राजस्थान में नाबालिगों के विवाह पंजीकरण का विधेयक पारित : बाल विवाह को बढ़ावा मिलने की संभावना
सामाजिक विद्व्जनों से लेकर विधिज्ञों तक में इसे लेकर एक नई बहस खड़ी हो गई है :-
सामाजिक विद्व्जनों से लेकर विधिज्ञों तक में इसे लेकर एक नई बहस खड़ी हो गई है :-
जिस राजनैतिक दल में अब तक “लोकतांत्रिक प्रक्रिया” का असली मतलब , “सब कुछ आलाकमान तय करेगा /करेगी ” ही हो , एक ईवीएम के आने से बूथ लूट कर देश लूटने तक वाली एक पूरी फ़ौज सड़े हुए गट्टे की तरह पिघल जाए , यदि उस दल की राज्य सरकारों में फिर ऐसी हालत हो कि कहीं , कैप्टन को ही जहाज से बीच समुन्दर में कुदवा दिया जाता है तो कहीं पायलट साब को बार बार टैक ऑफ़ और लैंडिग कर करके जैसे तैसे बैलेंस बनाना पड़ता है तो फिर हैरानी ही क्यों और कैसे हो।
सामाजिक विद्व्जनों से लेकर विधिज्ञों तक में इसे लेकर एक नई बहस खड़ी हो गई है :-
ये अपरोक्ष रूप से , बाल विवाह ( ज्ञात हो कि राजस्थान भी उन राज्यों में शुमार है जहाँ आज भी विवाह की घटनाएं हो ही जाती हैं , बावजूद इसके कि कानूनन ये अपराध घोषित है ) को एक विधिक संरक्षण देने से कैसे अलग माना जा सकेगा ??
न्यायपालिका ने विवाह का पंजीकरण बाध्य किया है -तो क्या दो नाबालिगों का विवाह -कानूनन विवाह है या नहीं -पहले ये तय किया जाना जरूरी नहीं होगा ??
पंजीकरण के समय -क्या दोनों अभिभावकों को ये भी प्रमाणित करना होगा कि इस विवाह की सूचना पहले ही पुलिस प्रशासन को देने के बावजूद भी वे यह विवाह कराने में सफल रहे , और यदि सूचित नहीं किया था तो फिर दोनों के विरूद्ध कानूनी कार्यवाही शुरू की जा चुकी है -इन सब बातों को कौन सुनिश्चित करेगा।
क्या इससे बेहतर ये नहीं होता कि कि पहले से ही प्रतिबंधित बाल विवाह निषेध क़ानून को और पुख्ता करते हुए सम्बंधित स्थानीय पुलिस एवं प्रशासन को इसके लिए और अधिक सचेत सजग और जिम्मेदार बनाया जाता ताकि बाल विवाह की घटनाओं पर पूरी तरह रोक लग सके।
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