जाने माने पत्रकार अभिषेक उपाध्याय आर्मीनिया में हैं और लिख रहे है अपनी काराबाघ डायरी , आर्मीनिया जहाँ सांसद, नेता मंत्री सब जा रहे है युद्ध के मैदान में, वो युद्ध जो एक चिंगारी में विश्वयुद्ध में बदल सकता है
काराबाख डायरी भाग 1-
जीवन में हमेशा से युद्ध अपनी ओर खींचता आया है। इस बार तो वॉर ज़ोन में ले आया है। एक हफ्ते तक चली लम्बी जद्दोजहद के बाद आखिरकार काराबाख की सीमा तक पहुंच चुका हूँ। इस बीच कितनी बार इमीग्रेशन ने रोका! कितनी बार कोविड टेस्ट हुए! कितनी बार कस्टम ने टोका! कितनी बार एयरलाइन्स ने हाथ खड़े किए! कितनी बार बोर्डिंग के बाद भी डिबोर्ड किए जाने की नौबत आई और फिर पिछले एक महीने से जारी आर्मीनियाई ऑथॉरिटीज के साथ के ईमेल कम्युनिकेशन से जान बची! दिल्ली से दुबई और फिर येरेवान (आर्मीनिया) के बीच क्या क्या नही हुआ!! अब याद करने से बचता हूँ!!!
सांसद, नेता, मंत्री सब जा रहे हैं युद्ध के मैदान में काराबाख की लड़ाई में मारे गए आर्मीनिया के एक पूर्व MP रुस्तम गासपर्यन की तस्वीर है। ये जंग शुरू होते ही अपने बेटे राफो को साथ लेकर आर्मीनिया की ओर से लड़ने काराबाख पहुंच गए। लड़ाई में बाप-बेटे दोनो मारे गए। कहानी यहीं खत्म नही होती। यहां आर्मीनिया के सांसदों में होड़ लगी है जंग के मैदान में जाने की। आज ही एक आर्मीनियाई महिला MP से इंटरव्यू तय किया था पर वे अचानक ही काराबाख निकल गईं। अब वहीं मिलने और बात करने का वादा किया है।
पर आख़िरकार काराबाख के नजदीक पहुंच ही गया हूँ। रात गोरिस में रुका हूँ। ये आर्मीनिया के स्यूनिक प्रांत का बॉर्डर है। यहां से एक ओर ईरान, एक ओर अजरबैजान और एक तरफ नागरनो काराबाख, जहां भीषण युद्ध जारी है। यहां कल ही पहुंच जाता पर अजरबैजान की फोर्सेज ने इस गोरिस मे भी ड्रोन से हमला कर दिया सो आर्मीनिया की फौज ने कल ये रास्ता बंद कर दिया था। दोनो मुल्कों के बीच कल रात के अस्थायी संघर्ष विराम के बाद आज जाकर इसे खोला गया है। इसके ठीक बगल में कापन है, इस प्रान्त की राजधानी, जहां अजरबैजान की ओर से जमकर ड्रोन अटैक हुए हैं। यहां युद्ध के कोई नियम नही हैं। युद्ध की दिशा ड्रोन तय करता है।
हमारा ड्राइवर, हमारा गाइड हायक साथ है। हायक काराबाख के चप्पे-चप्पे से वाकिफ है। हिंदी गानों का ज़बरदस्त शौकीन है। रास्ते भर उसके साथ मैं गुलज़ार को सुनता आया हूँ- “तुझसे नाराज़ नही, ज़िंदगी हैरान हूं..।” अब तक गहरे दोस्त बन चुके आर्मीनिया के केरन भी साथ हैं। केरन हैं तो आर्मीनिया के, पर पढ़ाई भारत में हुई है। सो शानदार हिंदी बोलते हैं। पूरे रास्ते ज़बरदस्त चेकिंग जारी है। आर्मीनिया की फोर्सेज अब तक चार अलग-अलग जगहों पर हमारे पासपोर्ट, accredition बैज, प्रेस कार्ड, वीजा चेक कर चुकी हैं।
गनीमत है कि नया पासपोर्ट लेकर आया हूँ। वरना पुराने पासपोर्ट में तो इजरायल से लेकर पाकिस्तान और इंडोनेशिया से लेकर जापान तक कुछ नही छूटा है। फिर भी वे पासपोर्ट में टर्की का वीजा ढूंढ रहे हैं। “कभी टर्की तो नही गए न?” हमारे न कहने के बावजूद उन्होंने पूरी जांच पड़ताल की। टर्की उनकी नज़र में गुनाह का दूसरा नाम है। ज़ोरों की भूख लग आयी है। हायक ने गाड़ी एक रेस्टोरेंट पर रोक दी। यहां गलती से राजमा चावल मिल गया है। मैं और मेरे साथी चेतन थाली पर उसी तरह टूट पड़े हैं जैसे गदर फ़िल्म में सनी देओल पाकिस्तानी जवानों पर टूट पड़े थे। रात गहराती जा रही है। बम-बारूद की महक ख्वाबों में घिरती जा रही है। कोई रात के अंधेरे मे पाश को गुनगुना रहा है-
“युद्ध इश्क के शिखर का नाम है
युद्ध लहू से मोह का नाम है
युद्ध जीने की गर्मी का नाम है
हम लड़ेंगे साथी!!” कौन है ये? मेरी ही परछाई तो नही!! (जारी)
– अभिषेक उपाध्याय
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