अध्यात्म की चेतना जब सर्वांगीण हो जाए तो उसके कई आयाम स्वतः विकसित हो जाते हैं। गंगोत्री के स्वामी सुन्दरानन्द ने अपनी भक्ति को प्रकृति की सेवा में समर्पित किया और दुर्लभ हिमालय की इतनी तस्वीरे खींचीं कि हिमालय को आज उनकी आंख से पूरी दुनिया देख रही है। ‘फोटो बाबा’ के नाम से पहचान रखने वाले स्वामी सुंदरानंद बुधवार रात ब्रह्मलीन हो गए. उन्होंने बीते सात दशकों तक गंगोत्री हिमालय में साधना कर हिमालय एवं गंगा में आए बदलावों को अपने कैमरे में कैद किया साथ ही जीवन पर्यंत इनके संरक्षण के लिए प्रयास करते रहे।


स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1948 में अनंतपुरम आंध्र प्रदेश से गंगोत्री आए थे और यहां हिमालय और गंगा के आध्यात्मिक स्वरूप के आकर्षण में बंधकर यहीं के होकर रह गए. यहां उन्होंने स्वामी तपोवन महाराज से दीक्षा ग्रहण कर गंगोत्री स्थित तपोवन कुटी में साधना की. इस दौरान उन्होंने गंगोत्री बदरीनाथ से तिब्बत के पठार और अफगानिस्तान तक 2500 किमी लंबे और 500 किमी चौड़े हिमालय का चप्पा-चप्पा छान मारा।
1957 में उन्होंने 25 रुपयों में एक कैमरा ख़रीदा और वहाँ से वे दुनिया को हिमालय के और करीब ले आये. उन्होंने अपने जीवनकाल में ढाई लाख से भी अधिक हिमालय के दुर्लभ नज़रों को कैद किया और साथ ही पुरे भारत भर में भ्रमण कर गंगोत्री के तेजी से पतन एवं ग्लोबल वार्मिंग के विषय में जागरूकता बढ़ाने का कार्य किया।


वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान स्वामी सुंदरानंद ने भारतीय सेना के लिए सीमावर्ती क्षेत्र में गाइड की भूमिका निभाई थी.2001 में कुछ चुनिंदा तस्वीरों को एक किताब की शक्ल मिली जिसका नाम है – ‘Himalaya: Through the Lens of a Sadhu” जिसका विमोचन स्वयं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था।


‘जो लोग किन्ही कारणों से हिमालय नहीं देख सकते हैं वे लोग स्वामीजी की तस्वीरों के माध्यम से बहुत करीब से हिमालय-दर्शन कर सकते हैं.’ ये शब्द थे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के जिन्होंने पिछले वर्ष स्वामीजी द्वारा खींची गई तस्वीरों की प्रदर्शनी के लिए बनी पांच-मंजिला आर्ट-गैलरी ‘तपोवनम हिरण्यगर्भ कला दीर्घा’ के लोकार्पण के वक्त शिरकत की थी।


अपने जीवनकाल में स्वामीजी बहुत बार कहते पाये गए कि “अब कोई पर्यावरण-प्रेमी बचे नहीं है, बचे हैं तो केवल धन-प्रेमी.’हम भारतीय आज 17 साल की ग्रेटा थनबर्ग के  विषय में सबको पता है लेकिन अपना पूरा जीवन खपा देने वाले स्वामी सुंदरानंद जैसे व्यक्तित्वों से अनजान हैं.  दुःख की बात तो यह भी है कि पूरा दिन सरकारों पर बयानबाजियाँ करने वाले एक भी भारतीय एनवायरनमेंट एक्टिविस्ट ने भी स्वामीजी के ब्रह्मलीन होने पर एक ट्वीट तक नहीं किया!

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