बेमिसाल सिंह सिस्टर्स (सिंहनी बहने), हर बेटी के बाप का कलेजा चोड़ा होने वाली एक कहानी…
जौनपुर शहर के बगल एक गांव में जाने के लिए आजतक कि ओवी वैन रास्ते में किसी से पूछती हैं।
भैया, उन पांच शेरनियो का गांव कौन सा है, जो बास्केटबॉल खेलती हैं?
अरे अहमदपुर है, अहमदपुर, सीधे जाइये वो तो जॉनपुर की पांच पांडवी हैं।
चौकिए मत, अहमदपुर सोलंकी (सोनवान) ठाकुरों के एक गांव और वंही गौरीशंकर जी के यँहा बेटे की आस कहिये या कुछ करिश्मे की आहट, एक के बाद एक पांच पुत्रियों ने जन्म लिया, प्रियंका, दिव्या, आकांक्षा, प्रशान्ति और प्रतिमा, उसके बाद बेटा।
जन्मी बेटियां गौरीशंकर के यहां कलेजा दब गया, सब नाते रिश्तेदारों, जान पहचान वालों का, पांच बेटियों के मा बाप को देख को और जान लोगो को लगता कि गौरीशंकर के घर को पांच ग्रहों ने घेर लिया है, पता नहीं कब उबर पाएंगे।
लेकिन करिश्मा आगे था, बैंक में नौकरी करने वाले गौरीशंकर जी परिवार लेकर बनारस बस गए, सोलंकी ठाकुर की आधुनिकता और अपने डीएनए का भरोसा उन्होंने लड़कियों को लड़को की ही तरह पालना सुरु किया।
यूपी कालेज के पास घर था जिसके कारण स्पोर्ट्स (खेलने) की सुविधा थी, लड़कियों ने भी खेलना शुरू कर दिया, और सुरु से ही कोई लड़की किसी खेल में उन लोगो के सामने टिक नहीं पाती थी ।
उसी समय वंहा के साईं सेंटर में गुरु द्रोणाचार्य के रूप में सरदार अमरजीत सिंह आये जिनकी निगाह इन पांडव बहनों पे पड़ी और उन्होंने परिवार की सहमति से बास्केटबॉल खिलाना शुरू कर दिया।
फिर क्या देखते देखते सभी पांच की पांच बहनों ने तहलका मचाते हुए, एक के बाद एक सभी बास्केटबॉल की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बन गई और पूरे भारत मे सिंह सिस्टर्स के नाम का डंका बजा दिया।
उन्ही बहनों में एक प्रशान्ति सिंह को पदम् श्री और अर्जुन अवॉर्ड दोनो मिला जो कि महिला बास्केटबॉल में पहली बार मिला है।
दिव्या सिंह पहली महिला खिलाड़ी हैं जो भारतीय पुरूष टीम की कोच हैं, जो पुरुष महिलाओं के साथ खेलने में अपने को छोटा समझते हैं उन्हें आज एक महिला सीखा रही है।
इन्ही बहनों में एक प्रतिमा सिंह की शादी प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी इशांत शर्मा के साथ हुई है जो हाल ही में 100 टेस्ट मैच खेलने वाले तेज गेंदबाज बने हैं।
खास बात ये की ये सब बहने खेल के साथ ही साथ पढ़ने में भी बहुत तेज रही है, दिब्या BHU की गोल्ड मेडलिस्ट, प्रशान्ति इंटर की टॉपर, अन्य बहने भी क्लास की टॉपर रही हैं।इनके पिता को इस बात का कष्ट रहता है कि उनके सभी बच्चे खेल की तरफ घूम गये किसी ने UPSC क्रैक नही किया।
जौनपुर के हर सोलंकी ठाकुरों का पहला सपना यही होता है कि उसका बेटा ये बेटी UPSC की परीक्षा पास करके IAS या PCS बने, अपनी बेटियों की प्रतिभा देख गौरीशंकर सिंह की ये कसक स्वाभाविक है।
लेकिन जिस तरह से इन बहनों के मा बाप ने इनकी परवरिश की वो काबिले तारीफ है, और सबसे जादा तारीफ उस मां की है जो इन छह खिलाड़ियों को संभाल के और खिला के आगे ले गई, पांच बेटियों के उस मां का कलेजा सोने का होगा जिसने इन्हें तपा के कुंदन बनाया।
अहमद पुर की इन बेटियों पे जनपद, प्रदेश ही नहीं देश को गर्व है, इन शेरिनियो ने मां के दूध का मान बढ़ाया, बाप के सीने को चौड़ा किया और भारत जैसे समाज मे गौरीशंकर सिंह को अनोखा खिताब दिया कि…
“”देखो वो हैं गौरीशंकर सिंह उन्ही पांच शेरिनियो के पिता, जिनपे देश को नाज है””
पांच पांडव की तरह इन पांच पांडवी बहने भी समाज के लोगो के लिए लिए एक संदेश हैं कि लड़कियों के सितारे भी बुलंद हैं, बेटियां किसी से कम नही है, अगर आप के पास हैं तो समझिए को कोई कोहिनूर है, पालिये ,पोषिये, पढाईये, खिलाइए ये आप की पहचान हैं, और आगे आप की रोशनी भी, चमकेंगी तो आप भी चौधिया जाएंगे।
तो ये कहानी हैं, सिंह सिस्टर्स की, इसको कॉपी करिये, आगे शेयर करिये, फारवर्ड करिये, पढिये ,बताइये, बेटियों को सुनाइये, भरोसा रखिये आने वाला समय बेटियों का हैं ।
और हां कान में एक बात बताये बुरा ना लगे तो क्योकि ये सच है
“”बेटों में सफलता के बाद अहम होता है कि मैं हु, मैंने किया है, बेटियों में हम होता है कि मैं जो भी हु उसमे मेरा परिवार भी है”” तो मैं को पालने के चक्कर मे हम को मत भूल जाइए।
जिंदाबाद शेरिनियो
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