अक्सर ये सुनने को मिल जाता है कि अंग्रेज चले गए और अपनी अंग्रेजियत यहीं छोड़ गए और फिर इसका उदाहरण भी गाहे बेगाहे देखने को मिल ही जाता है। और कमाल की बात देखिये कि इस मामले में एक निजी होटल -जिसे साड़ी जैसा खूबसूरत भारतीय परिधान भी सलीकेदार नहीं लगता है से लेकर एक सरकारी नियंत्रण वाले संस्था फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया , ‘सरदार उधम सिंह” जैसे देश भक्त के ऊपर बनी फिल्म को ऑस्कर के लिए सिर्फ इसलिए नामित करने से मना कर दिया क्यूंकि इसमें अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हिंसा और नफरत दिखाई गई है।
सच में क्या ?? , मजाक है कोई ये , यानि दो सौ सालों की ब्रितानी गुलामी और उससे अधिक इस देश में धार्मिक भेदभाव और साम्प्रदायिकता के बीज को हमेशा के लिए एक नासूर की तरह भारत को देने वाले अंग्रेजों के विरुद्ध हिंसा और नफरत नहीं होगी तो क्या प्रेम और दीवानापन दिखाई देगा जो शायद फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया को दिखाई दे रहा है।
सरदार उधम सिंह ने जिस नराधम अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की ह्त्या करने का बीड़ा उठाया था उसने और उसके पीछे की ब्रितानी हुकूमत द्वारा किए गए सबसे क्रूरतम अपराधों में से एक “जालियां वाला बाग़ नरसंहार” किया था। तो उनके विरूद्ध क्या प्रेम गीत गाना चाहिए या सूफी संगीत।
सिनेमा कभी समाज का आईना हुआ करता था , धर्म , नैतिकता , देशभक्ति ,सामाजिकता , परिवार पर आधारित और ओत प्रोत पिक्चरों का निर्माण और प्रदर्शन किया जाता था। पूरी दुनिया में भारतीय सिनेमा अपने सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों के समावेश का परिचायक माना जाता था।
ऐसे संस्थाएं और उनकी उल जलूल मनमानी का ही ये परिणाम है कि आज उधम सिंह जैसे क्रन्तिकारी की पिक्चर को अनुशंसित करने से रोकने के लिए अजीबो गरीब तर्क दे रहे हैं।
गाली गलौज़ से भरी पिक्चर गली बॉय ऑस्कर के लिए नामित हो सकती है मगर अंग्रेजों को भला बुरा कहने वाली फिल्म सरदार उधम सिंह को नहीं किया जा सकता नहीं तो फिल्म फेडरेशन के अंग्रेजी आका लोग नाराज़ हो जाएंगे। हद है ये
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