साल था 1976 जब देश इंदिरा गांधी के लगाये हुए इमरजेंसी की मार झेल रहा था उसी वक़्त बाबा साहब अम्बेडकर के बनाये संविधान में 42वा संशोधन हुआ, तब की हिटलर दीदी यानि हमारी प्रधानमंत्री ने संविधान में बदलाव करवा कर उसमे दो शब्द – सेक्युलर और सोशलिस्ट को जोड़ दिया और तब कहानी शुरू हुई देश के सेक्युलर बनने की /
तब से अब तक ऐसा लगता है जैसे यह शब्द केवल हिन्दू समाज को नीचा दिखने के लिए ही बनाया गया हो, सेक्युलर और सहिष्णु रहने की कसम तो जैसे केवल हिन्दू समाज को ही थी, और हक़ की मांग करो तो आप सांप्रदायिक कहलाओगे, इस्लामिक कट्टरवाद को समर्थन दोगे तो आप सेक्युलर कहलाओगे और अगर हिन्दू के पक्ष में एक भी शब्द निकला मुँह से तो आप हिन्दू आतंकवादी के नाम से सम्बोधित किये जाओगे /
गत वर्ष दिल्ली ने CAA को ले कर बहुत परेशानी झेली, उस समय जो दंगे कर रहे थे वो शान्तिप्रिय कहलाये और जिन्होंने दंगे रुकवाने की कोशिश की वो धर्मनिरपेक्षता के दुश्मन कहलाये, सेक्युलर होने का एक सीधा मतलब बनाया गया, अगर आप देशहित की बात करोगे तो आप सेक्युलर नहीं सांप्रदायिक हो और अगर आप देश के दुश्मनों की भाषा बोलोगे तो आप सेक्युलर हो /
अब ये समाज निश्चय करे, की सेक्युलर बनना है या देश प्रेमी?
जय हिन्द!
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