भारतकी स्वतंत्रताके लीए और भारतकी अखंड्ताकेलीए कई नामी अनामी स्वातंत्र्यवीरोंने अपने प्राणका बलीदान भी दीया था । बहोत कम लोग ये जानते है कि हालके पाकिस्तानके मुल्तान शहरमें ऐसे ही एक महान देशभक्त स्वातंत्र सेनानी और , सुप्रख्यात एवं प्रसिद्ध और चाहिते जनसेवक, सामाजिक कार्यकर नेता और प्रसिद्ध वकील ने भारतकी एकता और अखंडताके लीए अपने प्राणका बलीदान दीया था। वो महान बलीदानी थे शहीद सरदार नानक सिंघजी ! आज सरदार नानक सिंघके बलीदान दिनकी ७४वी पूण्यतुथि अवसर पर श्रद्धांजली सह शत शत नमन।
शहीद सरदार नानक सिंघजीका जन्म ११-९-१९०३ में कुंत्रीला, रावलपींडी तालुका, हालके पाकिस्तानमें हुआथा। उन्के पिताजीका नाम डो. सरदार नानक सिंघ और माताका नाम सरदार्नी श्रींमति जीवन कौर था। शहीद सरदार नानक सिंघजीने बी. एससी.(ओनर्स) पदवी प्राप्त करके न्यायशास्त्रमें एल.एल.बी.की पदवी ग्रहणकी थी। प्रथम नानकजीने ब्रिटिश पुलिसमें ईन्स्पेक्टरकी नौकरी शरूकी थी और उहोंने बडि नामना कमाईथी और ब्रिटीश सरकरकी ओरसे कई मेडल भी प्राप्त किये थे मगर अंग्रेजोंकी गुलामी उन्हें सदा खटकती थी तो उहोंने नौकरी छोडकर अपनी वकिलात शरी करी ली और मुल्तानके नामांकित वकिलोंमें ऊनकी तुलना होने लगी । अपने धार्मिक, समाजीक और राजनैतिक सेवा कार्योंसे उनकी छ्बी मुल्तानके एक अग्रगणि प्रतिष्ठीतं व्यक्तिके रुपमें उभरआई थी । वो मुल्तनके मायनोरीटी फेडरेशन, पोस्ट एन्ड टेलीग्राफ युनियन,रिफाकत कमिटी के प्रेसिडन्ट थे और बार एसोसियनके और मुवमेन्ट फोर कम्युनल हार्मोनीके वाईस प्रेसिडन्ट एवं अकाली दलके जनरल सेक्रेटरी भी थे। वो पश्चिम पंजाबके अग्रगणी नेता भी थे और भारतकी स्वतंता के अभियानमें अपना महत्वका योगदान प्रदान करते थे। सारे पश्चिम पंजाब और मुल्तानके हर स्मुदायके लोगोंमें
उनका भारी दब दबा और शान थी।
जब ब्रिटिश सरकार सिंगापोर्के पतनके बाद आझाद हिंदके फौजीओंको बंधक बनाके ले आइ थी और उन लोगों पर न्यायालयमें उकद्दमा चलवाया था। भारतके लोग, वकिलों और समाचार पत्रो उन बहादुर जवानोंकी प्रशंशा तो करते थे मगर महत्तम वकिल उन बंधी सिपाईओंका उक्त करानेके लीए मुकदम्मा लडनेके लीए तैयार नहि थे क्युंकी वो ब्रिटिश सरकारके दुश्मनी मोडलेना नहि चाहते थे। देशभक्त सरदार नानक सिंघने अपने प्रांतके आझाद हिंदके फौजी लेफ्टनन्ट सधु सिंघ और ऊजागर सिंघका मुकदम्मा निःस्वार्थ भावसे कोई भी फि कीए बिना सख्त परिश्रम करके लडा और आझाद हिंदके ये दोनो फौजीओंको आरोप मुक्त कराके जैल और फांसीके फंदेसे छुडवाये थे।
भारतकी स्वतंत्रताके क साल पहले से ही धर्म पर आधारीत भारतके विभाजनकी मांग अधिकतम मुस्लिम समुदाय उनके नेता महोम्मद अली जीना, और उनका राजनैतिक पक्ष मुस्लिम लीग पुरे जोरशोरसे और आक्रमकताके साथ कर रहे थे। सरदार नानक सिंघ एक सच्चे राष्ट्र प्रेमी स्वातंत्र्यसेनानी थे। वो किसी भी हालमें अखंड भारतका बटवारा या विभाजन देखना नहि चाहते थे ईसीलिये वो भारतकी अखंडताके लीए हालके पाकिस्तान प्रांतमें विस्फोटक परिस्थितिमें भी प्रचार, प्रसार और संघर्ष करते रहे। दुर्भाग्यसे ता. ३-३-१८४७के दिन लाहोरर्में अखंड भारत्के सहयोगी और भारतको विभाजित करके नया देश पाकिस्तानकी मांग करनेवाले लोगों के बीच पंजाब स्टेट एसेम्बली होलके सामने संघर्ष शरु हुआ जीसने भयानक हिंसात्मक दंगेका रुप लेलिया। मुस्लीम देश पाकीस्तानके समर्थक मुसलमान लोगोंने स्टेट एसेम्बलीके मकान पर मुस्लिम लीगका पाकिस्तानी झंडा लहरा दीया । ये देखते ही सिख और हिंदु लोगों ये अपमान सहन कर न पाये और उनके दीलमें आग भभुक उठी । मास्तर तारा सिंघने क्रोध और आवेशमें अपनी किर्पान निकालके फहराते हुए सिखोंकी युद्ध गर्जना ‘’बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’’ और ‘’अखंड भारत झिंदाबाद’’की राष्ट्रीय गर्जना कि और जाके मुस्लिम लीगके पाकिस्तानी झंडेको अपनी किर्पानसे काट कर टुकडे टुकडे करके फेंक दिया और परिस्थिति अति विषम हो गयी और परिस्थितिको काबुमें लेनेके लीए पुलीसको लाठी चार्ज भी करने पदे और कइ लोग घायक हुए और कई लोगोंकी मौत हो गई । ये हिंसात्मक आंदोलनके समाचार सारे प्रांतके गांवों और शहेरोंमें त्वरीत गतिसे फैल गया और अन्य जगहों पर भी दोनों पक्षोंमें आंदोलन संघर्ष और टकराव शरू हो गये।
मुल्तानमें भी सरदार नानक सिंघजी और उनके अन्य साथीओंने और विविध संस्थाओंने अखंड भारतक्र समर्थनमें ता.४-३-१९४७की संध्याकाल समय विशाल ‘’कूप मैदान’’में एक महासभाका आयोजन किया । ईस महा सभामें हिंदु महासभा, शिरोमनी अकालिदल के नेता और मायनोरीटिझ फेडरेशनोफ मुल्तानके प्रमुख के होद्देसे सरदार नानक सिंघजी एवं कोंग्रेस के वरिष्ठ मुस्लिम नेता डो. सैफुद्दीन किट्च्लु ने भारत्की अखंडता और एकता पर प्रासंगिक भाषण दिया और भारतके विभाजनका विरोध किया । सरदार नानक सिंघजीने एक जोरदार और जुस्सेदार भाषण करके अखंड भारतकी के लीए संगठीत होनेकी और भारतका विभाजन चाहने वाले मुस्लिम परिबलोंको परस्त करनेकी गर्जना कि थी। अन्य वक्ताओंके के भाषणोंकी तुलनामें सरदार नानक सिंघजीके भाषणको बहोत ही ज्यादा प्रतिसाद और प्रशंशा मिला। सभाजनोंने उनका अभिवादन ‘’बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’’, ‘’अखंड भारत अमर रहे’’ और ‘’नानक सिंघ झिन्दाबाद’’के नारोंसे किया था।
सरदार नानक सिंघजीकी राष्ट्रवादी प्रबल विचारधारा, कमभाग्यसे, अलगतावादी, धर्मझनूनी और आतंकी मुस्लिम लोगों जो भारतका विभाजन करके अलग नया देश पाकिस्तानका निर्माण करना चाहते थे , उन्हें मान्य नहि थी। वो सरदार नानक सिंघजीकी अभिव्यक्ति, मान्यता और विचारधारासे अतंत व्याकुल और क्रोधित हो गये थे। जब सरदार नानक सिंघजी महासभासे वापस घर लौट रहे थे तब कई अलगतावादी पाकिस्तान समर्थकोंने उन्हें घेर लिया और उनको धमकी देने लगे मगर सरदार नानक सिंघजीके पडौसी मुसलमान डो. अझिझू दीनने जो उनके साथथे उन्होंने बचा लिया था। सरदार इस घटना पर्यंत नानक सिंघजीको उन्के मित्रोंने सावचेत रहनेको कहा था मगर उनको लगता थाकी उनके तो अंगत शत्रु कोईभी जाती समाज और धर्ममें हैं ही नहि क्युंकी वो सभीके सामाजिक कर्यकर है और सभी समाज और धर्मोंकी संगठित अमन कंमिटीके सभ्य भी है। कमनशीबसे उनका ये विश्वास २४ घंटॅके अंदर ही चकनाचूर हो गया था।
५वीं मार्च १९४७ को एमर्सन कोलेज, मुल्तानके हिंदु और सिख छात्रोंने भारतके विभाजन और पाकिस्तानक्र नवसर्जनके विरोधमें एक शांति पूर्ण अहिंसक आंदोलनका सरघस निकाला तो रास्तेमें दयानन्द एंग्लो वर्नेक्युलर हाईस्कूलके छात्रों और अन्य छात्रो भी सरघसमें जुड गये तो सरघसकी संख्या ७०० से ८०० तक पहुंच गयी थी । जब वो सरघस शहरके गीच और संकीर्ण गली विस्तार ‘’बोहर दरवाझा’’से नारे बाजीके साथ गुजर रहा था तब वहांके स्थानिक बहुमत मुस्लिंम लोगों जो ज्यादातर अलग पाकिस्तान बनानेके समर्थक मुस्लिमोंने ये निःशस्त्र मासुम हिंदु ओर सिख बच्चों और कोलेजके नवयुवानोंको अपने विस्तारमें दाखिल होने दिया और बादमें बदमाशोंने गलीके दोनों अंतिम भागोसे हमला करकेघेर लीया और लाठी तथा तलवार, भालाखंजर चाकू जैसे तिक्ष्ण हतियारोंसे वो निहत्थे चात्रॉ पर कातिल और निर्मम हत्या करने तुट पडे। मासुम हिंदु ओर सिख बच्चों हुए ये घातकी हमलेके नरसंहार्की खबर सारे शहरमें फैल गई। ईस समय सरदार नानक सिंघजी डीस्ट्रीक्ट अपिल कोर्टमें थे। समाचार सुनते ही अपनी सुरक्षाकी चिंता किये बिना निडर बनके कोर्ट छोडकर त्वरीत प्रस्थान किया और दूरी पर आये घटना स्थल पर पहुंचे। बोहर दरवाझा पहोंचते ही वहां हुई हिन्दु ओर सिख बच्चों और युवानोंकी निर्मम हत्या का द्रश्य सरदार नानक सिंघजीकी अत्यंत दुखी हुए। उनके शरीरमें क्रोधकी ज्वाला भभूक उठी । वो अपने प्राणकी चिंता कीये बिना एक शुरविर योद्धाकी तरह जहादी मुस्लिमोंकी टोली, जो मासुम बच्चोंको निर्दयतासे मारकर उनकी घातक हत्या करनेका प्रयास कर रहे थे उन पर तुट पडे और नादान बच्चोंके निर्दयी नरसंहार न करनेकी दहाड लगाई। बच्चोंको बचाने के लीए वो एक सिंहकी तरह कातिल मुस्लिम भेडियोंके टोलेमें अपनी छोटीसी किर्पाण हाथमें लेकर कुद पडे। सरदार नानक सिंघजीकी हिम्मत देखर कई उपद्रव मचानेवाले मुसलमान चकित और स्तब्ध रह गये। ईस दरमियान कुछ बच्चे अपनी जान बचाके भागनेमें सफल हुए। अब कातिल टोलेने अपना निशान दहादते हुए सरदार नानक सिंघजीको बनाया और एक साथमें वो उन पर तुट पडे और तोक्ष्ण हथियाहों से उनके उपर प्राणघातक घाव करने लगे। सरदार नानक सिंघजीकीने विरतासे उनक सामना किया और अंतमे उरॅ टोलेके साथ अकेले छोटी किर्पानसे लडते लडते वीरगतिको प्राप्त हुए। भारतकी स्वतंत्रता और भारतकी अखंडताके लीए अपने प्राणोंकी आहुति देनेवाले महान देशभक्त सरदार नानक सिंघजीका नाम भी भारतके स्वातंत्र्य ईतिहासमें अन्य हुतात्मा या बलीदानी या हिदोंके साथ सुवर्न अक्षरोमें अंकित होना चाहिये।
शहिद सरदार नानक सिंघजीके बलीदान पर्यंत उनके परिवारकी गाथा भी अत्यंत रसस्पद देशभक्तिसे भरपूर रही हैं। उनकी पत्नि सरदारनी हरबन्स कौरजीको अपना माल मिल्कत सभी कुछ मुल्तान छोडके अपने और अपने आठ संतानोके प्राण बचाने अनेक मुश्केलीओंका सामना करते भारत स्थानांतर होना पडा। वो भारतमें पटियालामें स्थायी हुए। सरदारनी हरबन्स कौरने शिक्षिकाकी नौकरी शरू की थी। सरदारनी हरबन्स कौरजीको पंजाब सरकारने ऊनकी सामाजीक शिक्षिकाकी प्रशंशनिय सेवाके लीए उन्हें पारितोषिक दिया गया था। उन्होंने अपने सात पुत्र औरे एक पुत्रीको योग्य उच्च शिक्षा प्रदान करवायी थी और एक सच्ची भारतिय माताका (ट्रु मधर ईन्डिया)का दायित्व निभाया था। सरदारनी हरबन्स कौरजीने अपने पांच पुत्रो राजिन्दर सिंघ, रुपिन्दर सिंघ, देविन्दर सिंघ, कुलविन्दर सिंघ, और ब्रिजिन्दर सिंघ को उच्च शिक्षा उपलब्ध कराके भात्की रक्षा हेतु भारतिय आर्मड फोर्सीसमें भेजे जिन्होंने वहां उच्चतम पदों पर अपना दायित्व निभाया ।
पंजाब सरकार्ने सरदारनी हरबन्स कौरजीको उनके पांच पुत्रों मां भारतकी रक्षा करने एक साथमें सक्रीय मिलिटरी सेवामें कार्यरत होने पर उसे ‘’ध प्राउडेस्ट पंजाबी मधर’’का सन्मान प्रदान किया था। पुत्री सुरिन्दर कौर ने अपनी कारकिर्दी शिक्षण्क्षेत्रमें बनाई और आर्की अओफिसर सरनजित सिंघ साह्नीसे लग्न किया। पितम सिंघ एक ईस्टअफ्रिकाके जाने माने शिक्षणशास्त्री बने और इनर लंडन एज्युकेशन ओथोरिटिसे निव्रुत्त हुए। सबसे छोटे पुत्र रामीन्दर सिंघ ने लंडनमें उच्च्तम पढाईकी और युनाईटेड किंग्डमके प्रसिद्ध अग्रगणि व्यापारी बने जीन्हॅ १९९९ में ‘’क्विन्स एवोर्ड फोर एक्सपोर्ट’’ और २००९ से २०१२ तक सतत चार साल तक ‘’क्विन्स एवोर्ड फोर एन्टर्प्राईझ’’ प्रदान किये गये। रामीन्दरजीको २००५में ‘’ ध ओर्डर ओफ ब्रिटीशः एम्पायर’’ (ओ.बी.ई.) और २०१६में ‘’ ध कमान्डर ओफ ओर्डर ओफ ब्रिटीशः एम्पायर’’ का खिताब ब्रिटनकी महारानीने प्रदान किये। ११-१०-२०१९के दिन रामिजी रेन्जरको बेरोन रेन्जर ओफ मेफेर ईन ध सीटी ओफ वेस्टमिनिस्टर’’ के माननिय पद पर हाऊस ओफ लोर्ड्समें नियुक्त किये गये। इसी तरह शहिद सरदार नानक सिंघजी और सरदारनी हरबन्स कौरजीके पुत्रों और पुत्रीने अपने माता पिता का नाम रोशन किया।
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