गंभीरता से अगर सोचा जाए तो हिजाब का पूरा मसला एक कट्टर मानसिकता का मसला है जिसके पीछे औरत की स्वतंत्रता का हनन करना है, यह वही मानसिकता है जो कहती है उनके लड़के कलावा पहन कर मंदिरों के पूरे दिन चक्कर काटे, गरबा में घुसपैठ करें तो कोई समस्या नहीं है। परंतु अब्बाजान को फिक्र अपनी बेटियों की है। उसके सिर से हिजाब नहीं उतरना चाहिए। यही इस्लाम है, वर्ना कुफ्र हो जाएगा। 

 

हैरानी की बात यह है कि सारे अब्बा जानों में से कभी किसी ने अपने बेटों को यह नहीं समझाया कि नकली कलावा पहनकर नकली नाम रखकर दूसरे की बहन बेटी को स्कूल में जाकर नहीं छोड़ना चाहिए मगर खुद की बहन बेटी के लिए यह इतने obsess है कि हिजाब जैसी कुप्रथा को भी बढ़ावा दे रहे हैं।

आखिर इन लोगों को यह भी सोचना चाहिए कि जब खुद की बहन बेटी को इस कदर पर्दे में बंद कर रहे हो तो दूसरे की बहन बेटियों को भी ना छेड़े इस का भी प्रबंध इनकी कौम को करना चाहिए, मगर मन में जिहाद और कब्जा करने की मानसिकता से ग्रसित कुछ लोग नकली कलावा और तिलक लगाकर हिंदू लड़कियों के साथ पूरे देश के तमाम इलाकों में छेड़छाड़ करते हैं बल्कि लव जिहाद कर उनकी हत्या भी करते हैं। ऐसे में मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध लोगों को आगे आना चाहिए और ऐसे लड़कों को समझाना चाहिए ताकि दोनों तरफ से विश्वास की ताली बज सके।

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