हैं बहुत बरसी धरती पर अम्रत की धार, पर नही अभी तक सुशीतल हो सका संसार |भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दगाम ,बह रही असहाय नर की भावना निष्काम |
आज के कालखण्ड मे जो दशा मनुष्य की हो गयी हैं | उसे रामधारी सिंह दिनकर जी की उपर लिखित कविता दर्शाती हैं | शांति कहा खो गयी? यह किसको पता हैं या फिर शांति क्या होती हैं यह किसको पता हैं | क्या भौतिकवाद ही शांति हैं, तो फिर अध्यात्म की क्या जगह है, असल मे अध्यात्म ही शांति का सच्चा एवं उपयोगी साधन हैं |आज मनुष्य भौतिक चीजों से जुड़ चुका हैं | भौतिक चीजे ही व्यक्ति के परमसुख का जरिया हैं ;यह सोच व्यक्तियों मे पनप चुकी हैं | लेकिन सच्चाई कोसों दूर है.
जो चीजे आज सुखकर लग रही हैं बह बांध लेती हैं एक व्यक्ति को अपने भौतिकवाद मे, गीता मे श्री कृष्ण कहते है – “सुख ही दुख का कारण है ”
ज्यादातर लोग सुख भविष्य मे तलाशते हैं, तो कुछ लोग सुख भूतकाल मे देखते हैं लेकिन लोग भूल जाते है कि सुख न तो भूत मे हैं और न ही भविष्य मे हैं बल्कि सुख तो वर्तमान मे हैं |
भूत लोटकर नही आएगा, भविष्य कैसा रहेगा यह पता नही लेकिन वर्तमान मे हम जो कर रहे हैं वह ही हमारे सुख या दुख का कारण बनेगा | “कर्म करते रहिए, फल की चिंता मत कीजिये ”
आज हम भुला बैंठे हैं उस पवित्र गीता को ,जिसको पडकर पूरा जीवन अध्यात्मिक हो सकता है. गीता मे कर्म को प्रधान बताया गया है इसलिए कर्म करते रहिए | – Vishal Nayak (विशाल नायक)
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