सचमुच हथियारों के कारखाने घाटे में हो जायेंगे | हथियारों पर जंग लग जाएगी और तकनीक पुरानी पड़ जाएगी | हथियारों के बजाय हमलों के नए तरीके महाशक्तिशाली कहलाने वाले देश ही नहीं आतंकवाद के सबसे बड़े पोषक पाकिस्तान भी अपना रहा है | 1965 में झूठिस्तान शीर्षक के एक रेडियो कार्यक्रम से उसके झूठे दावों को बेनकाब किया जाता रहा | लेकिन अब हथियारों की तरह सबके पास युद्ध के नए मन्त्र यानी प्रचार तंत्र के नए आधुनिक तरीके , साधन और अधिकाधिक धन का इंतजाम है | यही नहीं ख़रीदे जा सकने वाले जयचंद की संख्या भी बढ़ती गई है | उनके अलग अलग रूप भी हैं | उनमें जाहिल , निरक्षर , मूर्ख , शैतान भी हैं और शिक्षित प्रशिक्षित चालाक कथित बुद्धिजीवी शामिल हैं | किसी भी युद्ध में रंग , जाति , धर्म की पहचान कहाँ हो पाती हैं | प्राचीन काल में दिन के उजाले में लड़ाइयां होती थी | आधुनिक युग में रात के अँधेरे में हमले अधिक होते हैं | इन हमलों से दिन में में मौत की काली परछाई से अँधेरा सा होता है और यदि प्रचार तंत्र के हथियार हों तो अज्ञान , असत्य , अफवाह , हिंसा की राख से अन्धेरा फैलाया जाता है |
यह बात वर्तमान दौर में चीन और नेपाल की सीमा पर तनाव , कोरोना महामारी में भगदड़ , जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्ति , नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के नाम पर दंगे , भारत के लिए लड़ाकू विमान राफेल की खरीदी के समझौते को लेकर विदेशी ताकतों के इशारे , समर्थन , भारी फंडिंग से हुए कुप्रचार , भोले मासूम लोगों को उकसाने , हिंसा , पुलिस और सुरक्षाकर्मियों की निर्मम हत्याओं की घटनाओं से साबित हो रही है |कई बार ऐसा लगता है कि लोकतान्त्रिक शक्तिशाली भारत सरकार भी इन हमलों के सामने कमजोर हो जाती है | वास्तव में भावनात्मक मुद्दों पर सामान्य लोगों के दिमाग में जहर घोलना आसान होता है | आपने देखा होगा कभी आंदोलन और प्रदर्शनों में फायरिंग से एक दो लोगों की जान जाती है , लेकिन आंसू गैस के धुवें और भगदड़ से अधिक लोग घायल और मरते हैं | आतंकी का तो लक्ष्य ही भय आतंक से लोगों की जान लेना होता है |
इसमें कोई शक नहीं कि भारत के दुश्मन पहले नहीं थे या जासूसी , षड्यंत्र , हिंसा के लिए विदेशी धन का प्रयोग पहले नहीं होता था | अमेरिका , रूस , चीन और पाकिस्तान की जासूसी एजेंसियां सी आई ए , के जी बी , एम एस एस तथा आई एस आई लगातार सक्रिय रही हैं और उनके सहयोग के लिए कभी सही कभी फर्जी नामों की संस्थाओं या कम्पनियों ने बिकाऊ देशद्रोहियों का इस्तेमाल भी किया | लेकिन हाल के वर्षों में पाकिस्तान के साथ चीन अधिक प्रभावी ढंग से भारत के चुनिंदा नेताओं , कथित सामाजिक – मानव अधिकार संगठनों के लोगों , भटके रिटायर या कार्यरत अधिकारियों , , नामी या गुमनाम मीडियकर्मियों का भी इस्तेमाल प्रचार तंत्र के हमलों के लिए कर रहा है | सबसे दुखद और दिलचस्प तथ्य यह है कि तीस साल पहले जो नेता या सक्रिय कार्यकर्ता स्वयं सी आई ए या आई एस आई को लेकर सार्वजनिक रूप से चिंता जाहिर करते थे , वही या उनके साथी उन्ही एजेंसियों और उनसे जुड़े संदिग्ध संस्थानों और चीनी जाल में फंसकर भारत में अफवाह , भ्रम ,तनाव और हिंसा फैला रहे हैं |
सबसे अधिक चिंता चीन के साथ टकराव को लेकर होती है | कुछ वर्ष पहले भारत के तत्कालीन विदेश सचिव और बाद में सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन ने मुझे तथा चार अन्य वरिष्ठ सम्पादकों से अनौपचारिक बातचीत में समझाया था कि ” भारत – चीन सीमा के लम्बे अर्से से चले आ रहे द्विपक्षीय दावों और विवादों पर राजनयिक एवं उच्च सैन्य स्तर पर वार्ताएं तथा संपर्क रहता है इसके अलावा कुछ इलाकों में अब तक कोई निश्चित सीमा तय नहीं होने से कभी चीनी सैनिक हमारे क्षेत्र में आ जाते हैं और इसी तरह हमारे सैनिक भी उनके दावे वाले सीमा क्षेत्र में चले जाते हैं | कभी कभी कोई टुकड़ी तनाव में टकराने लगती है , लेकिन उच्च अधिकारी स्थिति संभाल लेते हैं | लेकिन पश्चिमी देशों का मीडिया ऐसी घटनाओं को अधिक उत्तेजक ढंग से प्रचारित करते है | भारतीय मीडिया के जिम्मेदार साथी इस बात को ध्यान में रखकर उसके अतिरन्जित्त ढंग से प्रचारित प्रसारित न करें तो अच्छा रहता है | जन मानस को सही सुचना समाचार और जानकारी देना सरकार के साथ मीडिया का भी कर्तव्य है | ” तब से हम जैसे लोगों को यह बात समझ में आ गई | इतना अन्तर इस समय जरूर है कि सीमा पर हलचल बढाकर चीन अपने कोरोना वायरस के पाप , अमेरिका से चल रहे आर्थिक व्यापारिक झगड़े और ट्रम्प के साथ हो रही तु तु मैं मैं के कारण भारत को उलझाना चाहता है | इसी बात को समझते हुए भारत सरकार के प्रवक्ता ही नहीं पुराने अनुभवी राजनयिकों तथा सुरक्षा विशेषज्ञों ने भी कहा है कि सीमा पर हुई कुछ गतिविधियों से बनी स्थिति पर दोनों के बीच बातचीत हो रही है | नेपाल के साथ भी बात हो रही है , जबकि उसके प्रदाहन मंत्री आंतरिक संकट के कारण चीन की कठपुतली जैसे हो गए हैं | बहरहाल इस तरह की चर्चाएं कई बार हफ़्तों चल सकती है | यदि चीन हठधर्मिता दिखाता है तो भारत भी अपने पक्ष पर दृढ़ रहता है | पिछली बार भूटान भारत सीमा पर चीन की हरकत पर वार्ता का दौर 73 दिन चला था | राहुल गाँधी और उनके कांग्रेसी प्रवक्ता ने उनके राज में रहे सुरक्षा सलाहकार एम के नारायणन की हाल की इस टिपण्णी पर ध्यान देना चाहिए कि ‘ सीमा पर होने वाली हर घटना को अगले युद्ध की शुरुआत नहीं समझा जाना चाहिए | ‘ , मेनन या नारायणन संभवतः खुलकर अधिक नहीं कह सकते | लेकिन राजनयिक और सुरक्षा मामलों को समझने वाले जानते हैं कि पश्चिम का मीडिया सीमा पर तनाव या भारत में हिंसा आतंक कि घटनाओं को इसलिए भी उछलता है ताकि उन देशों के हथियार अधिकाधिक खरीदें जाएँ | यही नहीं विदेशी ताकतें ऐसे प्रचार को बढ़ावा दिलवाती हैं , जिससे सरकार भले ही अटल , मनमोहन सिंह या नरेंद्र मोदी की हो कमजोर रहे , अस्थिर रहे और सही मायने में भारत सामाजिक आर्थिक रूप से आत्म निर्भर नहीं हो सके | इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर जम्मू कश्मीर में 370 हटाए जाने पर पश्चिम ही नहीं भारतीय मीडिया के एक वर्ग का इस्तेमाल गलत सूचनाओं को प्रचारित प्रसारित करवाकर किया गया | नागरिकता संशोधन कानून केवल पड़ोसी पाकिस्तान अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिम कुछ लाख विस्थापितों को भारतीयता देने के लिए है , लेकिन महीनों तक विभिन्न जिम्मेदार गैर जिम्मेदार लोगों और उनसे जुड़े समाचार विचार प्रचार तंत्र ने निरंतर यह भ्रम तक पैदा किया कि भारत में रहने वाले मुस्लिम ही नहीं गरीब हिन्दुओं की नागरिकता भी समाप्त हो जाएगी और उन्हें देश से निकाल दिया जायेगा | इतना झूठा और घृणित प्रचार करने वालों को कोई संकोच शर्म महसूस नहीं हुई | तभी तो शंका हुई और कई प्रमाण भी मिले कि दुष्प्रचार वाले तत्वों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान और चीन के छद्म संस्थानों से हर संभव सहायता मिलती रहती है | कोरोना संकट में भी मजदूरों के पलायन की दर्दनाक स्थिति में उनकी मदद के बजाय कुछ नेताओं और उनके समर्थकों ने ऐसा प्रचार किया कि कोरोना से बस मौत ही होने वाली है और सरकार न ही पर्याप्त टेस्ट करा रही और न ही सहयता करेगी | उनका साथ दे रहे मीडिया के एक वर्ग ने यह तथ्य नहीं प्रचारित किया कि अमेरिका , ब्रिटैन , जर्मनी या चीन में भी हर नागरिक के टेस्ट नहीं हुए और न ही हो रहे हैं | लंदन , बर्लिन , लॉस एंजिलिस में भी यही सलाह दी गई कि घर में रहा जाए और लगातार अधिक बुखार होने से खतरा बढ़ने पर अस्पताल के लिए आग्रह किया जाये | बिना टेस्ट किये लाखों लोग उन देशों में आजकल सड़कों पर आराम से घूमने लगे हैं | लेकिन भारत में लोगों को डराने , भड़काने वाले लोग अब भी अपना काम कर रहे हैं | आश्चर्य इस बात का अवश्य है कि भारत सरकार के सम्बंधित मंत्रालय और अधिकारी समय रहते विदेशी ताकतों से प्रेरित तत्वों पर समय रहते कठोर कार्रवाई करके दुष्प्रचार को क्यों नहीं रोक पाते ?
आलोक मेहता
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