महाराणा जगत सिंह के पुत्र राज सिंह का राज्याभिषेक 10 अक्टूबर 1652 को हुआ ।
महाराणा राज सिंह महाराणा जगतसिंह द्वारा प्रारंभ की गई चित्तौड़ के किले की मरम्मत का कार्य जारी रखा और औरंगजेब के 2 अप्रैल 1679 को हिंदुओं पर जजिया लगाने मूर्तियां तुड़वाने आदि अत्याचारों का प्रबल विरोध किया। औरंगजेब से संबंध तय की गई चारुमति( किशनगढ़ के राजा रूप सिंह की पुत्री) से उसकी इच्छा अनुसार उसके धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने औरंगजेब के विरुद्ध जाकर निर्भयता के साथ सन 1660 में विवाह किया। जोधपुर के अजीत सिंह को अपने यहां आशय दिया और जजिया कर देना स्वीकार नहीं किया। बादशाह के डर से श्री नाथ जी आदि की मूर्तियों को लेकर भागे हुए गोसाई लोगों को आश्रय देखकर कांकरोली में द्वारकाधीश की मूर्ति तथा सिहाड नाथद्वारा में 1672 ईस्वी में श्रीनाथजी विट्ठल नाथ जी की मूर्ति प्रतिष्ठित करा कर उन्होंने अपनी धर्म निष्ठा का परिचय भी दिया। इन सब बातों के कारण उन्हें औरंगजेब से बहुत लड़ाई लड़नी पड़ी। इनमें कई बार औरंगजेब की सेना परास्त हुई। किसी के द्वारा विष दिए जाने के कारण महाराणा का देहांत हो गया। यदि महाराणा का देहांत बीच में ना होता तो संभव था कि मेवाड़ और मारवाड़ के सम्मिलित सैन्य द्वारा औरंगजेब पूर्ण रूप से पराजित होता।
महाराणा राज सिंह ने 1664 ईस्वी में उदयपुर में अंबा माता का एवं काकरोली में द्वारकाधीश मंदिर बनवाया एवं उदयपुर से पश्चिम में बड़ी गांव के पास जना सागर तालाब बनवाया। उन्होंने गोमती नदी के पानी को रोककर राजसमंद झील बनवाई। जनवरी 1662 को की नींव की खुदाई प्रारंभ हुई एवं 1676 में इसकी प्रतिष्ठा की गई। इसमें गोमती ताल व केलवा नदियों का पानी आने लगा।
इस झील की नौ चोकी पाल पत्रों पर ताको में 25 बड़ी-बड़ी शीलाओं पर 25 सर्गों का राज प्रशस्ति महाकाव्य खुदा हुआ है। जो भारत भर में सबसे बड़ा शिलालेख और शिलाओ पर खुदे हुए ग्रंथों में सबसे बड़ा है। इसकी रचना रणछोड़ भट्ट तैलंग ने की थी। उन्होंने राजसमंद झील के पास राजनगर वर्तमान में राजसमंद नामक कस्बा आबाद कराया।
मैंने इनके बारे में गूगल सर्च किया तो मुझे बहुत दुख हुआ कि गूगल पर इनके बारे में कुछ नहीं था।
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