!! सृष्टि का आठवां अजूबा !!

भिखारी, ढ़ोंगी, पापी, लालची, अहंकारी, षड्यंत्रकारी, शोषणकर्ता, पथभ्रष्ट, गद्दार, जातिवाद, अशिक्षित और न जाने किस किस नाम से वर्तमान समय में पहचान रखने वाला ब्राह्मण भारतीय राजनीति में किसी उग्रवादी कि तरह जीवन जीने वाले 8वां अजूबे से कम नहीं है। आजकल ब्राह्मण को गाली देना, अपमानित करना फैशन बन चुका है तथा राजनेताओं के लिए तो यह किसी जोकर से कम नहीं है और यही कारण है कभी कोई शिखा काट लेता है तो कभी कोई जनेऊ तोड़ देता है। हद की सीमा तब पार हो जाती है जब उसके धर्म और कर्मकांड पर जाहिल भी उंगली उठाने लगते हैं। इस दशक में तो यह SC/ST एक्ट के शिकार होने लगा है।

ब्राह्मण भी कम चतुर नहीं है, लेकिन इनकी चतुराई को लोग समझ गए हैं तथा इनकी सोच पर लोगबाग उपहास भी उड़ाते हैं। यह सब देखते हुए भी ब्राह्मण सचेत होने के बजाय बात बहादुर की भूमिका निभाने से बाज नहीं आता। ब्राह्मण अपनी ही जाति का उत्थान देखना नहीं चाहता? अपने भाई को कैसे सामाजिक रूप से कमजोर करके खुद को बाजीराव पेशवा बनाने में मशगूल है। ब्राह्मण का कभी ऐश्वर्य, त्याग, बलिदान, समर्पण गहना होता था, लेकिन फिलवक्त ईर्ष्या, क्रोध, जलन और निंदा करना धरोहर बन चुका है और वह यह कार्य किसी और के साथ नहीं करता, क्योंकि उसको यह पता है कि अन्य जाति के साथ ऐसी हरकत करने पर मुंह की खानी होगी। इसलिए अपने बिरादरी के साथ बहुत बहादुरी से लड़ता है। परिणाम सबके सामने है, चाहे वह लोकसभा- राज्यसभा हो या विधानसभा- विधानपरिषद, ब्यूरोक्रेट्स, और तो और कर्मकांड में भी फिसलते जा रहे हैं। ब्राह्मण अपनी एकजुटता के कारण मंदिर से भी बेदखल किया जा रहा है, लेकिन खुश इस बात से है कि उसके पाटीदार को हटाया गया है। जब उसको हटाया जाएगा तो देखा जाएगा।

ब्राह्मण समाज के लिए अंग अंग दान करने वाली बिरादरी था, लेकिन आज सक्षम हो जाने पर अपने परिवार और बिरादरी तक को नहीं पहचानता। अधिकारी हो या कर्मचारी, सरकारी सेवा में जाने के पहले और सेवा के बाद ब्राह्मण हो जाता है, लेकिन पद पर रहते हुए अपने समाज के सामने सत्य हरिश्चन्द्र बन जाता है, लेकिन दूसरे के साथ खुलकर काम करता है, लेकिन जब उसकी बैंड बजने लगती है तो ब्राह्मण ब्राह्मण पुकारने लगता है। ब्राह्मण समाज को अन्य लोग इसलिए 8वां अजूबा मानते हैं कि यह शाक्यद्विपी, कान्यकुब्ज, श्रोत्रिय, सरयूपारीण, भट्ट, गोस्वामी, वगैरह वगैरह हैं और अपनी बुनियाद भाई की छाती पर चढ़कर बनाते हैं, लेकिन ऐसी प्रजाति अन्य में नहीं मिले।

ब्राह्मण संस्कार, संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, समर्पण, राष्ट्रभक्ति के साथ साथ, संघे शक्ति कलोयुगे का जन्मदाता भी है, पर शायद अपने लिए इस युक्ति को भूल चुका है कि संघ की शक्ति क्या है। ब्राह्मणों ने राक्षसों से लड़ाई लडी़, मुगलों से लडे़, पुर्तगाल, डच सहित विभिन्न आक्रमणकारियों से भी युद्ध लड़ा, लेकिन अब वह स्वयं से लड़ रहा है, क्योंकि वह प्रतियोगिता नहीं, ईर्ष्या और क्रोध से आगे बढ़ना चाहता है। इसके सामने संस्कृत को विलुप्त करने का षड्यंत्र हो रहा है और यह मौनी बाबा बन गया है अंधभक्ति में।

ब्राह्मण जब स्वयं पूजापाठ से अलग होगा, संस्कृत से विमुख होगा, किसी की अंधभक्ति में, व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति में लिप्त होगा, अपने समाज के दायित्व से भागेगा, तो ब्राह्मण अपने समाज की रक्षा के लिए किसकी गुहार लगाएगा। ब्राह्मण होने पर घमंड है कि परशुराम , चाणक्य, आर्यभट्ट जैसे हजारों महापुरुषों का वंशज है, लेकिन वह खुद समाज को कुछ देना नहीं चाहता। जो सदन में हैं उनको ब्राह्मण कहने में भी भय लगता है, भला वो समाज के लिए सदन में कैसे गरजेंगे? साधु संतों का प्रवचन सुनने जाएगा लेकिन उनके बच्चों का उस क्षेत्र से लगाव कभी न हो, उसपर फोकस करेगा। प्रतिष्ठा चाहिए ब्राह्मण वाली, लेकिन पहचान नहीं चाहिए कि कोई उसे ब्राह्मण कह दे। मंदिर से दूर, संस्कृत से दूर, संस्कार से दूर, समाज से दूर, लेकिन जब मुसीबत में फंसेगा तो ब्राह्मण जाति को भरपेट गाली देगा, परंतु समाज के लिए उसने क्या किया है, उसका आंकलन नहीं करेगा।

समाज को बचाना सबकी जिम्मेवारी है, अन्यथा बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से टाइटल हट रहा है। वह वर्ष दूर नहीं जब हम किताबो में पढ़ेंगे कि एक शहर में एक ब्राह्मण रहता है।

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