किसानों के तथाकथित नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत जब बार बार टीवी और मीडिया में जोर जोर से चीख कर कहते थे कि -सरकार की बक्कल तार देंगे तब शायद ही किसी ने ये सोचा भी होगा कि लगातार दूसरी बार देशवासियों ने प्रचंड बहुमत देकर अपने हितों की रक्षा करने वाली भाजपा सरकार को सत्तासीन किया है तो ,विश्व के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी -जो न चीन के आगे झुके न पकिस्तान के , न विरोधियों के आगे झुके न आतंकियों के वे अचानक से , संसद द्वारा पारित कानून को सिर्फ इसलिए वापस लेने की घोषणा कर देंगे क्यूँकि उसके विरोध में कुछ समूह और उनके समर्थक लगातार देश विरोधी षड्यंत्र रच रहे हैं , अपराध पर अपराध किए चले जा रहे हैं।

आज प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के नए संशोधनों को वापस लिया बल्कि इसके लिए देश भर से माफ़ी भी मांगी। अपने सार्वजनिक सम्बोधन में उन्होंने इन कानूनों को वापस लेकर एक नई समिति बना कर कृषकों के कल्याण के लिए नई नीति बनाने की घोषणा कर दी।

मगर प्रधानमंत्री अपने इस यू टर्न वाले निर्णय से उठे इन सवालों के उत्तर देने के लिए कब सामने आते हैं और क्या उत्तर देते हैं ये भी देखना होगा :-

आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि , दो वर्षों तक इन कानूनों के अम्लीकरण पर अडिग रहने के बाद सरकार ने इसे अभी वापस लिए जाने की हठात घोषणा कर दी ??

इन दो वर्षो में कृषि कानून के विरोध के नाम पर किए गए दंगों और अपराधों के लिए क्यों नहीं केंद्र सरकार को ही जिम्मेदार माना जाए , जब वापस ही लेना था तो फिर इतना सब क्यों होने दिया गया ??

लालकिला काँड से लेकर , इन आंदोलन स्थलों पर हुए तमाम उपद्रव , पुलिस व् सुरक्षा बलों के साथ मारपीट , ह्त्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध , हिन्दू महिलाओं को गाली गलौज , खालिस्तानियों द्वारा अलग राज्य बनाए जाने की माँग आदि जैसे तमाम घटनाओं पर सरकार का क्या कहना है ??

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों के तहत इन कानूनों की समीक्षा के लिए गठित समिति का गठन क्यों किया गया और कानूनों को वापस लेने के लिए उनकी रिपोर्ट तक की प्रतीक्षा क्यों नहीं की गई ??

ठीक विधानसभा चुनावों से पहले अचानक ही इन कानूनों की वापसी को केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा चुनाव जीतने हारने के लिए बिछाई खेली गई बिसात के रूप में लोग क्यों नहीं देखें ??

सरकार द्वारा इस तरह से संसद में पारित कानूनों को बिना किसी विधिक प्रक्रिया , विमर्श , बहस , समितियों की अनुशंसा के वापस लेने से -इससे पहले सरकार द्वारा लिए गए निर्णय और पारित कानूनों -धारा 370 को निरस्त करना , तीन तलाक को ख़त्म किया जाना , नागरिकता संशोधन क़ानून आदि की वैधता पर क्यों नहीं प्रश्न चिन्ह खड़े किए जाएं ??

भविष्य में सरकार द्वारा प्रस्तावित -समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून जैसे कहीं अधिक कठोर कानूनों के संभावित विरोध को देखते हुए ये कैसे न माना जाए कि सरकार फिर से किसी दबाव में आकर इन्हें लागू करने में नहीं हिचकेगी और ऐसे ही उपद्रव/आंदोलन आदि के कारण उन्हें भी वापस ले लिया जाएगा।

सबसे गंभीर बात -सरकार द्वारा संसद में पारित अपने क़ानून को इस तरह से अचानक वापस लिए जाने को -क्यों नहीं देश विरोधियों ,-विपक्षी दलों और यहाँ तक कि खालिस्तानियों और वामपंथियों की जीत (जैसा कि वे अपनी जीत बता कर जश्न मना भी रहे हैं ) की तरह देखने से सरकार कैसे मना कर सकेगी ??

सवाल और भी बहुत से हैं जो आज एक आम नागरिक के मन में उठ रहे हैं और इसलिए भी उठ रहे हैं क्यूंकि उसे उम्मीद थी कि अपने प्रचंड बहुमत से एक शक्तिशाली सरकार को चुने जाने के बावजूद भी आज सिर्फ कुछ लोगों की हठ और मनमानी , उपद्रव /आंदोलन के आगे देश का बहुसंखयक समाज खुद को हारा , ठगा हुआ महसूस कर रहा है। नहीं , बिलकुल नहीं , ये देश इस हार का हकदार नहीं है।

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