हम भारतीय दरअसल अवसाद के उत्कृष्ट गायक हैं। हमें भारत के स्वाभिमान पर पछतावा होता है, हिंदुत्व के स्वर्णिम अतीत पर ग्लानि होती है और भारतीय प्रतिभाओं द्वारा किए गए आविष्कारों पर शंका होती है। यही कारण है कि जहां विदेशों में भारत सरकार द्वारा लिए गए मानवतावादी कदमों की जितनी पूछ हुई और प्रशंसा मिली उतनी ही ज्यादा उन कर्मों की निंदा भारत में बुद्धिजीवियों द्वारा हुई। कोविड-19 के इस वैश्विक महामारी में टेलीविजन स्क्रीन पर इतने मुर्दे जल रहे हैं कि ड्राइंग रूम मरघट लगने लगा है ।
यह बहुत छोटा कालखंड है। कोरोनावायरस इतना घातक नहीं है जितना प्रचारित किया जा रहा है। ऑक्सीजन की किल्लत से उतने लोग नहीं मर रहे जितना अफरा तफरी की वजह से इस अस्पताल से उसे अस्पताल तक दर बदर भटकने वाले।
शायद ये पहली बीमारी है जिसमें इलाज कराने वाले मर रहे हैं और घर बैठे निठल्ले खुद व खुद ठीक हो रहे हैं।
हमारे टीवी चैनल अपनी तटस्थता दिखाते हुए सरकार को कोसना जरूरी मानते हैं। मैं मानता हूं कि कोरोना महामारी है और यथासंभव परहेज और नियमों का पालन जरूरी है। श्मशान में जलती चितायें, ऑक्सीजन की किल्लत का शोर, ड्राइवर वगैर एंबुलेंस की चर्चा और नाक पर चढ़े दोहरे मास्क के बीच एक बात अधूरी रह गई और वह है INMAS , डीआरडीओ और डॉक्टर रेड्डी लैब के साझा प्रयास से बनी कोरोनावायरस की रामबाण दवा टू-डीजी। डीजीसीआई ने भी इस औषधि के आपातकालीन प्रयोग की अनुमति दे दी है। इस दवा के बारे में कहा गया है कि यह कोरोनावायरस के द्वारा उत्पन्न किसी भी लक्षण पर सीधा आघात करती है और उस लक्षण का खात्मा कर देती है साथ साथ रोग मुक्ति भी दिला देती है।
अगर ये आविष्कार अमेरिका या किसी अन्य देश में हुआ होता तो वहां की सरकार फूले नहीं समा रही होती और जनता का सिर गर्व से ऊंचा होता है कि मेरे देश ने कोरोना की वैक्सीन भी सबसे पहले बनाई और दुनिया को बांटी और जब कोरोना की रामबाण दवा ढूंढने की बात है तो हमारी सरकारी संस्था डीआरडीओ ने हीं वह दवा ढूंढ निकाली।
परंतु जैसा कि मैंने कहा कि हम भारतीय अवसाद के गायक हैं , हमें दुख पसंद है। सुख की मिठाई में भी हम दुख की मक्खी ढूंढ लेते हैं और यही हुआ। न्यूज़ चैनल के प्राइम टाइम हो अखबार का मुख्य पृष्ठ हो या साप्ताहिक और पाक्षिक पत्र पत्रिकाएं , यह खबर अगर गायब नहीं है तो दिखती भी नहीं हैं।
दरअसल मोदी के नेतृत्व में देश की प्रगति हमारे बुद्धिजीवियों को इतना खलती है कि वे ऐसी औरत बन गए हैं जो अपनी सौतन को विधवा बनाने के लिए अपने पति को भी मारने के लिए तैयार है।
देश की अपनी स्वदेशी वैक्सिंग को राजनीतिक द्वेष पर कुर्बान करने वाला विपक्ष शायद भारत में हीं मिलेगा।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.