एक बार से फिर पूर्वोत्तर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। मणिपुर में हो रही हिंसा और अराजकता इसका प्रमाण है. हालांकि देश के गृह मंत्री अमित शाह के मणिपुर दौरे के बाद वहां की स्थिति सही हो गयी थी. तब से लेकर हिंसा की कोई भी घटना नहीं हुई थी. लेकिन मणिपुर में एक बार फिर हिंसा देखने को मिल रही है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस हिंसा में 9 लोगों की मौत और 10 लोगों की घायल होने की खबर है. ये हिंसा इंफाल पूर्व और कांगपोकपी जिले के बीच सीमा पर मौजूद अजिगंज गांव में रात 10 से 10:30 के बीच हुई है. जानकारी के मुताबिक कुछ हथियारबंद हमलावरों ने गांव में घुसकर फायरिंग कर दी.पुलिस ने जानकारी देते हुए कहा कि इस हिंसा के कारण बड़ी संख्या में लोगों को अपना घर-बार छोड़कर यहां से विस्थापित होना पड़ा है.
सौजन्य-जी हिंदुस्तान
मणिपुर के हिंसा में अभी तक अधिकारिक घोषणा के अनुसार 115 लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 40 हजार लोगों को विस्थापित होना पड़ा है. ये हिंसा दो समुदाय के बीच आरक्षण को लेकर शुरु हुआ था. जिसके बाद रूक-रूक कर हिंसा हो रही है. हिंसा को रोकने के लिए अर्द्ध सैनिक बलों को हिंसा क्षेत्र में तैनात किया गया है. जिसकी बदौलत हिंसा पर काबू पाया गया.
मणिपुर में हो रहे हिंसक संघर्ष की पृष्ठभूमि क्या है इस पर एक नजर डालते हैं. दरअसल मणिपुर में मैतेई समाज को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने का आदेश वहाँ की हाईकोर्ट ने दिया, जिसके बाद ईसाई जनजाति समुदाय के लोग उग्र हो गए और दंगे करने लगे। मैतेई को जनजाति का दर्जा देने का विरोध कुकी और नागा समुदाय कर रहे हैं। आजादी के बाद से कुकी और नागा समुदायों को आदिवासी का दर्जा मिला हुआ है। दरअसल यहाँ के मूल निवासी मैतेई समुदाय है, जिनके पास 65% से अधिक भूमि है, लेकिन इनके पास 10 प्रतिशत भी भूमि अधिकार नहीं है। इतना ही नहीं मैतेई समुदाय राज्य के आर्थिक और राजनीतिक रूप से सबसे प्रभावशाली समुदाय है। वहीं, कुकी और नागा राज्य की आबादी के 40 प्रतिशत हैं।
मैतेई बहुसंख्यक हैं और पड़ोसी देशों से हो रहे लगातार घुसपैठ को लेकर वे चिंतित हैं। उनका कहना है कि म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध प्रवासी पहाड़ी इलाकों में बड़े पैमाने पर बस रहे हैं। इससे उनकी सांस्कृतिक पहचान को खतरा उत्पन्न हो गया है। ऐसे में इस संकट को अनदेखा करना सही नहीं है।
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