यदा कदा कुछ लोग नरेंद्र मोदी पर टिपण्णी करने से नहीं चुकते कि ये नहीं किया और वो नहीं किया, जबकि नरेंद्र मोदी कुछ लोगों को उन्हें नंगा होने का पूरा मौका देते हैं और ऐसे लोग अपनी जिम्मेदारी निभाते भी हैं —
मोदी जी ने कुछ मीडिया वालों को ठोकरों में जरूर रखा मगर किसी से कुछ सीधा कुछ नहीं कहा क्यूंकि किसी को नज़रअंदाज करना उसका सबसे बड़ा अपमान होता है, जैसे राहुल गाँधी और केजरीवाल का कभी मोदी नाम नहीं लेते -ऐसे ही राजदीप सरदेसाई और करन थापर जैसे लोगों को दूर ही रखा है –
आज नतीजा देखिये, मीडिया वाले एक दूसरे के दुश्मन बने बैठे हैं और अपने ही नहीं, एक दूसरे के कपडे फाड़ रहे हैं –जो दुश्मनी उनकी पहले पर्दे में रहती थी, आज बेपर्दा हो कर सबके सामने आ गई —
एक अकेले अर्नब गोस्वामी ने सारे चैनल्स के बड़े बड़े दिग्गजों को धूल चटा दी, अकेले अर्नब ने इन सबको, जाने अनजाने अब कांग्रेस की गोद में, उद्धव और “भांडवुड” के जरिये बैठने को मजबूर कर दिया –इसे कहते हैं “व्यावसायिक दुश्मनी” (Professional Rivalry) —
अब कोई निष्पक्षता का चोला नहीं पहन सकता क्यूंकि उनके राष्ट्रवादी चोले उतर चुके हैं – बड़े बड़े पत्रकार पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह को चैनल पर बिठा कर कहें कि हम आपको अच्छे से जानते हैं, आप तो बहुत ईमानदार व्यक्ति हैं, वो केवल इसलिए कि परमवीर सिंह ने गलत तरीके से ही सही,अर्नब गोस्वामी को फ़साने की कोशिश की थी TRP घपले में —
यानि पत्रकारिता का स्तर इतना गिरा दिया इन लोगों ने एक दूसरे को ही निशाना बना रहे हैं, फिर जनता की क्या आकांशा पूरी करेंगे – आप अपनी ईगो के लिए एक ऐसे व्यक्ति को ईमानदार कह रहे हैं जिसने कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा को धोखे से पकड़ा और वो 9 साल टार्चर होते रहे -छी छी –
अर्नब गोस्वामी के खिलाफ शायद ही कोई प्रोडक्शन हाउस, प्रोडूसर, डायरेक्टर या बड़ा एक्टर बचा हो जो दिल्ली हाई कोर्ट में उस पर लगाम कसने की मांग करने की याचिका में शामिल ना हो –
“भांडवुड” का जब काला चेहरा जनमानस के सामने रख दिया अर्नब गोस्वामी ने तो उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ख़तम करने चल पड़े और खुद ऐसी स्वतंत्रता लिए बैठे हैं ये भांड कि किसी को इंडस्ट्री से निकाल दें, किसी को मरवा दे -और पूरी इंडस्ट्री को नशे का अड्डा बना दें –
कभी दाउद के अंडरवर्ल्ड को रोकने के लिए किसी हाई कोर्ट में गए क्या कि पुलिस को हिदायत दी जाये कि हमारी रक्षा करे उसके गुर्गों से – नहीं, उसे तो ये “नॉटी” लोग “पुजापा” चढ़ाते रहे –
दिल्ली हाई कोर्ट को वैसे तो इनकी याचिका पर सुनवाई करनी ही नहीं चाहिए क्यूंकि ये बॉम्बे हाई कोर्ट को छोड़ कर दिल्ली क्यों आये, ये सोचने का विषय है –शायद इसलिए कि इन्ही की तरह दिल्ली में लुटियन दलालो का मीडिया बैठा है जो इनके नैरेटिव बनाने में इनकी मदद करता है –
दिल्ली हाई कोर्ट यदि इन भांडों की याचिका पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सुनवाई करता है तो वो एक बार मीडिया का 2002 से मोदी के खिलाफ दिखाया जा रहा काला चेहरा भी देख ले जिस पर किसी ने कभी कोई उंगली नहीं उठाई –
गंदगी से भरे “भांडवुड” को अपने गिरेबान में झाँक लेना चाहिए पहले, चेहरा काला है जो किसी ने उजागर करने की कोशिश की है
(सुभाष चन्द्र)
“मैं वंशज श्री राम का”
14/10/2020
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