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-बलबीर पुंज
आलेख लिखे जाने तक, भारत में 103 करोड़ से अधिक कोरोना वैक्सीन लगाई जा चुकी है। कोविड-19 के विरुद्ध इस भारतीय युद्ध में यह एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। ऐसा प्रतीत होता है कि देश ने बहुत हद तक कोरोना को परास्त कर दिया है। परंतु ध्यान रहे कि भारत में यह वैश्विक महामारी अभी पराजित हो रही है, किंतु युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है।
ब्रिटेन, यूरोप के कई देशों, रुस और इजरायल में तबाही मचाने वाला कोविड का नया वैरिएंट डेल्टा+ ए.वाय.4.2 अब भारत में भी मिल गया है। ये संक्रमण प्रकार डेल्टा की तुलना में अधिक खतरनाक है। वैज्ञानिकों ने संकेत दिया है कि यह नया संस्करण अधिक संक्रामक और यहां तक कि अधिक घातक हो सकता है। ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी द्वारा इसे VUI-21OCT-01 नाम दिया गया है, जोकि ‘जांच के अंतर्गत संस्करण ‘ है।
संभवत: इस संदर्भ में शेष विश्व की तुलना में भारत की कोरोना विरोधी लड़ाई बहुआयामी है। जहां एक ओर भारत में दुनिया के बाकी देशों की भांति कोविड-19 (नए वेरिएंट सहित) का वस्तुनिष्ठ-निर्णायक उपचार नहीं है- ऐसे में सभी भारतीयों का पूर्ण टीकाकरण मोदी सरकार का पहला लक्ष्य है। वही दूसरी ओर, भारत को उस प्रभावी वर्ग से सतर्क रहना है, जिसने कोरोना रोधी राष्ट्रीय अभियान में भरसक अड़चने डाली है। ऐसे लोगों को यदि महाभारतकालीन चरित्र मद्रराज शल्य की संज्ञा दी जाए, तो गलत नहीं होगा। पांडवों के मामा शल्य, “स्वेच्छानुसार बोलने” की शर्त पर जब कौरवों के पक्ष में खड़े हुए, तब दुर्योधन ने उन्हे कर्ण का सारथी बनाया। कुरुक्षेत्र में जब कर्ण पांडवों से युद्ध कर रहे थे, तब शल्य कर्ण को हतोसाहित करने हेतु कभी उनका परिहास करते, तो कभी पांडवों की प्रशंसा। अर्जुन द्वारा कर्ण के वध में शल्य की भी भूमिका थी। क्या बहुतेरे मोदी विरोधी भारत की कोविड रोधी लड़ाई में शल्य की भूमिका नहीं निभा रहे?
कोरोना के खिलाफ अबतक की भारतीय सफलता के पीछे तीन महत्वपूर्ण कारक है। पहला- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में स्वदेशी कोविड-टीकों का उत्पादन। दूसरा- 138 करोड़ की आबादी को दोनों टीके लगाने हेतु उचित प्रबंध (कोविन और केंद्र स्थापना सहित) करना। तीसरा- जनसाधारण का प्रधानमंत्री मोदी में विश्वास अक्षुण्ण रहना, उनके द्वारा सुझाए दिशा-निर्देशों और निवेदन को मानना।
इस क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू की घोषणा की। संकट के समय देश में कार्यरत कोरोना-योद्धाओं को प्रोत्साहित करने हेतु ताली-थाली या घंटी बजाने का आह्वान किया, जोकि अभूतपूर्व सफल रहा। तब विरोधी दलों के शीर्ष नेताओं ने इस जनसंवाद का उपहास किया, ऐसा आज भी करते है। इसके बाद जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश को लॉकडाउन किया, जिससे देश में कोरोना की रफ्तार को रोकने में काफी सहायता मिली। किंतु विपक्षी दलों ने नकारात्मकता का परिचय देते हुए केवल लॉकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था, रोजगार आदि पर पड़े दुष्प्रभाव का दानवीकरण कर दिया। यह स्थिति तब थी, जब प्रधानमंत्री मोदी देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रहे थे और कोरोना से सुस्त हुई आर्थिकी में जान फूंक रहे थे।
जब भारत ने स्वदेशी कोरोना वैक्सीन बनाकर विश्व के गिनेचुने देशों में शामिल हुआ, तब मोदी विरोधी कुनबे ने उसे संदेहास्पद बना दिया। जैसे ही चिकित्सीय स्वीकृति मिलने के बाद प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 16 जनवरी 2021 से निशुल्क स्वदेशी वैक्सीन लगाने का अभियान प्रारंभ हुआ, वैसे ही विरोधियों द्वारा उसे “नपुंसकता बढ़ाने वाला”, “खतरनाक” और “असुरक्षित” बता दिया। टीकाकरण को पटरी से उतारने हेतु “भारतीय कोई गिनी सुअर नहीं” और “लोगों को प्रयोगशाला का चूहा मत बनाओ” कहा गया। राहुल गांधी ने वैक्सीन निर्माता को “मोदी का मित्र”, तो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कोरोना टीके को “भाजपा की वैक्सीन” कह दिया। योजनाबद्ध दुष्प्रचार और भ्रम से लोग वैक्सीन के प्रति हतोत्साहित हुए, जिससे देश में उपलब्ध निशुल्क टीके खराब होने लगे। तब कई राज्यों में वैक्सीन बर्बादी का आंकड़ा केंद्र द्वारा कुल आवंटित टीकों का 15-34 प्रतिशत था। क्या इस प्रकार के रवैये को मानवता के विरुद्ध अपराध नहीं कहेंगे?
जब कोरोना की दूसरी लहर भारतीयों पर कहर बनकर टूट रही थी, तब विपक्ष ने मिलकर वैक्सीन खरीद के विकेंद्रीकरण और टीकाकरण आयु-सीमा हटाने का विवाद खड़ा करके वैक्सीन अभियान को कई दिनों तक बाधित रखा। ऐसे में शायद ही उन मृतकों को गणना संभव हो पाए, जो भ्रामक दुष्प्रचार और वैक्सीन-क्रय विवाद के कारण कोविड-19 में कालकवलित हो गए। देश में कोरोना अबतक 4.5 लाख अधिक लोगों ने जान ले चुका है।
मोदी और इस देश के प्रति घृणा कितनी गहरी है- यह उत्तरप्रदेश में अलीगढ़ के एक प्रकरण से स्पष्ट हो जाता है। यहां मई में निहा खान नामक कनिष्ठ स्वास्थ्य कर्मचारी पर वैक्सीन को कूड़ेदान में फेंककर लोगों को खाली सिरिंज चुभाने का आरोप लगा था। निहा की कोशिश थी कि लोगों को कोरोना वैक्सीन ना लगे, जिससे समाज में कोविड संक्रमण व्यापक स्तर पर फैले, अफरातफरी हो, चिताओं का अंबार लगे, भारतीय टीके की बदनामी हो और उसकी वैज्ञानिक प्रमाणिकता पर सवालिया निशान लग जाए। निहा रूपी कई लोग समाज में आज भी गुमनाम है।
अब जब मोदी सरकार ने देश में नौ माह के भीतर 100 करोड़ से अधिक वैक्सीन लगा दी है, तब विपक्ष इसे “प्रोपेगेंडा”, “जुमला” या “झूठ” बता रहा है। इनमें अधिकांश विरोधियों (कांग्रेस और वामपंथी सहित) को भारत के बजाय चीन के दावों पर अधिक विश्वास है, जिसमें उसने 216 करोड़ टीके लगाने का दावा किया है। यह स्थिति तब है, जब न केवल कोरोनावायरस का उद्गमस्थल चीन है, साथ ही विश्व के कई देशों के साथ स्वयं चीन भी अपनी कोरोना वैक्सीन को प्रभावहीन मान रहा है।
प्रेम और घृणा के अतिरेक में मनुष्य अपना विवेक कैसे खो देता है, इसका एक और उदाहरण हमें रविवार (24 अक्टूबर) हुए आईसीसी टी20 पुरुष क्रिकेट विश्व कप में भारत बनाम पाकिस्तान के मैच में भी मिल जाता है। इसमें भारत का पाकिस्तान के खिलाफ 29 वर्षों से जारी विजयरथ (विश्व कप में) रुक गया और टीम इंडिया हार गई। तब कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी की निकटवर्ती और पार्टी की राष्ट्रीय मीडिया समन्वयक राधिका खेड़ा ने ट्वीटर पर मोदी समर्थकों पर तंज कसते हुए परोक्ष रूप से मैच में पाकिस्तान की विजय का उत्साह मनाया। वास्तव में, राधिका का वह ट्वीट प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करने के साथ देश के उस वर्ग को तुष्ट करने हेतु था, जिनका भारतीय पासपोर्ट होते हुए भी दिल पाकिस्तान के लिए धड़कता है। देश में बसे ऐसे पाकिस्तानपरस्तों से पाकिस्तान भी अवगत है, इसलिए उसके गृहमंत्री शेख राशिद ने कहा, “भारत के खिलाफ पाकिस्तान की जीत इस्लाम की जीत है। भारतीय मुसलमान सहित दुनिया के सभी मुस्लिमों इसकी बधाई।” राशिद का आकलन भारतीय मुस्लिमों के बारे में गलत है। देश में अब्दुल हमीद, ए.पी.जे अब्दुल कलाम जैसे कई भारतीय मुसलमान भी है, जो अन्य करोड़ों भारतीयों की भांति अपने देश से प्रेम करते है। वर्ष 2014 के बाद ऐसे कई अवसर (सर्जिकल स्ट्राइक आदि) आए है, जब मोदी विरोधी गुट और पाकिस्तानी वैचारिक-सत्ता अधिष्ठान के स्वर एक रहे है। ऐसे में मोदी विरोधी कुनबे का राष्ट्रीय वैक्सीन अभियान के बजाय चीन के खोखले दावे को सच मानना, स्वाभाविक भी है।
यूं तो महाभारतकाल में मद्रराज शल्य कौरवों की ओर से लड़ रहे अंगराज कर्ण के सारथी थे, परंतु उन्होंने अपनी बातों से अर्जुन के विरुद्ध कर्ण का ही आत्मबल तोड़ने का काम किया। आज का भारत अधिक जागरूक है और शल्य-मानसपुत्रों से परिचित है। इसलिए देश को अभी एक लंबी लड़ाई- कोरोनावायरस के साथ ‘शल्य मानसिकता’ से प्रेरित वर्ग से लड़ना शेष है।
लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं
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