वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री संजय किशन कौल ने अपने मद्रास उच्च न्यायालय में पदस्थापन के समय जिस स्वतः संज्ञान याचिका को लेकर सुनवाई की थी आज न्यायमूर्ति आर महादेवन तथा पी डी आदिकेसवालवू की पीठ ने अपने कुल 224 पन्नों के फैसले में इसका निपटारा करते हुए केंद्र सरकार , पुरातत्व विभाग सहित कई संबधित निकायों व संस्थाओं को भारत के प्राचीन मंदिरों के हित , सुरक्षा एवं संवर्धन करने के लिए बाध्यकारी दिशा निर्देश जारी किए। माना जा रहा है कि इसके दूरगामी प्रभाव और इनके अनुपालन में देश भर के मंदिरों के रख रखाव तथा संरक्षण , ज्जिर्णोद्वार पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पडेगा।

ज्ञात हो कि पिछले कुछ समय से देश भर में विशेषकर दक्षिण भारत के मंदिरों में , तोड़फोड़ , मूर्तियों की चोरी , देवी देवताओं की मूर्तियों को तोड़ा जाना आदि जैसी घटनाओं /अपराधों की बहुतायत देखी गई है। इन घटनाओं में स्थानीय सरकारों ,पुलिस , प्रशासन के साथ साथ भारतीय पुरातत्व विभाग की उदासीनता और अन्य सम्बंधित एजेंसियों की उपेक्षा भी एक बहुत बड़ा कारण देखने में आया।

माननीय न्यायालय ने इस बात को रेखांकित करते हुए इन तमाम संस्थानों को लताड़ लगाई और ये बताया की , उन मंदिरों का जिनका निर्माण 2000 वर्षों से भी पहले हुआ है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा वैश्विक धरोहर के रूप में घोषित किया है और इसके बावजूद भी यहां वे उपेक्षित और असुरक्षित रखे जा रहे हैं। यह बहुत ही गम्भ्भीर बात है।

अदालत ने इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि मंदिर और उनसे जुड़ी संपत्ति पर पहला अधिकार और सर्वाधिकार सिर्फ और सिर्फ मंदिर और उनकी संचालक नियामक संस्था का ही होना चाहिए और राज्य सरकार एवं उनके किसी भी विभाग को उसमें दखल देने , उसका अधिग्रहण करने , उसके उपयोग को बदलने का कोई हक़ नहीं है।

इतना ही नहीं आदेश में स्पष्ट किया गया है कि सर्वसाधारण के उपयोग हेतु मंदिर की सम्पत्तियों का अधिकग्रहण करने की प्रचलित प्रव्रुत्ति गलत और अवैधानिक है। इसलिए सार्वजनिक कल्याण हेतु इन सम्पत्तियों के अधिग्रहण /कब्जे करने की नीति यहां लागू नहीं की जानी चाहिए।

आदेश में तमाम मंदिरों की संपत्ति पर अतिक्रमण , उनके गैर क़ानूनी अधिग्रहण को भी जांच का विषय माना है और सरकार को निर्देश दिया है कि इस दिशा में विस्तृत जांच कर रिपोर्ट तैयार करे और ये भी सुनिश्चित करे कि इस दिशा में क्या कार्यवाही की गई ??

इस कोरोना काल में देश भर के मंदिरों ने जिस तरह से सरकारों और सामान के लिए अपने कोष का सारा धन सहायतार्थ दान अनुदान सहायता के लिए समर्पित किया उसे ध्यान में रखते हुए अदालत ने ये भी सुनिश्चित किया कि मंदिरों के कोष , दान ,संग्रहण आदि का सबसे पहला उपयोग उन मंदिरों के जीर्णोद्धार , सुरक्षा , संरक्षण के लिए ही किया जाना चाहिए

केंद्र सरकार को भी निर्देश दिया गया है कि धामरिक महत्व के सभी प्राचीन भवन जो सौ वर्ष से अधिक पुराने हैं उन सबको राष्ट्रीय समारक घोषित करके उनके संरक्षण और सुरक्षा , रख रखाव आदि के लिए विशेष व्यवस्था की जाए। मंदिर , मठ , मंदिरों से जुड़े सरोवर , तालाब , बाग़ आदि सबको इस दायरे में लाया जाए।

सनातन के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में मंदिरों को सुरक्षित संरक्षित करने हेतु आए इस निर्णय के कई दूरगामी परिणाम जल्दी ही सबके सामने होंगे ऐसा विश्वास किया जा सकता है।

जय सनातन। जय हिंदुत्व। जय श्री राम। जय हिन्द

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