सरकार की एडवायजरी जारी होने के बाद भी फरवरी में बच्चे नहीं समझ रहे थे। उनके कॉलेज आनलाइन क्लास कराने के लिए तैयार नहीं थे। बच्चे कॉलेज छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। यह भी ठीक है कि अब जब देर हो गई, उन्होंने सरकार के दिशा निर्देश की उपेक्षा कर दी तो इस मुद्दे पर बात करने का लाभ नहीं है।

लेकिन सरकार की तरफ से 24 फरवरी से पहले ही आई एडवाइजरी पर अभिभावकों ने अमल क्यों नहीं किया? क्या छात्र अपने घर वालों की सुनने को तैयार नहीं ​थे? और जिन छात्रों और परिवारों ने समय रहते सरकार की सलाह मानने से पहले ही इंकार दिया था, उन्हें क्या अब कोई नैतिक अधिकार बनता है कि वे इस मुद्दे पर आरोप लगाएं?

शेष इस समय जिस गति से छात्रों को यूक्रेन से निकालने के लिए सरकार जितनी सक्रियता से काम कर रही है और इससे पहले भी युद्ध की आशंका होने मात्र पर 2014 में जैसा काम किया था, उसकी तारीफ तो बनती है लेकिन इन छात्रों ने केन्द्र सरकार की समय रहते सुन ली होती तो उनके सिर से संकट पहले ही टल सकता था। छात्रों को समझना चाहिए, भारत सरकार अब पहले जैसी नहीं है, वहां से कोई सलाह आए तो उसे अब गंभीरता से लेना है।

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