल करना चाहते थे ? इन सबको अब सामने आकर कम से कम अपनी गलतियों के लिए , अपने अपराध के लिए , हिंदुओं को गाली देने के लिए , खालिस्तान के सोए हुए साँप को दूध पिलाने जैसी तमाम गलतियों के लिए अपने अंदर झांक कर देखना चाहिए और अपने आप से पूछना चाहिए कि , देश से इतनी बेवफाई क्यों ?????

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