भारतीय संस्कृति की गौरवगाथा
इन झलकियों का अवलोकन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अधिक प्रासंगिक हो चुका है ; विशेषकर उन युवाओं के लिए जो निज संस्कृति से अनभिज्ञ बात-बात में पाश्चात्य संस्कृति का गुणगान किया करते हैं।
इन झलकियों का अवलोकन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अधिक प्रासंगिक हो चुका है ; विशेषकर उन युवाओं के लिए जो निज संस्कृति से अनभिज्ञ बात-बात में पाश्चात्य संस्कृति का गुणगान किया करते हैं।
यद्यपि भारत की शाश्वत संस्कृति की गौरवगाथा को केवल कुछ लेखों एवं पुस्तकों में बंधित नहीं किया जा सकता है, तथापि उन लेखों और पुस्तकों के माध्यम से उसकी कुछ झलकियाँ अवश्य ही कालांतर में प्राप्त होती रही हैं। इन झलकियों का अवलोकन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अधिक प्रासंगिक हो चुका है ; विशेषकर उन युवाओं के लिए जो निज संस्कृति से अनभिज्ञ बात-बात में पाश्चात्य संस्कृति का गुणगान किया करते हैं। यह गुणगान करते समय वे यह भूल जाते हैं कि जिस संस्कृति और जिन चरित्रों को वे श्रेष्ठ मान बैठे हैं, उन्हें श्रेष्ठ दर्शाने में कितना गहन षड्यंत्र रचा गया और वर्तमान में भी निरंतर रचा जा रहा है। इस षड्यंत्र के विच्छेदन हेतु युवाओं को आगे आना ही होगा क्योंकि युवाओं की संख्या के आगणन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राष्ट्र के सांस्कृतिक गौरव की रक्षा वे प्रभावपूर्ण रूप से करने में समर्थ हैं ; आवश्यकता है तो केवल उचित मार्गदर्शन की जो युवाओं में स्वअनुशासन व आत्मचिंतन को उत्प्रेरित करे।
मेरी लघुकाव्यरूपी निम्नांकित रचना भारत की गौरवशाली संस्कृति की एक छोटी सी झलक ही प्रस्तुत करती है :
ज्योतिर्लिंगों का प्रकाश है पाञ्चजन्य की गूँज जहाँ
हरि पूजित शिव जहाँ विराजें शिव पूजित हरि बसें जहाँ
हिन्दुत्व है जीवनशैली जिसकी है धर्म सनातन अविचल
हृदयांकित है नालंदा की गौरवगाथा प्रतिपल
हुआ जहाँ अभ्युदय शंकर और विवेक का
धर्म सनातन की रक्षा को ज्ञानी द्वय अभिषेक का
क्रांतिकारियों के शोणित से सिंचित भूमि अखण्ड है
हारे जिनसे हैं आततायी हर काल में वीर प्रचण्ड हैं
राणा ही नहीं चेतक की रज का करता मैं अभिनंदन हूँ
इस गौरवशाली भारतभूमि का करता मैं नित वंदन हूँ ।
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