अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान वापिस आ गये। सबके मन में इसके लिये बाइडन को ले कर आक्रोश है। 75,000 तालिबानी लड़ाकों ने 3 लाख से अधिक की अमरीकी सेना द्वारा ट्रेंड अफ़ग़ानी सेना को पराजित कर दिया। इसके निहितार्थ समझने की जगह बाइडन को कोसा जा रहा है। नये शस्त्रों से लैस 3 लाख से अधिक की सेना पुराने शास्त्रों से लैस 75 हज़ार की संख्या यानी अपने से चौथाई बल के लोगों के सामने ढह कैसे गयी, यह सोचने की जगह एक जवाब न दे सकने वाला निशाना ढूंढ लिया गया है।
यह वैश्विक इतिहास का पाठ पढ़ना ही होगा कि इस्लामी बल दूसरे इस्लामी बल से तभी जी जान से लड़ते हैं जब उनमें कोई भी कोण ग़ैरइस्लामी न हो। अफ़ग़ानिस्तान में जीत में काफ़िर सम्मिलित थे अतः इस्लामी समूहों ने समर्पण कर दिया। अमरीकी समझ चुके थे कि यह तालिबान के सामने तालिबान की वापसी ही होगी। कितनी ट्रेनिंग दे लो ये नहीं बदलने के। ईराक़ ईरान से दशकों लड़ लिया मगर तभी जब दोनों इस्लामी थे। प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध में कई घटनाएँ हुई हैं जब धुरी राष्ट्र की इस्लामी टुकड़ी पर अंग्रेज़ों की फ़ौज की इस्लामी टुकड़ियों ने आक्रमण से इनकार कर दिया।
मुम्बई फ़िल्मों का परोसा गया झूठ पठान बहादुर, ईमानदार, भला (ज़ंजीर देख लें) होता है, खुल गया। पहले भी तालिबान के राज्य पैसे से ख़त्म हुआ था। तब भी गुलबुद्दीन हिकमतयार आदि तालिबान के ग्रुप लीडर्स को अमेरिका ने ख़रीद कर पाला पलटा था।
अब अफ़ग़ानिस्तान में शरिया, पर्दा, औरतों की सुरक्षा यानी पर्दे के उल्लंघन होने पर सार्वजनिक कोड़े लगाना, लड़कियों के स्कूल बंद करना, बच्चियों से निकाह, बुढ़ियों से निकाह, बेटे की वधू अर्थात बहू से निकाह यानी रुसूलल्लाह मुहम्मद की सुन्नत सब लौट रहा है। बरसों से बक्सों में रखे बुर्के वापिस निकाले जा रहे हैं। काबुल एयरपोर्ट पर बहुत बड़ी संख्या में लोग अफ़ग़ानिस्तान छोड़ कर भारत आने के लिये जमा हैं। 20 लाख लोग अफ़ग़ानिस्तान से निकलना चाहते हैं।
आमिर ख़ान जैसा झूठा-लपाड़ी, उसकी तलाक़शुदा कूतरी, नसीरुद्दीन शाह, हामिद अंसारी जैसे जिस जिस गिरामी को भारत में डर लगता रहा है अफ़ग़ानिस्तान लौटने के लिये स्वतंत्र है।
जाओ कमीनो! कुफ़्र-शिर्क की झुलसती धूप छोड़ कर शरिया की छाँव में जाओ
बुरा-नापाक वेज खाना छोड़ कर हलाल गोश्त खाने वालो देश से निकलो
मन करते ही मॉल, पिक्चर हॉल, बाज़ार निकल जाने वालो अब सिर से पैर तक नीले बुर्के में क़ैद रह कर किसी मर्द के साथ होने पर ही बाहर जाने की शर्त निभाने वाले देश दफ़ा होओ
कंजरो! कमीनो! हमारी जान छोड़ो
राष्ट्रवादियों के लिये भी एक सबक़ जब तक इस चिंतन की जड़ पर प्रहार नहीं होगा, इसकी जड़ नहीं कटेगी। क़ुरआन, हदीस, सीरत पढ़िये और समझिये कि पत्थर युग में वापिस धकेले जाने को रोकने का एक मात्र उपाय इस चिंतन से लोगों को बाहर निकालना यानी घर वापसी ही है।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
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