एक थी बेहद शरीफ भाजपा…।।

एक थी शरीफ भाजपा, जिसे केवल 1 वोट से संसद भवन में गिरा दिया गया था! और इटली की शातिर महिला गुलाबी होठों से मंद मंद मुस्करा रही थी, वाजपेयी हाथ हिला हिला कर अपनी शैली मे व्यस्त थे!
जब तक भाजपा वाजपेयी जी की विचारधारा पर चलती रही, वो राम के बताये मार्गपर चलती रही। मर्यादा, नैतिकता, और शुचिता, इनके लिए कड़े मापदंड तय किये गये थे। परन्तु कभी भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी। सत्ता के इंतजार में हमेशा पिछड़ते रहे, धर्म और सभ्यता के साथ समझौता नहीं करने की सजा पाते रहे। राजनीति की बलि चढ़ते रहे ।

फिर होता है नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का पदार्पण……. मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरण चिन्हों पर चलने वाली भाजपा को मोदी जी, कर्मयोगी श्री कृष्ण की राह पर ले आते हैं ! श्री कृष्ण अधर्मी को मारने में किसी भी प्रकार की गलती नहीं करते हैं। छल हो तो छल से, कपट हो तो कपट से, अनीति हो तो अनीति से, अधर्मी को नष्ट करना ही उनका ध्येय होता है!

इसीलिए वो अर्जुन को केवल कर्म करने की शिक्षा देते हैं ! बिना सत्ता के आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं ! इसलिए भाजपा के कार्यकर्ताओं को चाहिए कि कर्ण का अंत करते समय कर्ण के विलापों पर ध्यान ना दें। केवल ये देखें कि अभिमन्यु की हत्या के समय उनकी नैतिकता कहाँ चली गई थी ?

कर्ण के रथ का पहिया जब कीचड़ में धंस गया, तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा: पार्थ, देख क्या रहे हो ? …… इसे समाप्त कर दो!

संकट में घिरे कर्ण ने कहा: यह तो अधर्म है !

भगवान श्री कृष्ण ने कहा: अभिमन्यु को घेर कर मारने वाले, और द्रौपदी को भरे दरबार में वेश्या कहने वाले के मुख से आज अधर्म की बातें करना शोभा नहीं देता है !!

आज राजनीतिक गलियारा जिस तरह से संविधान की बात कर रहा है, तो लग रहा है जैसे हम पुनः महाभारत युग में आ गए हैं ! विश्वास रखो, महाभारत का अर्जुन नहीं चूका था ! आज का अर्जुन भी नहीं चूकेगा !

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः!
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् !

चुनावी जंग में अमित शाह जो कुछ भी जीत के लिए पार्टी के लिए कर रहे हैं, वह सब उचित है! साम, दाम, दण्ड , भेद ,राजा या क्षत्रिय द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियाँ हैं, जिन्हें उपाय-चतुष्टय (चार उपाय) कहते हैं !

राजा को राज्य की व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिये सात नीतियाँ वर्णित हैं ! उपाय चतुष्टय के अलावा तीन अन्य हैं – माया, उपेक्षा तथा इन्द्रजाल !! राजनीतिक गलियारे में ऐसा विपक्ष नहीं है, जिसके साथ नैतिक-नैतिक खेल खेला जाए! सीधा धोबी पछाड़ ही आवश्यक है !

आज जहां बाला साहेब ठाकरे ने जीवनभर हिंदुत्व के नाम पर लोगो का दिल जीता उसी पार्टी और उनके बेटे उद्भव ठाकरे ने सत्ता की मलाई खाने के लिए ऐसे लोगो से हाथ मिला लिए जिन्होंने हमेशा हिंदुत्व और हिंदुस्तान को चोट दी, गौहत्या जैसे गंभीर मसलों पर धड़ले से कार्य करने वाली कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना का हाथ मिलाना ही उस दिन शिवसेना और बाला साहेब ठाकरे द्वारा बनाई गई सेना का गला घोंटने का संकेत था उसी दिन हिंदुस्तान को पता चल गया था कि हिंदुत्व के नाम और भगवा के नाम पर जिंदादिली से कार्य करने वाली शिवसेना अब पतन की ओर बढ़ रही है।

फिर उद्भव सरकार के राज में ही अर्णब गोस्वामी, कंगना रणौत और अंत में नूपुर शर्मा के मामले में शिवसेना ने जो स्टैण्ड लिया, वह शिवसेना की तेरहवीं थी। कोई पार्टी अपने स्टैण्ड से नहीं भाग सकती। जब अटलजी ने बाबरी मस्जिद विध्वंस पर शर्मिंदा थे, ठीक उसी समय कल्याण सिंह ने सीना ठोंककर गर्व पूर्वक जिम्मेदारी ली और अटलजी से कहा कि बाबरी के विध्वंस पर हम हिंदूवादी कतई शर्मिंदा नहीं है

आज जहां शिवसेना के ढाई साल के कार्यकाल में हिंदुत्व और भगवा को चोट पहुंचाने में सबसे बड़ा किरदार रहा शिवसेना सांसद संजय राउत का…

सचिव वेद गुरु तीनि जो
प्रिय बोलहि भय आस,
राज धरम तन तीनि कर
होई बेगहि नाश

तीनो ही भूमिका में संजय राउत था…..

उद्धव ठाकरे लाख सफाई दें, पर यह साफ दिखाई देता है कि उद्धव ठाकरे ने बालासाहब ठाकरे जी के हिन्दुत्व के साथ धोखा किया। हिन्दुओं और हिन्दुत्व के दुश्मनों के साथ हाथ मिलाया वह भी सत्ता हांसिल करने के लालच में। “मातोश्री” के मान सम्मान के साथ धोखा किया। इसकी आज सजा ही मिल रही है कि शिवसेना पर अधिकार की लड़ाई में भी उद्भव ठाकरे बौने साबित हो रहे है क्योंकि शिवसेना किसी मालिक की नही बल्कि विचारधारा की पार्टी है हिंदुत्व के रक्षकों की पार्टी है मुझे आज भी याद है जब दूर दूर गांवों और ढाणियों में शिवसेना ने अपनी एक अमिट छाप छोड़ी जिसे लोग अपने रक्षक के रूप में जानने लगे पर 2019 के दौर ने शिवसेना के मापदंड बदल दिए, खुद की साख खुद गिराई, हां ये अलग बात है कि बाला साहेब ठाकरे अब इस दुनिया में नहीं है और शायद पिछले ढाई तीन साल से उनकी आत्मा दुखी भी होगी जब उद्भव ठाकरे कभी राम मंदिर तो कभी धारा 370 तो कभी एनआरसी या सीएए पर सवाल उठाते है तो कभी अग्निपथ पर, ये सब सच्चे राष्ट्रवादी और शिवसेनिकों को दुख देता है दर्द देता है इस बदली विचारधारा का अंत निश्चित था होना ही था । 2022 में हुआ पर हुआ जो अच्छा हुआ, अब उम्मीद हैं लोग हिंदुत्व को गाली देने से पहले सोचेगा ।

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