लम्बी नाक वाला जादूगर
आज की कहानी लम्बी नाक वाले जादूगर की है। दूरदर्शन के किसी सीरियल में देखी थी बचपन में। लेखक का नाम तो नहीं पता पर इतनी अच्छी थी की आज भी याद है।
आज की कहानी लम्बी नाक वाले जादूगर की है। दूरदर्शन के किसी सीरियल में देखी थी बचपन में। लेखक का नाम तो नहीं पता पर इतनी अच्छी थी की आज भी याद है।
एक गाँव में एक साड़ियों का व्यापारी अपने परिवार के साथ रहता था। भगवान् की भक्ति में लीन रहने वाले सीधे-सच्चे लोग थे। ईमानदार व्यापारी था तो लोग बहुत मानते थे। एक दिन अचानक से व्यापारी की जीवन लीला समाप्त हो गयी। परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। दिन किसी तरह कट रहे थे। अब नयी साड़ियां आना भी बंद हो गयीं , जो बची थीं उन्ही को बेचकर पत्नी अपना और बच्चों का पालन कर रही थी।
एक शाम जब सब खाना खाकर उठे तो बाहर किसी ने आवाज़ लगाई। बच्चों ने बाहर जाकर देखा तो कोई राहगीर था। भूखा था और खाने को मांग रहा था। बाहर चबूतरे पर ही आसन दिया बैठने के लिए। घर में सिर्फ एक लड्डू बचा था जिसे लेकर दोनों बच्चे आपस में झगड़ रहे थे। पर जब राहगीर के बारे में समझाया गया तो उसे अपना लड्डू देने के लिए राजी हो गए। व्यापारी की पत्नी ने क्षमा मांगते हुए राहगीर को अपनी स्थिति बताई और बचा हुआ लड्डू खाने को दे दिया। बच्चों की आँखों में राहगीर ने लड्डू के लिए ललक देख ली थी।
तुम्हें भी खाने हैं – राहगीर ने पूछा। पर बच्चों ने कोई जवाब नहीं दिया।
राहगीर फिर बोला – मेरी नाक देख रहे हो।
अब बच्चों ने ध्यान से देखा , नाक काफी लम्बी थी। राहगीर बोला : चलो एक जादू दिखाता हूँ। उसने एक ऊँगली से अपनी नाक बजाई तो एक से दो लड्डू हो गए। उसने कहा चलो तुम दोनों एक एक खा लो।
उस पर बच्चा बोला , लेकिन आप तो फिर भी भूखे रह जाओगे। एक लड्डू आप खा लो , एक में हम बाँट लेंगे। जादूगर ने कहा , मैं २ से ४ लड्डू कर देता हूँ, सबके लिए एक एक हो जायेगा। बच्चे खुश हो गए। राहगीर ने चार लड्डू कर दिए। खाकर वहीँ चबूतरे पर लेट गया। बच्चे भी बाहर के कमरे में बैठ गए। राहगीर उन्हें अपने अनुभव बताने लगा। रात होने लगी तो बोला घर बंद कर लो , मैं सुबह जल्दी निकल जाऊंगा तो थोड़ी देर बाहर बैठा हूँ , फिर मंदिर जाकर सो जाऊंगा।
व्यापारी की पत्नी ने पीने का पानी दिया , रास्ते में खाने के लिए कुछ फल दिए। राहगीर से नाम पूछा तो उसने बताया की माता पिता ने नाम कान्हा रखा था , पर जब से जादू दिखता है तो लोग भगवान कहने लगे हैं। वो उसे कान्हा ही कह सकती है। उसने बोला एक जादू और दिखाता हूँ , कल सुबह सूरज उगने के साथ जो भी पहला काम करोगी , वो तुम सूरज डूबने तक करती रहोगी। व्यापारी की पत्नी ने उसका धन्यवाद किया। राहगीर थोड़ी देर में विदा लेकर चला गया। घर में सब लोग सो गए।
सुबह उठकर सुबह के सब काम निपटाकर , व्यापारी की पत्नी जैसे ही कुछ और करने को हुई , बच्चों ने राहगीर की बात याद दिला दी। सूरज निकलने ही वाला था , बच्चों ने साड़ियां गिनने की बात कही। व्यापारी की पत्नी ने वैसा ही किया। राहगीर की बात सच हो गयी। पूरा घर तरह तरह की साड़ियों से भर गया। पूरा घर खुशहाल हो गया। पत्नी ने भगवान का धन्यवाद किया और प्रार्थना की कि उस राहगीर को फिर भेजें जिससे वो उसका सत्कार कर पाए।
ये बात जब पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली को पता चली , जो आर्थिक रूप से अच्छी थी, तो लालच में आकर उसने कहा की जब अगली बार जादूगर उसके यहाँ आये तो मेरे यहाँ भेज देना।
कुछ महीनों बाद राहगीर फिर वहां से गुज़रा। इस बार घर की हालत बदली हुई थी। आवाज़ लगाई तो पूरा परिवार हाथ जोड़कर बाहर आ गया। खूब सत्कार किया। भोजन कराया। जब चलने को हुआ तो उसने अपनी सहेली के घर जाने की प्रार्थना की। जो राहगीर ने मुस्कुरा कर मान ली।
जब वो उसकी सहेली के घर पहुंचा , तो सहेली ने भी ठीक वैसे ही लड्डू रखे , जिसे व्यापारी ने दुगुने कर दिए। वैसे ही अपनी हालत दीन -हीन बताई सहेली ने और जादूगर से सुबह उठकर दिन भर एक ही काम करने का वचन भी ले लिया। राहगीर के जाते ही अपने पति से बोली की उसकी सहेली तो बेवकूफ थी जो उसने साड़िया गिनीं , कल सुबह सूरज उगने के साथ वो सोने की मोहरें गिनेगी और शाम आते आते पूरा घर सोने से भर जायेगा।
फिर उसने सोचा की सूरज उगने में देर है , तब तक क्यों ना इतना सोना रखने के लिए झोले सी ले। रात गुजर गयी झोले बनाने में और उसे ध्यान ही ना रहा सूरज के उगने का। जिस समय सूरज उग रहा था , वो कैंची से कपड़ा काट रही थी। बस फिर क्या , दिन भर कैंची चलती रही। शाम आते आते , घर में ऐसा कुछ न बचा जिसे कैंची ने काट ना दिया हो।
उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था। उसने लालच किया था। बहुत पछतावा हुआ उसे।
कहने का मतलब ये कि ज्यादा का लालच कभी-कभी सब कुछ नष्ट कर देता है। भगवान् सबको देते हैं , हमें खुश रहना आना चाहिए। और जाते जाते रहीम का एक दोहा :
रहिमन इतना दीजिये , जा में कुटुंब समाय। मैं भी भूखा ना रहूँ , साधु ना भूखा जाए।
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