कट्टरवाद का जहर जिस तरह से इस समय यूरोप में फल फूल रहा है उसके बीज कभी 70 के दशक में बोए गए थे। इराक युद्ध, इराक-ईरान युद्ध के समय जिस तरह से यूरोप ने अपने दरवाजे मध्य एशिया के मुसलमानों के लिए खोल दिए थे यह उसी का परिणाम है कि आज सारा यूरोप इस्लामिक कट्टरवाद की आग में झुलस रहा है। फ्रांस की घटना कुछ और नहीं 65 लाख मुस्लिमों की 6.7 करोड़ आबादी वाले फ्रांस की सत्ता हथियाने की अघोषित लड़ाई है।फ्रांस की उदारता ने ही आज उसे बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया है।

यूरोप का यह खूबसूरत देश आज इस्लामी आत्ंकवाद की राजधानी बन गया है 2015 मेंं कार्टून छापने पर पत्रिका शार्ली एब्दो के ऑफिस से लेकर अब तक हुए कई आतंकी हमलों में ढाई सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। 1977 में जब फ्रांस ने तुर्की, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया और मोरक्को जैसे मुस्लिम देशों के साथ एक समझौता किया, जिसके बाद ये मुस्लिम देश अपने यहां के इमामों को पढ़ाने के लिए फ्रांस भेजने लगे।इमामों को पढ़ाना तो विदेशी भाषा और संस्कृति के बारे में था मगर पढ़ाने लगे कट्टरता का पाठ।

राष्ट्रपति इमैनुअल ने स्पष्ट कह दिया है-फ्रांस में हम तुर्की का कानून लागू नही होने देंगे। फ्रांस में जो रहेगा उसे यहां का कानून मानना पड़ेगा। आँखें खुलने के बाद अब फ्रांस में मस्जिदों की निगरानी और मुस्लिम कंट्री से फंडिंग की पड़ताल तेज हुई है। 

2015 में फ्रांसीसी लेखक मिशेल वेलबेक ने उपन्यास के बहाने फ्रांस को अलर्ट किया था।उन्होंने लिखा- 2022 तक फ्रांस का इस्लामीकरण हो जाएगा।देश में मुस्लिम राष्ट्रपति होगा, कॉलेजों में कुरान की पढ़ाई होगी। महिलाओं के लिए नौकरी पर बैन होगा।अतिशयोक्ति लगने वाली बातें सच साबित हो रहीं हैं। 

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